इस बार भी दीपावली पर कुम्हार के मायूस चेहरे बाजार मे चीनी दीये
दिवाली का त्योहार आते ही बाजारों में चहल-पहल और सजावट देखने लायक होती है। हर तरफ रंग-बिरंगी लाइट्स, पटाखे, सजावटी सामान और दीयों की बिक्री होती है। दिवाली का एक खास आकर्षण मिट्टी के दीये हैं, जो न सिर्फ हमारे घरों को रौशन करते हैं बल्कि हमारे परंपराओं से भी जुड़े होते हैं। परंतु, आधुनिकता और सुविधा की चाह में हम अक्सर सस्ते चीनी दीयों का रुख कर लेते हैं। इस बदलते रुझान का सबसे गहरा असर पड़ता है हमारे अपने कुम्हारों पर, जो साल भर इसी त्योहार की तैयारी में लगे रहते हैं और जिनके पूरे परिवार की रोटी-रोज़ी इन दीयों पर निर्भर करती है।
कुम्हार का दर्द: एक नज़र
सालों से मिट्टी के दीये बनाने वाले कुम्हार के लिए यह त्योहार सबसे अहम होता है। वे महीनों पहले से मिट्टी का चुनाव, दीये बनाने और उन्हें पकाने की प्रक्रिया शुरू करते हैं। हर दीया उनके पसीने और मेहनत का प्रतीक होता है, लेकिन जब ये दीये बाजार में सस्ते और आकर्षक चीनी दीयों से टकराते हैं, तो उनकी बिक्री बुरी तरह प्रभावित होती है। सस्ते दामों पर चीनी दीये बेचने वाले बड़े व्यापारियों के सामने उनका व्यापार ठंडा पड़ जाता है।
क्यों नहीं बिक पाते कुम्हार के दीये?
कुम्हार अपने हाथों से बनाए दीयों में पूरी जान लगा देते हैं, लेकिन उनकी लागत अधिक होती है और प्रतिस्पर्धा में टिक पाना मुश्किल हो जाता है। दूसरी ओर, चीनी दीये सस्ते और चमकदार होते हैं, जो ग्राहकों का ध्यान आसानी से खींच लेते हैं। लोग बिना सोचे-समझे सस्ते चीनी दीये खरीद लेते हैं और अपने ही देश के कलाकारों की मेहनत का सम्मान भूल जाते हैं।
कुम्हार की उम्मीदें और टूटते सपने
कुम्हार के लिए दिवाली सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि उसके परिवार की सालभर की मेहनत का फल है। दिवाली के दौरान दीयों की बिक्री से जो आमदनी होती है, उसी से वह अपने बच्चों की पढ़ाई, घर की जरूरतें, और अगले साल के लिए मिट्टी, ईंधन का खर्च निकालता है। लेकिन चीनी दीयों के कारण उसकी बिक्री घटने लगी है, जिससे उसकी उम्मीदें टूट जाती हैं।
चीनी दीये क्यों न खरीदें?
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स्थानीय कलाकारों का समर्थन: मिट्टी के दीये खरीदने से न केवल कुम्हारों की आर्थिक सहायता होती है, बल्कि उनकी कला और मेहनत को भी सम्मान मिलता है।
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पर्यावरण के अनुकूल: मिट्टी के दीये पर्यावरण के लिए सुरक्षित हैं। ये मिट्टी में ही वापस मिल जाते हैं, जबकि चीनी दीये अक्सर प्लास्टिक और अन्य हानिकारक सामग्री से बने होते हैं।
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भारतीय संस्कृति का हिस्सा: मिट्टी के दीये हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं। इनमें हमारी परंपराओं और त्योहारों की खुशबू बसती है, जो हमें हमारी मिट्टी से जोड़ती है।
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चीनी सामान का बहिष्कार: भारतीय बाजार में चीनी सामान की भरमार से हमारे अपने छोटे कारीगरों और स्थानीय उद्योगों पर असर पड़ रहा है। चीनी सामान खरीदने से हम अपने ही लोगों का रोजगार छीन रहे हैं।
कैसे करें कुम्हार की मदद?
- इस दिवाली पर चीनी दीयों का बहिष्कार करिए और अपने स्थानीय कुम्हार से मिट्टी के दीये खरीदिए।
- हो सके तो अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को भी इसके लिए प्रेरित करें।
- बाजार में स्थानीय कारीगरों के बने सामान को प्राथमिकता दें और इनकी कला का सम्मान करें।
अंत में,
दिवाली सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि समाज की समृद्धि और एकता का प्रतीक है। यह उस दीप की तरह है जो अंधकार को दूर करता है और उजाले का संदेश फैलाता है। इस दिवाली पर चीनी दीये छोड़कर अपने देश के कुम्हारों के हाथों बने मिट्टी के दीयों से अपने घर को रोशन करें। एक छोटे से निर्णय से हम एक कुम्हार के परिवार की खुशी लौटा सकते हैं और उसकी मेहनत का सही मूल्य दे सकते हैं। तो आइए, इस बार अपने घरों में कुम्हार के दीयों की रौशनी से दिवाली का असली आनंद लें।