भारत को विश्व गुरु बनाने के लिए संस्कृत व हिंदी को अपनाएं, रूढियां समाप्त हों और शिक्षा में व्यापक सुधार: स्वामी ओमानंद

भारत को विश्व गुरु बनाने के लिए संस्कृत व हिंदी को अपनाएं, रूढियां समाप्त हों और शिक्षा में व्यापक सुधार: स्वामी ओमानंद

ब्यूरो डा योगेश कौशिक

बागपत। स्वामी ओमानंद सरस्वती ने कहा कि ,राष्ट्रीय संस्कृति, शिक्षा, सीमा, चरित्र निर्माण व गौ रक्षा ही राजा का राष्ट्र धर्म है। संस्कृति ही नागरिक आचार संहिता व सौहार्द बढ़ाने वाली होती है, उसमें आए हुए व्यवधान को पथ प्रदर्शक, प्रबुद्ध विद्वत् वर्ग, धर्मात्मा, देशभक्त, सन्यासी भविष्य के मार्गदर्शक प्रहरी बनें, यही प्रजा पालन भक्ति ही सबका कर्तव्य है।स्वामी ओमानंद सरस्वती बली गांव में आयोजित एक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए आए थे। 

उन्होंने वार्ता के दौरान कहा कि ,मात्र शिक्षा सुधार से ही बढ़ते जाति, क्षेत्र, भाषा, संप्रदाय, अल्पसंख्यक, आरक्षण, पूंजीवाद, रूढ़ियों का समाधान हो जाएगा। रूढियां ही देश की एकता को खंडित कर रही हैं। शिक्षा सुधार से आतंकवाद व काले धन से भी छुटकारा मिलेगा। शिक्षा ही राष्ट्र की उन्नति का आधार है।

 कहा कि, हम आर्यों की प्राचीन आदि राष्ट्र भाषा संस्कृत तथा प्राचीन देवनागरी वर्तमान हिंदी को अपनाने से विश्व में प्राचीन आर्यवृत भारत पुनः विश्व गुरु पद पर प्रतिष्ठित होगा, क्योंकि सभी राष्ट्र पठन-पाठन व तकनीकी में संस्कृति को प्रधानता दे रहे हैं। 

उन्होंने कहा राष्ट्रहित में जातिवाद, क्षेत्रवाद, संप्रदायवाद, आरक्षणवाद, भाषावाद, अल्पसंख्यकवाद, पूंजीवाद से उत्पन्न भेदभाव को दूर करके समान नागरिक व्यवस्था को ही प्राथमिकता दी जाए। जन्म से मरण तक शिक्षा व रोजगार सभी स्थानों से जाति व संप्रदाय का कालम समाप्त किया जाए। शिक्षा का राष्ट्रीयकरण करके एक ही पाठ्यक्रम, एक ही देवनागरी लिपि को प्रांतीय भाषाओं में प्रकाशित कराकर लड़कियों को शिक्षिकाओं, लड़कों को शिक्षकों द्वारा अलग-अलग विद्यालयों में अध्ययन-अध्यापन कराया जाए। संस्कृति को अनिवार्य विषय एवं विश्व भाषा घोषित किया जाए।