राम से भी ज्यादा 19 वर्ष का संन्यास काटकर लौटे मुन्नू ने संभाला 'राजपाठ'

पुरानी बात की नई कहानी बने मुन्नू बने जेडीसी बैंक के निर्विरोध सभापति
1989 में बने भाजपा के जिलामंत्री, 2000 में दादा ने बनवाया था भाजपा जिलाध्यक्ष
उरई । बात पुरानी है। अब इसकी नई कहानी लिखी गई है। इसे लिखने में 19 वर्ष बीत गये। मुन्नू ने राजनीति में जब अपने भविष्य की बुनियाद भरी तब वे 24 के थे और अब 57 वर्ष के हो गये। इस कालांतर में न कितने अवसर आये और गंवाये। एक वक्त ऐसा भी आया जब जब पार्टी के भीतर ही उनकी राजनीति पर विराम चिन्ह लगना बताया जाने लगा पर समय ने करवट ली और मंगलवार का दिन इसी परिवर्तन का गवाह बना। बृज भूषण सिंह जेडीसी बैंक के निर्विरोध सभापति तो चुन लिए गये पर ऐसा होने में भी कई अवरोधों को लांघना पड़ा।
सन 2000 के बाद मुन्नू की।क्षमता और कद के अनुरूप पहला कोई 'आसन' अब जाकर मिला। आज से वे जेडीसी बैंक के सभापति हुए और उम्मीद जताई जा रही है कि सात माह बाद वह, फिर से पांच वर्ष के लिए सभापति बन जाएंगे !
जेडीसी बैंक परिसर में आज तरह- तरह के नजारे थे। इनमें दादा की बगिया के भी कई 'फूल' सम्मान लौटने की हवा में गलबहियां डालकर झूल रहे थे, मुस्कुरा रहे थे। उन्हें एहसास हुआ कि उनकी भी अब बहार आ गई है ! मुन्नू के बहाने ही सही उनकी राजनीति का 'वसन्त' लौट आया है। बृज भूषण सिंह ' मुन्नू ' की ताजपोशी हुई तो इसी बहाने दादा बाबूराम एमकॉम को भी याद किया जाने लगा। एक वक्त था जब दादा ही भाजपा के जिले के बागबां थे। राजनीति के 'बगीचे' में दादा ने कई पौधे रोपे थे जिसमें से केंद्रीय मंत्री भानुप्रताप वर्मा, उदय सिंह पिंडारी (अब दिवंगत) और बृजभूषण सिंह ' मुन्नू ' को अपनत्व और स्नेह के ' फव्वारे ' से ज्यादा सींचते रहे। जब तक दादा रहे , तब कई और नहीं रहे या रहने नहीं दिए गये। समय का चक्र घूमा और दादा युग खत्म सा मान लिया गया। नई शक्ति के उदय के साथ दादा की बगिया के पौधे या तो सूखने लगे, नहीं तो उन्हें पानी ( पद/ महत्व) नहीं मिला। कुछ मुरझाए तो कुछ सूख तक गये। अपने आत्म विश्वास या कार्यकर्ताओं की स्वीकार्यता के बलबूते भानु प्रताप - उदय पिंडारी जैसे लोग ही डटे रहे। एक वक्त ऐसा भी आया जब मुन्नू भी निराश हुए। उन्होंने तालमेल की रणनीति बनाई पर किसी महत्वपूर्ण महत्व के लिए स्वीकार नहीं किये गये। वजह पता थी, फिर भी पार्टी के वफ़ादार सिपाही बनकर उम्मीदों को बटोरे रहे। मन की पीड़ा मन में ही रखकर उम्मीदों की नदी तैरते रहे। भानुप्रताप जब नई ताकत में आये तो वह सहारा बने और मुन्नू को अपनी उम्मीदों का साहिल मिल गया। सभापति के नाम को लेकर विधायकों से सहित कोर कमेटी ने मुहर लगा दी। ऐसा हुआ तो उन्हें फिर से महत्वपूर्ण बनने में देर नहीं लगी। हालांकि यहां तक पहुँचने में कई अवरोध आये। सूत्रों के अनुसार कुछ लोगों ने अभी भी चाहा कि मुन्नू सभापति न बनने पाएं । जब वह प्रत्याशी बने तो एक वर्ग में असंतोष फैला। स्टे भी लेने की कोशिश हुई। कहते हैं जहां ताकत होती है, वहीं सफलता होती है।
यह सच है कि राजनीति में शुचिता के कारण मुन्नू युवा वर्ग में सबसे अधिक लोकप्रिय माने जाते हैं। पिंडारी और मुन्नू, दादा की पहली पसंद थे। दादा ने 2009 में दिए गये इंटरव्यू में बड़ी साफगोई के साथ कहा भी था कि - अब मैं सिर्फ उदय और मुन्नू के लिए राजनीति करूंगा। मुन्नू जब 24 वर्ष के थे , तब वे जिलाध्यक्ष केके पालीवाल के साथ सबसे पहले जिला मंत्री बने। इसके बाद नरेंद्रपाल सिंह जादौन की जिलाध्यक्षी के दोनों कार्यकाल के दौरान उपाध्यक्ष रहे। हरिओम उपाध्याय जब 1996-97 में जिलाध्यक्ष हुए तो मुन्नू महामंत्री रहे। ऐसा दादा के कारण ही सम्भव होता रहा। वर्ष 2000 में दादा ने उन्हें कई लोगों के विरोध के बावजूद जिलाध्यक्ष बनवाया। 2003 में मुन्नू एमएलसी का चुनाव भी लड़े। यह सपा का शासनकाल था। सत्ता का ही चुनाव होने के कारण दादा पर आरोप भी लगा कि उन्होंने जान बूझकर मुन्नू की राजनीतिक बलि चढ़वा दी। हालांकि मुन्नू ने ऐसा कभी नहीं माना। वे हमेशा कहते रहे कि मैं पार्टी का अनुशासित सिपाही हूँ। जो आदेश मिला उसे किया।
मुन्नू के जिलाध्यक्षी कार्यकाल को अब तक के कार्यकालों में कार्यकर्ता सबसे अच्छा मानते हैं । फिर भी राजनीतिक चालों में वे ऐसा उलझे कि 19 वर्षों का वनवास भोगना पड़ा। उनके लिए राजनीति का इसे पुनर्जीवन माना जा रहा है। अब वे खुश हैं। कह भी रहे हैं कि जिम्मेदारी का पूरी ताकत और ईमानदारी से निर्वाह करूंगा। 19 वर्षों ने उन्हें भावुक जरूर बना दिया। उनके भाषण में यह भावुकता साफ तौर पर झलकी भी। जब पूछा गया कि पार्टी के भीतर ही चर्चा रहती है कि- आप कपड़ों की क्रीज की चिंता और धूल- धूप से बचाव के कारण कई बार कार्यकर्ताओं की उनकी जरूरत के वक्त उतनी मदद नही कर पाते, जितनी उनको जरूरत रहती है तो इस पर वह थोड़ा मुस्कुराए और बोले - माई महाराज की कृपा से सब बेहतर होगा। सभी के साथ कदम से कदम मिलाकर साथ चलूंगा।
कार्यक्रम में विधायक गौरी शंकर वर्मा,पूर्व विधायक संतराम सेंगर, नरेंद्र सिंह जादौन, रामेंद्र सिंह बना, छोटे सिंह चौहान, आरपी निरंजन, राघवेंद्र सिंह गुर्जर, नागेंद्र गुप्ता, अरविंद गौतम, चच्चू, उदयन पालीवाल, आदि ने भी विचार रखे। इस अवसर पर केशव सेंगर, अरिदमन सिंह,दिलीप दुबे, संजय त्रिपाठी, अग्निवेश चतुर्वेदी, अरविंद चौहान, दिनेश तिवारी चचा, उदयवीर गुर्जर, शिवेंद्र बुंदेला, कौशल पनियारा, डिम्पल सिंह,सुनील लोहिया, विनोद अग्निहोत्री, संजीव धगवां,संजीव गुर्जर, रिप्पू गुप्ता, सुभाष पिंडारी सहित बड़ी संख्या में कार्यकर्ता और समर्थक उपस्थित रहे। बेजोड़ अंदाज में संचालन का दायित्व युद्धवीर कंथरिया द्वारा निभाया गया।