"कुंभ का गहराता संकट: साधना की जगह सौंदर्य और साध्वी का ग्लैमर चर्चा में"

प्रयागराज। महाकुंभ में इस बार अध्यात्म की गहराई और संतों के तपस्वी जीवन की चर्चा कहीं पीछे छूट गई है। चर्चा के केंद्र में हैं—कुछ चुनिंदा चेहरे, जिनका संबंध न तो धर्म की गंभीरता से है, न ही सनातन की परंपराओं से। मीडिया की सुर्खियों में अब साधना, तप और ज्ञान नहीं, बल्कि आंखों की खूबसूरती और साध्वियों का ग्लैमर छाया हुआ है।
'पैदल आया तपस्वी, लेकिन चर्चा में ग्लैमरस चेहरे':
संत श्री अनंतानंद सरस्वती, जो बद्री विशाल से पैदल चलकर प्रयागराज आए, जिनकी तपस्या और त्याग सनातन धर्म की जड़ों को मजबूत करता है, उन्हें मीडिया ने अनदेखा कर दिया। उनके जीवन का सबसे बड़ा 'दोष' शायद यह है कि उनके पास "वायरल होने लायक" चेहरा नहीं है।
कौन हैं असली संत?
महाकुंभ जैसे पर्व का असली उद्देश्य आत्मशुद्धि और धर्म का प्रचार है। लेकिन दुर्भाग्यवश, ऐसे सच्चे संत, जो अपने तप और त्याग से अध्यात्म का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं, हाशिए पर चले गए हैं।
तस्वीर में दिख रहे संत श्री अनंतानंद सरस्वती जी इसका जीवंत उदाहरण हैं। बद्री विशाल से पैदल चलकर प्रयागराज पहुंचे इस तपस्वी संत के पास केवल एक भिक्षा पात्र है। वे वाहन का प्रयोग नहीं करते और पूर्णतः सन्यास की परंपरा का पालन करते हैं। लेकिन, क्या उनकी साधना और त्याग की चर्चा किसी ने की? शायद नहीं।
मीडिया का फोकस और समाज की रुचि:
आज मीडिया के लिए सन्यास और तपस्या से ज्यादा महत्वपूर्ण है ग्लैमर। समाज की रुचि भी बदल चुकी है। लोग तपस्वियों की साधना और जीवनशैली को समझने के बजाय, सुंदरता और दिखावे पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
कुंभ की असली महत्ता का नुकसान:
कुंभ केवल एक मेला नहीं, यह सनातन धर्म का जीवंत उत्सव है। यह पर्व हमें आत्मचिंतन और धर्म के वास्तविक अर्थ को समझने का अवसर देता है। लेकिन अब यह पर्व बाहरी आकर्षण, कैमरों की चमक और सोशल मीडिया ट्रेंड्स का शिकार हो गया है।
क्या यह हमारा दुर्भाग्य नहीं?
जब गंगा के तट पर चर्चा का विषय 'धर्म और अध्यात्म' की बजाय किसी की आंखें या साधुओं का ग्लैमर बन जाए, तो यह न केवल कुंभ की महत्ता का अपमान है, बल्कि हमारे सनातन धर्म की गहराई को भी खोखला कर देता है।
आइए, इस अवसर पर आत्ममंथन करें और सोचें कि क्या हम कुंभ की वास्तविकता और महत्व को भूल रहे हैं? क्या हमारे लिए धर्म और साधना से अधिक महत्वपूर्ण सिर्फ दिखावा रह गया है? यह समय है, जब हम कुंभ जैसे पर्व को उसकी सच्ची गरिमा और आध्यात्मिकता में पुनः स्थापित करें।