कर्म हँसाते, कर्म रुलाते कर्म ही दर-दर भटकाते हैं :मुनि श्री विशुभ्र सागर 

कर्म हँसाते, कर्म रुलाते कर्म ही दर-दर भटकाते हैं :मुनि श्री विशुभ्र सागर 

संवाददाता आशीष चंद्रमौलि

बडौत।मुनि श्री विशुभ्र सागर महाराज ने अजितनाथ सभागार में धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि, जिसका चित्त मंगल भूत अहिंसा धर्म में लगा है, वह मनुष्य धरती पर श्रेष्ठ है । अहिंसा से बढ़कर अन्य कोई धर्म नहीं है ।सत्य, अचोर्य, अपरिग्रह , दया करुणा, संयम, तप, त्याग, ब्रह्मचर्य , आदि धर्म अहिंसा के ही अंग हैं।

 मुनि श्री ने कहा, जो छत्र की तरह सभी जीवो की रक्षा करें ,वह क्षत्रिय कहलाता है, जो जिनेंद्र की आज्ञा माने वह जैन कहलाता है, जो माँ की तरह सभी जीवो को हित का उपदेश दे, वह शास्त्र कहलाता है। जो ब्रह्म में आसन करें वह ब्रह्म है । जिसकी दिशाएं ही अंबर है वह दिगंबर है। जो हिंसा न करें वह अहिंसक है ,जिसका जैसा भाग्य होता है उसे वह अवश्य फलित होता है। भाग्य से अधिक और समय के पहले किसी को कुछ नहीं मिलता ।

कहा कि, कर्मों की गति कुटिल होती है ।कर्म का फल क्या होगा यह जान पाना अत्यंत कठिन है ।कर्म का खेल कोई जान नहीं पाता। कर्म गिराता, कर्म उठाता,कर्म हँसाता कम रुलाता व कर्म ही दर-दर भटकता है। कर्म की गति न्यारी होती है। कर्म किसी को नही छोड़ता है । सभा मे सुभाष जैन, राजकुमार जैन,प्रमोद जैन,सुधीर जैन, वरदान जैन, अंकुर जैन, जिनेंद्र जैन, मुकेश जैन, जिनेंद्र जैन, आशीष जैन आदि मौजूद रहे।