वो महिला जिसे अपने आशिक़ के अपराध के लिए मिली सज़ा-ए-मौत
9 जनवरी 1923 को एडिथ थॉमसन और उनके प्रेमी फ्रेडरिक बायवाटर्स को एडिथ के पति की हत्या के जुर्म में मौत की सज़ा दी गई थी.
हालांकि, इस बात का कोई सबूत नहीं था कि एडिथ को ये बात पहले से मालूम थी कि उनके पति की हत्या की जाएगी.
फिर भी एडिथ को क्यों मुजरिम ठहराया गया? और, आज एक सदी बाद भी ये केस कैसे चर्चा में बना हुआ है?
9 जनवरी 1923 को मंगलवार था. जल्लाद और उसके सहायक मुस्तैदी से लंदन की हॉलोवे जेल की कालकोठरी के बाहर पहुंच गए. वो बेहद सर्द सुबह थी.
उनके सामने 29 साल की एडिथ थॉमसन, कंधे झुकाए पड़ी हुई थी. पिछले कई दिनों से एडिथ को दर्द मिटाने की ताक़तवर दवा के इंजेक्शन दिए जा रहे थे, जिसके असर से वो कम-ओ-बेश बेसुध पड़ी थी.
जब, फ़ांसी देने वाला दस्ता उसकी कोठरी में दाख़िल हुआ, तो उसने एक आह भरी.
एक आदमी ने एडिथ को कलाई से पकड़कर उठाते हुए कहा, 'परेशान मत हो. ये सब बहुत जल्दी ख़त्म हो जाएगा'.
एडिथ के हाथों और पैरों में बेड़ियां पड़ी हुई थीं. उसे उसी हालत में फांसी के तख़्ते की ओर ले जाया गया और कुछ ही लम्हों के बाद, वो मर चुकी थी.
वहां से आधा मील दूर, पेंटनविले जेल में ठीक उसी वक़्त, एडिथ के 20 साल के प्रेमी को भी इसी नियति का सामना करना पड़ा.
फ़ांसी दिए जाने से तीन महीने पहले, फ्रेडी बायवाटर्स ने एडिथ के पति पर्सी पर छुरे से एक के बाद एक कई वार किए थे. उस वक़्त मियां-बीवी, थिएटर से अपने घर लौट रहे थे. फ्रेडी ने हमेशा ही इस बात पर ज़ोर दिया था कि उसकी प्रेमिका एडिथ को इस हमले की भनक तक नहीं थी.
एडिथ का जुर्म क्या था? वो दिलकश थी. कामकाजी तबक़े से ताल्लुक़ रखने वाली एक आज़ाद, और बेवफ़ा महिला थी.
इस केस की जांच से जुड़े एक एक्सपर्ट के मुताबिक़ एडिथ एक ऐसे समाज की शिकार बन गई, जो किसी महिला के उस दौर के नैतिक उसूलों के पाबंद न होने को बर्दाश्त नहीं कर सका था.
जैसा कि कामयाब उपन्यासकार और स्क्रीनराइटर एडगर वॉलेस ने लिखा था, "इस मुल्क की तारीख़ में अगर कभी भी किसी महिला को जुर्म के सबूत का एक क़तरा मिले बग़ैर, महज़ जाहिल अवाम के भयंकर पूर्वाग्रह के चलते सूली पर लटकाया गया, तो वो एडिथ थॉमसन थी."
'वो सबसे अलग बनना चाहती थीं'
एडिथ ग्रेडॉन, कामकाजी तबक़े की दूसरी महिलाओं से बिल्कुल अलग तरह की ज़िंदगी जीने की ख़्वाहिशमंद थी.
उनका जन्म, 1893 में क्रिसमस के दिन लंदन के उपनगरीय इलाक़े मैनोर पार्क में हुआ था. वे अपने मां-बाप की पांच औलादों में से पहली थीं."
"सबसे बड़ी बेटी होने के चलते, एडिथ अपनी एक बहन और तीन भाइयों की देखरेख में अपनी मां की मदद की किया करती थीं.
जब एडिथ की स्कूल की पढ़ाई पूरी हो गई, तो ये बेहद महत्वाकांक्षी और अक़्लमंद युवती कामकाज के लिए शहर चली आईं. लंदन में वो बार्बिकन स्थित लड़कियों की हैट बनाने वाली थोक कंपनी, कार्लटन ऐंड पामर में नौकरी करने लगीं. बहुत जल्द ही वो कंपनी की मुख्य ख़रीदार बन गई.
एडिथ के केस के बारे में दो किताबें लिखने वाली लॉरा थॉमसन कहती हैं कि, "वो एक ऐसी तथाकथित आम महिला थी, जो असाधारण बनना चाहती थी."
जनवरी, 1916 में एडिथ ने जहाज़रानी के क्लर्क पर्सी थॉमसन से ब्याह कर लिया. दोनों ने इल्फोर्ड के 41, केंसिंग्टन गार्डन में एक घर ख़रीदा. ये घर उस जगह से ज़्यादा दूर नहीं था, जहां पर मियां-बीवी पले बढ़े थे.
एडिथ को उस वक़्त अपने पति से ज़्यादा तनख़्वाह मिलती थी. इसलिए, मकान की 250 पाउंड की क़ीमत अदा करने में एडिथ से आधे से ज़्यादा रक़म दी थी. हालांकि, मकान की ख़रीद के काग़ज़ात, एडिथ के पति पर्सी के नाम पर बनने थे.
ई शादीशुदा युवती के तौर पर एडिथ से ये उम्मीद की जाती थी कि वो घरेलू ज़िंदगी को अपना ले और जल्दी से मां बन जाए, लेकिन एडिथ का इरादा तो कुछ और ही था.
एडिथ एक शानदार डांसर भी थी. इसीलिए, वो लंदन के बढ़िया होटलों और डांसिंग हॉल्स में शामें गुज़ारना पसंद करती थीं. ये शहर के वो ठिकाने थे, जो उसके जैसी सामाजिक हैसियत वाली महिलाओं के लिए नहीं बने थे.
एडिथ की शामें अक्सर वेस्ट एंड के थिएटर, सिनेमा हॉल और रेस्टोरेंट में दोस्तों के साथ गुज़रती थीं.
लॉरा थॉमसन, जिनका ताल्लुक़ एडिथ से नहीं है, वो कहती हैं, "एडिथ, मुझे बेहद आधुनिक युवती लगती है. वो ज़िंदगी की नेमतों से लबरेज़ लड़की थी. वो क़स्बे की ऐसी लड़की है, जो महत्वाकांक्षी है. ख़्वाब देखने वाली है."
"वो अपना घर चाहती थी, जो उसने हासिल भी किया. हालांकि, वो घर उसके पति के नाम पर था."
एडिथ, उस दौर के उसूलों की बेड़ियों में जकड़े जाने को तैयार नहीं थीं. वो कोई आम बीवी नहीं थीं. उससे भी बड़ी बात ये कि एडिथ का एक आशिक़ भी था, जो एक ख़ूबसूरत और दिलकश नौजवान था, और उम्र में एडिथ से आठ साल छोटा था.
'मैं एक ऐसी महिला से मिली, जो अपने तीन पतियों को खो चुकी थी'
फ्रेडरिक बायवाटर्स, ग्रेडन परिवार को पहले से जानता था. क्योंकि, वो उसी स्कूल में पढ़ते थे, जहां एडिथ के भाई पढ़ाई करते थे. 13 साल की उम्र में फ्रेडी ने लंदन छोड़ दिया था और वे मर्चेंट नेवी में दाख़िल हो गए थे.
जून, 1921 में जब वो घर आया, तो फ्रेडरिक को पर्सी, एडिथ और उसकी बहन एविस ग्रेडन के साथ एक हफ़्ते की छुट्टियां, आइल ऑफ़ वाइट में बिताने का न्यौता मिला.
इन छुट्टियों के बीतते-बीतते, युवा एडिथ और फ्रेडरिक के बीच, चुपके चुपके इश्क़ शुरू हो चुका था. जब फ्रेडरिक को, थॉमसन परिवार के साथ कुछ और हफ़्ते रहने का न्यौता मिला, तो ये इश्क़ और भी परवान चढ़ा.
आख़िर में हुआ यूं कि पर्सी से झगड़े के बाद फ्रेडरिक को, 41 केंसिग्टन गार्डन वाला घर छोड़कर जाना पड़ा. पर्सी, अक्सर अपनी बीवी से भी बदसलूकी करता था. फ्रेडरिक से बहस के दौरान, पर्सी ने एडिथ को उठाकर कमरे के दूसरे कोने में फेंक दिया था, जिससे वो बुरी तरह ज़ख़्मी हो गई थीं.
चूंकि फ्रेडी अक्सर दूर ही रहता थे, तो ये प्रेमी जोड़ा एक दूसरे को अक्सर ख़त लिखा करता था. एडिथ की सख़्त हिदायत थी कि चिट्ठी को पढ़ने के फ़ौरन बाद नष्ट कर दिया जाए.
लॉरा थॉमसन ने अपनी नई किताब में फ्रेडी और एडिथ की इस इश्क़िया ख़त-ओ-किताब का विस्तार से ज़िक्र किया है. वो कहती हैं कि, "दोनों के ख़त ज़बरदस्त दस्तावेज़ हैं. चिट्ठी में मानो एडिथ ने अपने व्यक्तित्व का दूसरा ही पहलू उड़ेलकर रख दिया हो. इनमें खुलकर इज़हार किया गया है."
एडिथ की चिट्ठियों में जज़्बात का समंदर उमड़ता दिखता है. ये ख़त, रोज़मर्रा की ज़िंदगी की हक़ीक़त और ख़्वाबों के बीच उमड़ते घुमड़ते जज़्बात की उड़ान हैं.
एक चिट्ठी में कभी वो दिन की मामूली बातों का ज़िक्र करती हैं, तो अगले ही पल वो यौन संबंधों, गर्भपात और ख़ुदकुशी से जुड़े बेहद निजी ख़यालात का भी इज़हार करती हैं.
एक चिट्ठी में तो ऐसी बातें भी लिखी हैं, जो बेहद कुटिल साज़िश लगती हैं. एडिथ को फिक्शन में बहुत दिलचस्पी थी.
ऐसे में कई बार वो ख़ुद को किसी उपन्यास के किरदार के तौर पर देखती थीं और ऐसा करते हुए वो पर्सी के खाने में कांच के छोटे छोटे टुकड़े मिलाकर, उससे छुटकारा पाने की इच्छा रखने का संकेत देती थीं.
एक चिट्ठी में एडिथ ने लिखा:
'कल मैं एक ऐसी महिला से मिली, जो अपने तीन पति खो चुकी थी और ये युद्ध का दौर नहीं था. उसके दो पति तो डूबकर मर गए थे और एक ने ख़ुदकुशी कर ली थी, और मैं कुछ ऐसे लोगों को भी जानती हूं, जो एक पति से भी निजात नहीं पा रहे हैं. ये कितनी नाइंसाफ़ी है. बेस और रेग, रविवार की शाम को खाने पर आ रहे हैं.'
एक और ख़त में एडिथ लिखती हैं:
'मैं 'लाइट बल्ब' जैसी उम्मीद से उत्साहित थी और मैंने ढेर सारे लाइट बल्ब इस्तेमाल किए इनमें पिसे हुए ही नहीं, कई बड़े टुकड़े भी थे. मगर इनका कोई असर ही नहीं हुआ. मैं बड़ी उम्मीद लगाए बैठी थी कि तुम्हें तार से इसकी ख़बर भेजूंगी. लेकिन, इससे कुछ भी नहीं हुआ.'
यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के प्रोफेसर रीनी वीस ने कई दशकों तक एडिथ के केस को स्टडी किया है. वो मानते हैं कि ये चिट्ठियां 'उबलते रूमानी जज़्बात की कल्पनाओं के इज़हार से ज़्यादा कुछ भी नहीं.'
एडिथ के लिए उनके शब्द जानलेवा साबित हुए.
'उसने ऐसा क्यों किया?'
जिस दिन फ्रेडी ने पर्सी पर हमला किया, उस दिन वो बेलग्रेव के एक बाग़ीचे में पहले से ही घात लगाकर छुपे हुए थे.
3 अक्टूबर, 1922 को एडिथ और पर्सी ने अपनी शाम पिकाडिली के गोल चक्कर पर स्थित, क्राइटन थिएटर में कॉमेडी शो द डिपर्स देखते हुए गुज़ारी. शो ख़त्म होने के बाद, दोनों लिवरपूल स्ट्रीट की एक मेट्रो ट्रेन में सवार हुए. वहां से दोनों ट्रेन से इल्फोर्ड पहुंचे.
जैसे ही वो बेलग्रेव रोड स्थित अपने घर की ओर बढ़े, तो एक शख़्स ने उस जोड़े पर हमला बोल दिया. बाद में जब पुलिस ने एडिथ से पूछताछ की, तो उसने बताया कि हमले से वो बेहोश हो गई थीं. बाद में उसने देखा कि उनके पति ज़मीन पर पड़े हुए हैं.
एक डॉक्टर को बुलाया गया, जिसने बताया कि पर्सी की मौत हो चुकी है.
शुरू में ये सोचा गया कि 32 साल के पर्सी की मौत अचानक ख़ून बहने से हुई है. लेकिन, जब पुलिस ने पर्सी की लाश की पड़ताल की, तो उनकी गर्दन पर छुरे से वार के निशान मिले. दिन कि रोशनी में देखा गया कि पर्सी के ख़ून के छींटे सडक पर, 44 फुट (13 मीटर) के दायरे में फैले हुए थे.
पर्सी के भाई ने पुलिस को बताया कि उन्हें फ्रेडी से पूछताछ करनी चाहिए, जो दो हफ़्ते पहले ही लंदन लौटा था. फ्रेडी की मां के घर में उनके कमरे की तलाशी ली गई और वहीं से एडिथ का फ्रेडी के नाम भेजा गया पहला प्रेम पत्र बरामद हुआ.
इल्फोर्ड पुलिस थाने के एक गलियारे में तफ़्तीश करने वालों ने कुछ ऐसा इंतज़ाम किया, जिससे एडिथ और फ्रेडी एक दूसरे की आंखों में आंखे डालकर देख सकें.
पुलिसवालों को ये उम्मीद थी कि इस तरह एडिथ अपने जुर्म का इक़बाल कर लेंगी. आमने-सामने की इस पूछताछ के बाद, एडिथ ने रोते हुए कहा, "उसने ऐसा क्यों किया? मैं उससे ऐसा करने की उम्मीद नहीं रखती थी. हे भगवान, हे भगवान. मैं क्या कर सकती हूं? मुझे सच बताना ही होगा."
जहाज़ मोरिया में फ्रेडी के केबिन की तलाशी ली गई और वहां एक बक्से में बंद कुछ और ख़त बरामद हो गए. इनमें वो चिट्ठी भी शामिल थी, जिसमें एडिथ ने पर्सी से छुटकारा पाने की ख़्वाहिश का इज़हार किया था.
फ्रेडी ने पर्सी को छुरा घोंपने से इनकार नहीं किया. लेकिन, उन्होंने ये दावा किया कि पहले पर्सी ने उस पर हमला किया था और उसने तो अपनी हिफ़ाज़त के लिए उस पर पलटवार किया.
जब पुलिस ने फ्रेडी को बताया कि एडिथ पर भी क़त्ल का केस चलेगा, तो फ्रेडी ने जवाब दिया, "उसे क्यों मुल्ज़िम बनाओगे? मिसेज थॉमसन को तो मेरी गतिविधियों की ख़बर तक नहीं थी."
पहली रात का माहौल क्या था'
मुक़दमे की ज़िरह से पहले चिट्ठियों के मज़मून, अख़बारों में ख़ूब छापे. मुल्ज़िम, एक सामाजिक झंझावात में घिर गए थे.
लॉरा थॉमसन कहती हैं कि, "फ्रेडी और एडिथ जादुई हस्ती बन गए. उनके नाम को सेलिब्रिटी का दर्जा हासिल हो गया. फ्रेडी तो जैसे रूपर्ट ब्रुक किरदार बन गए हों, और ऐसा लगता है कि एडिथ के इर्द गिर्द तो कामुकता का ताना-बाना बुन दिया गया था.'
6 दिसंबर, 1922 को क़त्ल के मुक़दमे की सुनवाई के लिए एडिथ और फ्रेडी को ओल्ड बेली की अदालत के ठसा-ठस भरे हुए कमरे में लाया गया.
लंदन की इस मशहूर अदालत के बाहर भारी भीड़ जमा हो गई थी. अदालत में जनता के बैठने वाला हिस्सा तो मानो लंदन की सबसे महंगी जगह हो गया था.
मुक़दमे की सुनवाई नौ दिन तक चली. सुनवाई के आख़िरी दिनों में बेरोज़गार नौजवान, हर रात अदालत की इमारत के बाहर इकट्ठे होते और फिर सुबह होने पर वे क़तार में अपनी जगह को, उस वक़्त ब्रिटेन की औसत रोज़ाना मज़दूरी से कई गुना ज़्यादा क़ीमत पर बेच देते थे.
लेखक बेवर्ली निकोलस, उस वक़्त एक नौजवान संवाददाता थे और वे मुक़दमे की पूरी सुनवाई के दौरान मौजूद रहे थे. उनके लिए ये मुक़दमा, "रोमन साम्राज्य के उस दौर की तरह था, जब ईसाइयों को शेरों के आगे फेंक दिया जाता था."
1973 में बीबीसी रेडियो के एक कार्यक्रम में बेवर्ली ने बताया था कि किस तरह ओल्ड बेली का माहौल 'शादी की पहली रात जैसा था'.
"वहां पर तरह तरह के लोग जमा होते थे. ठीक वैसे ही जैसे स्टाल में सज-धजकर खड़े होते हैं. समाज के ऊंचे तबक़े की औरतें, सनसनी के तलबगार और वे सबके सब इस मुक़दमे को इस तरह देखने आते थे, मानो उन्होंने ये मुक़दमा देखने के पैसे अदा किए हों.'
मैडम तुसाद म्यूज़ियम के कलाकार भी कोर्ट नंबर एक में मौजूद हुआ करते थे. वे लंदन के दो सबसे नए खलनायकों के रेखाचित्र बनाया करते थे, ताकि बाद में म्यूज़ियम के चैंबर ऑफ़ हॉरर्स में उनके आदमकद बुत लगाकर भीड़ जुटा सकें.
'एक ढीठ और ख़ुदग़र्ज़ औरत'
पुलिस के लिए एक अहम सबूत, प्रेम पत्रों के मज़मून थे. जब उन्हें भरी अदालत में ज़ोर ज़ोर से पढ़ा जाता था. उस वक़्त जनता की तरफ़ से ज़बरदस्त शोरगुल उठता था. इसके बाद, जूरी के सदस्यों को वो ख़त मन में ही पढ़ने को कहा गया.
लॉरा थॉमसन कहती हैं कि, "उन ख़तों को भरी अदालत में पढ़े जाने की यातना- उसके बारे में सोचकर ही मुझे सिहरन होती है. वो बेहद निज़ी और रूमानी लफ़्ज़ खुलकर पढ़े जा रहे थे और जनता ऐसा बर्ताव कर रही थी."
"मानो सनकी पागलों का जमघट वो बेहद निजी वार्तालाप सुनने के लिए ही लगा हो. मुझे लगता है कि ये तो किसी को भावनात्मक रूप से टॉर्चर करने जैसा था."
प्रोफ़ेसर वीस कहते हैं कि एडिथ से नफ़रत की एक वजह शायद इस मुक़दमे की टाइमिंग भी थी. क्योंकि ये मुक़दमा, पहले विश्व युद्ध के बाद के दौर में चलाया जा रहा था.
प्रोफेसर वीस कहते हैं, "माहौल ऐसा बन गया था कि ब्रिटेन में युद्ध से बेवा हुई औरतों का हुजूम इकट्ठा था और यहां एक मामूली तबक़े से आने वाली ढीठ और स्वार्थी महिला थीं, जिनके पास सब कुछ था. वे ख़ूबसूरत थी."
"उनका एक प्यारा सा मकान था. अच्छा पति था. वे नाच गाने की महफ़िलों में जाती थीं. थिएटर देखा करती थीं. दावतें करती थीं. और देखो, उसने ये क्या किया. उसके लिए शायद एक अच्छा आदमी पर्याप्त नहीं था."
प्रोफ़ेसर वीस बताते हैं कि, "जनता, फ्रेडी को ख़ूब पसंद करती थी, लेकिन एडिथ से नफ़रत करती थी. उनकी नज़र में एडिथ एक ऐसी खलनायिका थीं, जिसने एक नौजवान को रिझाकर अपने बस में कर लिया था और उससे ऐसे हालात बने जिसके चलते पहले एक आदमी की मौत हुई और अब एक युवक का सूली पर चढ़ना तय दिख रहा था."
'वो औरत दोषी नहीं है'
हॉलोवे जेल में सूली पर लटकाए जाने के वक़्त, 29 साल की एडिथ के पास वोट देने का अधिकार नहीं था.
जिस तरह अवाम एडिथ से नफ़रत करती थी. उसी तरह जस्टिस शियरमैन भी उनसे घृणा करते थे. मुक़दमे की सुनवाई के दौरान, वे अक्सर पुलिस की तरफ़ से दख़ल देते थे.
ज़िरह के बाद मुक़दमे को समेटते हुए, जस्टिस शियरमैन ने जूरी के सदस्यों- जिन्हें वे केवल महानुभाव कहते थे, जबकि उसमें दो महिलाएं भी थीं- से बताया कि वो एडिथ के व्यभिचार के बारे में क्या सोचते थे:
उन्होंने कहा, "मुझे यक़ीन है कि सही दिमाग़ वाले किसी भी दूसरे इंसान की तरह आप लोग भी इस ख़याल भर से घृणा से भर उठते होंगे."
एडिथ के ख़िलाफ़ कोई ठोस सुबूत नहीं था. पर्सी के शव में ज़हर और कांच के टुकड़े होने की जांच की गई थी और उसमें कुछ भी नहीं निकला था, जो एडिथ के ख़िलाफ़ सबूत बन सकता.
क़त्ल की रात के गवाहों के बयानों से भी एडिथ के उस दावे की तस्दीक़ हुई थी कि वे अपने पति के ऊपर हुए हमले से हैरान रह गई थीं.
एडिथ के वकील की तमाम अपीलों के बावजूद एडिथ ने कटघरे में खड़े होकर सबूतों पर बयान दिया. लॉरा थॉमसन कहती हैं, "मेरी नज़र में एडिथ का वो क़दम उनकी बेगुनाही का संकेत था कि आप इस क़दर अड़े हुए हैं कि आप वो करना चाहते हैं."
लेकिन, एडिथ ने एक भयानक ग़लती कर दी थी. पुलिस ने चिट्ठी में लिखी उनकी बातों को उनके ख़िलाफ़ इस्तेमाल किया. उसमें से ग़लत निष्कर्ष निकाले और उन्हें 'मुजरिम ठहराने के लिए' चिट्ठियों की भटकाने वाली तारीख़ बताई.
मामला 11 दिसंबर को जूरी के पाले में गया. क़रीब दो घंटे तक सलाह मशविरे के बाद, बुरी तरह डरी हुईं एडिथ को लगभग टांगकर अदालत में लाया गया, जहां उन्हें और फ्रेडी को क़त्ल का दोषी करार दिया गया.
अदालत में हंगामे के बीच फ्रेडी ने रोते हुए कहा कि, "जूरी का फ़ैसला ग़लत है. वो महिला दोषी नहीं हैं' जब जस्टिस शियरमैन ने जोड़े को मौत की सज़ा सुनाई, तो उनकी विग के ऊपर काली टोपी रख दी गई.
जब एडिथ को जेल की कोठरी की तरफ़ ले जाया जा रहा था, तो वे दहाड़ें मारकर रो रही थीं.
'उसके पास बचने का कोई मौक़ा था ही नहीं'
एडिथ, फांसी पर चढ़ाए जाने से एक दिन पहले अपने मां-बाप से आख़िरी बार मिली थीं.
फ्रेडी को फांसी के फंदे से बचाने के लिए शुरू की गई एक याचिका पर दस लाख से ज़्यादा लोगों ने दस्तख़त किए. हालांकि, ऐसा लगता है कि एडिथ के प्रति किसी को हमदर्दी नहीं थी.
लॉरा थॉमसन कहती हैं, "महिलाएं उसे नापसंद करती थीं क्योंकि वे उनसे डरती थीं; वो उन औरतों में से थी, जिनके बारे में दूसरी औरतों का ख़याल था कि मर्द वैसी ही औरतें चाहते हैं और उसने ख़ुद को परेशानी में डाला था इसलिए उनके प्रति दया नहीं दिखाई जा सकती थी."
अख़बारों में लोगों ने लेख लिखे और इनमें से ज़्यादातर बेहद तल्ख़ थे. द टाइम्स ने लिखा, 'इस केस में ऐसे हालात कभी नहीं बने कि तिनका भर भी हमदर्दी जताई जा सके. ये पूरा मुक़दमा बेहद सीधा और अनैतिक था.'
स्वघोषित महिलावादी रेबेका वेस्ट ने तो यहां तक लिखा कि एडिथ 'एक ग़रीब बच्ची थी. समाज को सदमा देने वाला कचरे का एक टुकड़ा थी.'
फांसी दिए जाने के बाद महिलाएं, ब्रिटेन के गृह मंत्री विलियम ब्रिजमैन को चिट्टी लिखकर उन्हें महिलाओं के मान की हिफ़ाज़त करने के लिए शुक्रिया कहती थीं, क्योंकि उन्होंने मौत की सज़ा को कम करने की इजाज़त नहीं दी थी.
एडिथ ने जेल से चिट्ठियां लिखीं. उसमें फ़रामोश कर दी गई एक औरत का दर्द बयां किया गया था.
अपने मां-बाप के नाम लिखे एक ख़त में एडिथ ने लिखा, "ऐसा लगता है कि आज सब कुछ ख़त्म हो गया है. मैं कुछ भी सोच नहीं पा रही हूं. ऐसा लगता है कि मैं एक सूनी मोटी दीवार के सामने खड़ी हूं, जिसके उस पार न तो मेरी आंखें देख सकती हैं, न मेरे जज़्बात उससे पार पा सकते हैं."
"मुझमें ये ताब नहीं है कि मैं ये सोचूं कि मुझे ये सज़ा ऐसे जुर्म की मिली है, जो मैंने किया ही नहीं. जिसकी मुझे ख़बर तक नहीं थी. न तो पहले और न ही उस वक़्त."
पहले के दशकों में मौत की सज़ा पाने वाली हर महिला को रियायत दे दी गई थी. लेकिन, एडिथ की ओर से दाख़िल की गई सभी अर्ज़ियां ख़ारिज कर दी गईं.
लॉरा थॉमसन कहती हैं, "जब आप ये देखते हैं कि एडिथ को फांसी की सज़ा सुनिश्चित करने के लिए गृह मंत्रालय किस हद तक गया, तो वो बेहद भयावह लगता है."
लॉरा मानती हैं कि एडिथ के व्यभिचार को 'नैतिकता पर हमला' माना गया था. ये ऐसा बर्ताव था, जिससे 'शादी की व्यवस्था और उसकी सभी ख़ूबियों के तबाह होने का डर था.'
'अब कम से कम वो उनके साथ तो है'
एडिथ के शव को आख़िर में सिटी ऑफ़ लंदन के क़ब्रिस्तान में ले जाकर उनके मां-बाप के साथ दफ़्न किया गया था.
सितंबर 1923 को थॉमसन परिवार के घर के सामान की नीलामी, एडिथ के घर में हुई थी. घर के बगीचे से लेकर सड़क तक, लोगों का हुजूम जमा हो गया था. वो सब एडिथ की ज़िंदगी का एक न एक टुकड़ा हासिल करना चाहते थे.
नीलामी करने वाले एक कर्मचारी ने बताया, "घर के निजी बग़ीचे की एक एक पत्ती तक तोड़ ली गई थी, ताकि नीलामी में शामिल लोग अपने दोस्तों से ये बता सकें कि उन्हें भी एडिथ के घर से कुछ हासिल हुआ था."
एडिथ और फ्रेडी के मोम के पुतले, मैडम तुसाद में आकर्षण का सबसे बड़ा केंद्र बन गए थे. ये इस बात की मिसाल है कि इस जोड़े के प्रति सम्मोहन में ज़रा भी कमी नहीं आई थी.
आख़िर में उनके पुतलों को 1980 के दशक में चैंबर ऑफ़ हॉरर्स से हटा लिया गया था. आज उन्हें म्यूज़ियम के तहख़ाने में रखा गया है, जहां पुतलों का मोम गल रहा है और रंग उधड़ रहा है.
प्रोफ़ेसर वीस ने कई बरस तक एडिथ को माफ़ी दिलाने की लड़ाई लड़ी है. 2018 में एडिथ के शव को मैनर पार्क स्थित सिटी ऑफ़ लंदन क़ब्रिस्तान में उनके मां बाप के साथ दोबारा दफ़नाया गया था.
प्रोफ़ेसर वीस कहते हैं, "मैं उनकी मां की अंतिम इच्छा पूरी करने की उम्मीद लगाए था. कम से कम अब वो उनके साथ तो है.'
लॉरा थॉमसन की नज़र में, जो कुछ एडिथ के साथ हुआ वो आज भी प्रासंगिक बना हुआ है, भले ही ब्रिटेन में मौत की सज़ा ख़त्म हुए 50 साल से ज़्यादा वक़्त बीत चुका हो.
वो कहती हैं, "लोगों को ये याद दिलाते रहना ज़रूरी है कि कुछ भी नहीं बदलता है. पूर्वाग्रह हमेशा बने रहते हैं. बस इनका रंग रूप बदल जाता है."
लॉरा थॉमसन कहती हैं, "इस कहानी से एक भयावह चेतावनी मिलती है कि आप जिनके प्रति बुरे ख़याल रखते हैं, उनको लेकर अपने बुरे से बुरे ख़याल पर लगाम लगाकर रखें."
"हम आज भी ख़ारिज किए जाने की संस्कृति में जी रहे हैं. एडिथ को समाज से ख़ारिज ही तो किया गया था. ये बहुत, बहुत ख़तरनाक लालसा होती है, मगर समाज इसकी अनदेखी नहीं कर पाता."