दलित- मुस्लिम और ब्राह्मण फैक्टर पर प्रभावी समीकरण बनाने की कोशिश में रहेंगे सपा- कांग्रेस व बसपा के रणनीतिकार

दलित- मुस्लिम और ब्राह्मण फैक्टर पर प्रभावी समीकरण बनाने की कोशिश में रहेंगे सपा- कांग्रेस व बसपा के रणनीतिकार

••कांग्रेस के 70 साल के सत्ता संग्राम में इन तीनों ने ही उसे हर बार जिताया था

ब्यूरो डॉ योगेश कौशिक

बागपत। पश्चिम यूपी में दलित - मुस्लिम के समीकरण को फिर एकबार साधने की कोशिश के साथ ही ब्राह्मण वोटर को टिकट में तरजीह देने की पहल करने में सपा अथवा बसपा में से जो भी सफल रहेगी, वही भाजपा- रालोद गठबंधन से मुकाबला कर सकेगी। माना जा रहा है कि, ये दोनों ही दल पश्चिम में इस समीकरण के साथ ही गुर्जर, कश्यप व वैश्य जाति के जिताऊ उम्मीदवार की भी खोजबीन में   लगे हैं। 

पश्चिम की ज्यादातर सीटों पर दलित व मुस्लिम 25-35 प्रतिशत हैं जबकि ब्राह्मण 9- 14 प्रतिशत बताए जाते हैं। कांग्रेस की 70 साल के शासन में यही वर्ग उसके वोटर हुआ करते थे और कांग्रेस एकतरफा जीत हासिल करती रही थी, लेकिन कांग्रेस से दलितों के बसपा में चले जाने और मुस्लिम के सपा के वोटर बनने और ब्राह्मण के भाजपा में जाना ही कांग्रेस की कमजोरी का कारण रहा है। 

हाल के मंत्री मंडल विस्तार और रालोद द्वारा टिकट वितरण में जहां योगी जी ने पश्चिम के ब्राह्मण नेता सुनील शर्मा को मंत्री बनाकर, ब्राह्मणों को साधने की कोशिश की है, वहीं जयंत चौधरी ने अनिल कुमार को मंत्री बनवा कर दलित वोटरों को गठबंधन को ओर आकर्षित करने की कोशिश की है। वहीं यदि कांग्रेस- सपा गठबंधन या फिर बसपा दलित- मुस्लिम और ब्राह्मण समीकरण के साथ ही दूसरी बिरादरी को जोडते हुए प्रभावी भूमिका निभाएं तथा इसके अनुरूप प्रत्याशी मैदान में उतारते हैं, तो भाजपाई मंसूबे हवा हवाई भी हो सकते हैं।

यहाँ एकबात ओर लोगों के जहन में घर कर रही है कि, किसी भी पार्टी द्वारा प्रत्याशियों का चयन सैद्धांतिक या वैचारिक आधार पर नहीं ,बल्कि आयाराम गयाराम नीति के तहत केवल समीकरण और उसकी जिताऊ संभावना को देखकर ही टिकट दिया जाता है तथा ऐसे ही गठबंधन बनते बिगडते रहे हैं। इसलिए आखिर में योग्यता के बदले जातीय समीकरण हावी हो जाते हैं, जिससे स्वस्थ लोकतंत्र की संभावना पर बुरा असर पडता रहा है।