बीज में वृक्ष देखने वाले किसान की तरह दृष्ट में अदृष्ट को जानने वाला ही ज्ञानी : विशुद्ध सागर
संवाददाता नीतीश कौशिक
बडौत। अशुद्ध में शुद्ध द्रव्य को निहारने वाला ही सच्चा ज्ञानी है तथा अमुक्त दशा में शुद्ध द्रव्य का जिसे बोध होता है वह प्रज्ञ-पुरुष होता है। कृषक बीज में वृक्ष को निहारता है, तभी वह चमकते बीज को खेत की मिट्टी में डालता है। ग्वालिन को भी दुग्ध में घृत दिखाई देता है, तभी वह दही जमाकर बिलोनल कर घृत निकालती है।इसलिए जो अदृष्ट को जानता है, वही ज्ञानी है। दृष्ट के साथ अदृष्ट को भी निहारना चाहिए। उक्त उद्बोधन धर्मसभा में जैनाचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज ने किया।
उन्होंने कहा कि, व्यक्ति जन्म से महान नहीं होता, अपितु सुखद कार्यों से व्यक्ति, महानता को प्राप्त करता है। कहा कि, दुनिया के लोग जीवन जीना सिखाते हैं, परन्तु मरने की कला एक मात्र जैन दर्शन ही सिखाता है।जैनाचार्यों ने विश्व वसुधा को ,विशिष्ट विचार, आचार, अध्यात्म के साथ-साथ विशाल दृष्टि भी प्रदान की है। जहाँ जगत के सोच का अंत हो जाता है, उससे भी अधिक आगे से जैनाचार्यों का विराट् सोच प्रारम्भ होता है। कहा कि, जिनशासन के दिगम्बर मुनि जन-जन में सत्य अहिंसा, सत्य, सदाचरण का सद्बोध देते हैं। जैन दर्शन ने विश्व संस्कृति को साहित्य एवं पुरातत्त्व का विपुल भण्डार दिया है। जिन भक्त हमारी संस्कृति, धर्म एवं समाज की उन्नति के लिए सजग रहते है। व्यसन मुक्त, सदाचरण सहित नागरिक ही विश्व शांति के प्रतीक हैं।सभा का संचालन पं श्रेयांस जैन ने किया। सभा मे सुरेंद्र जैन, प्रवीण, अनिल, सुनील जैन, नवीन बब्बल, दीपक जैन, सतीश जैन, विनोद एडवोकेट उपस्थित थे।