पेट भरने के लिए जान जोखिम में सरकार के बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ नारे को  झिझोड़ती यह तस्वीर!

पेट भरने के लिए जान जोखिम में सरकार के बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ नारे को  झिझोड़ती यह तस्वीर!

 मवाना इसरार अंसारी। पाठकों जहां बड़े-बड़े नेताओं समाजसेवियों एवं क्षेत्र में होने वाली हर एक गतिविधियां दैनिक अखबारों की सुर्खियां बनी रहती हैं वही जान जोखिम में डालकर अपने एवं अपने परिवार के पेट की भूख मिटाने एवं अपना जीवन यापन करने के लिए एक हमारे समाज में पैदा हुई एक नन्ही परी अपना जीवन दाव पर लगाकर रस्सी पर करतब दिखाते हुए चंद् रुपया कमाती हैं। किसी समाचार पत्र मैं इनका दर्द बांटने वाला शायद कोई हो नगर के विभिन्न स्थानों पर अपनी रस्सी बल्ली गॉड कर 7 वर्ष की मासूम लड़की अपनी जान की परवाह किए बगैर अपने परिवार का पालन पोषण करने के लिए रस्सी पर चलकर अपना करतब दिखाती है और कुछ पैसे लोग बच्ची का हैरतअंगेज करतब देख कर देते हैं लेकिन सरकार के बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा इस नन्ही लड़की के परिश्रम के आगे बोना साबित हो रहा है। मंगलवार को नगर में एक छोटी सी नन्ही लड़की अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए रस्सी पर चलकर करतब दिखा रही थी यह नजारा देखकर मन में एक ही सवाल करवटें लेने लगा के वाह रे मेरे भारत और देश की सरकार जहां बच्चों के लिए रोज कानून और उन पर करोड़ों रुपए खर्च हो रहे हैं शायद कोई शहर गांव देहात ऐसा हो कि जिस में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा दीवारों पर ना लिखा हो क्या सरकारों द्वारा करोड़ों रुपए खर्च कर केवल दीवारों पर बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के नारे लिखने से काम चल जाएगा। एक तरफ जहां हमारे भारत में जंगली जानवरों के खेल दिखाने पर प्रतिबंध है वही एक भविष्य की नारी आज का बचपन 10 डिग्री तापमान में भरी सर्दी में अपने परिवार का पेट पालने के लिए अपनी जान की परवाह किए बगैर रस्सी पर चलकर करतब दिखाने को मजबूर है। हमारे देश में अगर कोई गरीब परिवार बच्चे को स्कूल भेजने मैं सक्षम ना हो और वह परिवार अपने बच्चे को किसी चाय या किसी होटल पर नौकरी पर छोड़ दे तो हमारे देश का कानून उस दुकानदार को दंडित करता है। सरकारी स्कूलों की व्यवस्था तो किसी से छुपी नहीं है मगर हमारी पूर्व की सरकारो एवं वर्तमान सरकार ने इस तरफ ध्यान देना जरूरी नहीं समझा की एक गरीब परिवार आखिर किस कारण 7 वर्ष की नन्ही बच्ची से करतब दिखाकर अपना पेट पालने को मजबूर क्यों है। क्या यही है हमारा आत्मनिर्भर भारत? क्या सरकार के पास इनके लिए कोई कार्ययोजना नहीं है? क्या इनके लिए कोई भारत के संविधान में प्रवधान नहीं है? क्या इस समाज के लोग अपनी बच्चियों को रस्सियों पर चला कर अपने परिवार का पालन पोषण करते रहेंगे? क्या यह लोग भारतीय नहीं है क्या इस समाज के लोगों के बच्चों को शिक्षा प्रदान करने के लिए सरकार की कोई कार्य योजना नहीं है? क्या इस समाज के लोग अपनी बच्चियों को ऐसे ही रस्सी पर चलकर फिल्मी गीतों के सैड सॉन्ग पर करतब दिखाने की जिंदगी देते रहेंगे? क्या इन बच्चियों के बड़े सपने नहीं हो सकते क्या पढ़ लिख कर कुछ बनने की उनकी सोच नहीं है सच तो यह है जनाब सपने सब देखते हैं लेकिन सपने तो तभी पूरे होते हैं जब उन्हें सपना पूरा करने के लिए दिशा मिले?