डॉ. बी. के. जैन को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित, नेत्र चिकित्सा और समाज सेवा में पांच दशकों का अतुलनीय योगदान।

डॉ. बी. के. जैन को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित, नेत्र चिकित्सा और समाज सेवा में पांच दशकों का अतुलनीय योगदान।

चित्रकूट: श्री सदगुरू नेत्र चिकित्सालय के निदेशक, डॉ. बी. के. जैन को नेत्र चिकित्सा के क्षेत्र में उनके पाँच दशकों के अतुलनीय योगदान के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। यह सम्मान उन्हें पुणे (महाराष्ट्र) में आयोजित एक भव्य समारोह में दिया गया, जहां काइनेटिक ग्रुप ऑफ कम्पनी के चेयरमैन श्री अरुण फिरोदिया ने उन्हें यह प्रतिष्ठित पुरस्कार प्रदान किया।

समारोह में उपस्थित थे नेत्र चिकित्सा क्षेत्र के अनेक विशिष्ट डॉक्टर और विशेषज्ञ, जिनमें डॉ. मधुसूदन झामवर (प्रेसिडेंट), डॉ. सतीश देसाई (अध्यक्ष), डॉ. राजेश पवार (सचिव) और डॉ. पी. डी. पाटिल जैसे प्रमुख व्यक्ति शामिल थे। इस अवसर पर डॉ. जैन को उनके द्वारा किए गए उत्कृष्ट कार्य के लिए पुणे नेत्र सेवा प्रतिष्ठान की ओर से यह पुरस्कार दिया गया।

नेत्र चिकित्सा के क्षेत्र में डॉ. बी. के. जैन ने अपनी पहचान बनाई है। वे पिछले पचास वर्षों से नेत्र सेवा में सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं और लाखों लोगों की दृष्टि को पुनः बहाल कर चुके हैं। उनकी मेहनत, समर्पण और दीर्घकालिक कार्यों ने उन्हें ना केवल भारत में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सम्मानित किया है। डॉ. जैन का कहना है कि उनका कार्य सिर्फ चिकित्सा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक गहरी मानवीय सेवा है, जिसमें हर मरीज के साथ सहानुभूति और करुणा का भाव रखना महत्वपूर्ण है।

नेत्र चिकित्सा और सामाजिक दायित्व में संतुलन

डॉ. जैन ने हमेशा से यह माना है कि चिकित्सा सेवा के साथ-साथ सामाजिक जिम्मेदारी भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। वे न केवल एक कुशल चिकित्सक हैं, बल्कि एक संवेदनशील समाजसेवी भी हैं। उनका कहना है, "स्वास्थ्य और चिकित्सा का काम सिर्फ इलाज करने तक सीमित नहीं है, यह समाज की भलाई के लिए भी है। जब तक हम अपने कार्य से समाज में सकारात्मक बदलाव नहीं लाते, तब तक हम अपने कर्तव्य को पूरा नहीं मान सकते।"

इसके अलावा, डॉ. जैन नेत्र चिकित्सा के साथ-साथ अनुशासन और नैतिकता पर भी जोर देते हैं। उनका मानना है कि अनुशासन जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता है, क्योंकि एक अनुशासित व्यक्ति ही अपने जीवन में स्थिरता और सफलता प्राप्त कर सकता है। डॉ. जैन अपने कार्यों के साथ-साथ अपनी पूरी टीम के समर्पण और मेहनत को सराहते हुए कहते हैं, "मैंने जितनी भी उपलब्धियाँ पाई हैं, वह मेरी टीम के बिना संभव नहीं हो पातीं। मैं तो बस एक निमित्त मात्र हूं, असली मेहनत हमारे स्टाफ और सदगुरू परिवार के कार्यकर्ताओं ने की है।"

समाज में बदलाव की दिशा में कार्य

डॉ. जैन ने हमेशा अपने पेशेवर जीवन को सामाजिक बदलाव के साधन के रूप में देखा है। वे मानते हैं कि समाज की भलाई के लिए हर व्यक्ति को अपनी भूमिका निभानी चाहिए, चाहे वह चिकित्सा के क्षेत्र में हो, शिक्षा में हो, या अन्य किसी सेवा में। वे अक्सर अपने कर्मचारियों को प्रेरित करते हैं कि वे अपनी जिम्मेदारियों को पूरी ईमानदारी से निभाएँ और मरीजों के साथ संवेदनशीलता के साथ पेश आएं।

उनका दृष्टिकोण है कि एक चिकित्सक का काम सिर्फ बीमारी का इलाज करना नहीं होता, बल्कि मरीज के मनोबल को भी ऊंचा उठाना होता है। उनका यह कार्य उनकी टीम और उनके द्वारा स्थापित श्री सदगुरू नेत्र चिकित्सालय के द्वारा बखूबी किया जा रहा है, जहाँ मरीजों को न केवल इलाज मिलता है, बल्कि उन्हें मानसिक शांति भी मिलती है।

सम्मान और पुरस्कार: एक प्रेरणा

नेत्र चिकित्सा के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए उन्हें अनेक पुरस्कारों और सम्मान से नवाजा जा चुका है। राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्हें मिली उपलब्धियाँ न केवल उनकी मेहनत का परिणाम हैं, बल्कि यह उनके जीवन के प्रति उनके समर्पण को भी दर्शाती हैं। उनका जीवन एक प्रेरणा है उन सभी के लिए जो समाज सेवा में अपना योगदान देना चाहते हैं।

यह राष्ट्रीय पुरस्कार उनके जीवन के सफर को और भी महत्वपूर्ण बनाता है, क्योंकि यह न केवल उनके व्यक्तिगत संघर्ष और सफलता का प्रतीक है, बल्कि यह उन सभी लोगों के लिए एक प्रेरणा भी है जो समाज के लिए कुछ अच्छा करना चाहते हैं। डॉ. जैन का मानना है कि सम्मान प्राप्त करना सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि उस संस्था और टीम का सम्मान होता है जो उसके साथ मिलकर कार्य करती है।

इस सम्मान के बाद उन्हें बधाइयों का तांता लग गया है, और हर कोई उनके कार्यों और समर्पण की सराहना कर रहा है। डॉ. जैन का यह सम्मान एक उदाहरण है कि अगर किसी व्यक्ति का मनोबल मजबूत हो और वह अपने कार्य के प्रति निष्ठावान हो, तो वह किसी भी लक्ष्यको प्राप्त कर सकता है।