सूरज देव के अरघ के लीला निराला हर घर में छठी माई के उजाला गौतमबुद्ध नगर में छठ पर्व की रही धूम

महेंद्र राज (मण्डल प्रभारी)

भारतीय संस्कृति विभिन्न रंगों और संस्कृतियों की विविधताओं को अपने आप में समेटे हुए है। गौतमबुद्ध नगर नोएडा में छठ पूजा का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है।चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व की श्रंखला "नहाय खाय"से शुरू हो कर तीन दिनों में गहराती जा रही है। मूलत:बिहार प्रांत व उ.प्र के पूर्वी जनपदों में मनाया जाने वाला यह पर्व अपने आप में विभिन्न धार्मिक मान्यताओं को समेटे हुए है।

छठ पर्व मूलतःसूर्य की आराधना का पर्व है, जिसे हिन्दू धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है। हिन्दू धर्म के देवताओं में सूर्य ऐसे देवता हैं जिन्हें मूर्त रूप में देखा जा सकता है।सूर्य की शक्तियों का मुख्य श्रोत उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा हैं।छठ में सूर्य के साथ-साथ दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना होती है।


महाभारत काल में द्रौपदी परिवार की सुख-शांति और रक्षा के लिए छठ का पर्व बनाया था। जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा।उनकी मनोकामनाएं पूरी हुईं और पांडवों को राजपाट वापस मिल गया।लोक परंपरा के अनुसार, सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है।

छठ पूजा में बांस की बनी डाली का खास महत्व है।इस डाली में विभिन्न प्रकार की पूजन सामग्रियों को सजाया जाता है, जिन्हें व्रती छठ घाट पर लेकर जाती हैं। माना जाता है कि इन सामग्रियों के साथ छठ मईया को अर्घ्य देने से परिवार में सुख, समृद्धि और हर प्रकार की मनोकामना पूरी होती है।छठ महापर्व में बांस की बनी डाली का उपयोग पुरानी परंपरा का हिस्सा है।बांस की डाली में रखी वस्तुएँ प्राकृतिक और शुद्ध होती हैं,जो इस पर्व की पवित्रता को बढ़ाती हैं।इसमें फल, फूल और प्रसाद को विशेष रूप से रखा जाता है,जिन्हें अर्घ्य देने के लिए छठ घाट तक ले जाया जाता है।इस यात्रा को पवित्र माना जाता है और भक्त अपने कांधों पर या सिर पर डाली को ले जाकर छठी मईया के प्रति अपनी आस्था प्रकट करते हैं।