33 वीं पुण्यतिथि के अवसर पर विशेष, स्व चौधरी टीकाराम की याद करो कुर्बानी
अंग्रेजी हुकूमत की लाठियां खाते रहे, कील ठोक दी गई ,फिर भी इंकलाब जिंदाबाद कहते रहे
ब्यूरो डॉ योगेश कौशिक
बडौत।शहजाद राय शोध संस्थान ने भुला दिए गए क्रांतिकारी टीकाराम को गहन शोध के बाद प्रस्तुत करते हुए बताया कि,भारत की आजादी आंदोलन में लाखों क्रांतिकारियों की गतिविधियों से संपूर्ण विश्व में भारतीय आजादी आंदोलन को महत्वपूर्ण स्थान दिलवाया। संस्थान की भारतीय आजादी आंदोलन सर्वेक्षण समिति द्वारा नित नवीन अज्ञात अनाम शहीदों क्रांतिकारी एवं शहादत स्थलों का शोध खोज अभियान जारी है! इसी श्रंखला में एक नया नाम बिजवाड़ा गांव के भारतीय आजादी आंदोलन में हिस्सा लेने वाले क्रांतिकारी चौधरी टीकाराम सुपुत्र रामचंद्र तोमर का भी सामने आया है।
क्रांतिकारी चौ टीकाराम पर विशेष शोध करने के उपरांत निष्कर्ष की जानकारी देते हुए शहजाद राय शोध संस्थान के निदेशक डॉ अमित राय जैन ने बताया कि ,चौ टीकाराम का जन्म सन 1899 में हुआ और उनका स्वर्गवास 6 अक्टूबर 1991 में 92 वर्ष की आयु में उनके अपने पैतृक गांव बिजवाड़ा में ही हुआ। चौधरी टीकाराम के दत्तक पुत्र भोपाल सिंह एवं उनके पुत्र सहदेव सिंह से निरंतर 3 वर्षों तक इस विषय की जानकारी सिलसिलेवार प्राप्त की गई और सरकारी दस्तावेजों व अभिलेखागारों में प्राप्त दस्तावेजों के आधार पर पुष्टि हुई है कि, चौ टीकाराम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए आजादी आंदोलन की प्रत्येक गतिविधि में हर्षोल्लास पूर्वक शामिल हुए और उन्होंने निकटवर्ती जाट बाहुल्य गांवों में जा जाकर सफलतापूर्वक क्रांतिकारी गतिविधियों का संचालन किया।
क्रांतिकारी टीकाराम पहली बार 16 वर्ष की आयु में आजादी आंदोलन में हिस्सा लेने के कारण मेरठ जेल में गए उसके बाद दो बार दिल्ली स्थित जेल में भी अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें कैद किया । उस समय उनकी आयु करीब 21 वर्ष की थी।6 महीने का आजीवन कारावास के साथ उनके ऊपर ₹15 का जुर्माना भी लगाया गया था, परंतु ₹15 का जुर्माना जमा नहीं किए जाने के कारण उन्हें एक माह अतिरिक्त जेल में रखा गया । उस समय दिल्ली में वर्तमान इरविन हॉस्पिटल की बिल्डिंग ही अंग्रेजी हुकूमत का कारागार था।
इतिहासकार अमित राय जैन ने उनके कैदी जीवन के दौरान अंग्रेजों द्वारा दी गई यातनाओं का जिक्र करते हुए बताया कि, क्रांतिकारी टीकाराम को लाठियां से पीटा जाता था, परंतु टीकाराम हंसते-हंसते इंकलाब जिंदाबाद के नारे बुलंद किया करते थे । अंग्रेजों द्वारा मना करने के बावजूद जब उन्होंने अंग्रेजी सरकार को ललकारना बंद नहीं किया ,तो उनको नीम के पेड़ पर दोनों हाथ ऊपर करके लोहे की कीलों से ठोक दिया गया,तब भी वह इंकलाब के नारे लगाते रहे ।
क्रांतिकारी टीकाराम सात बार जेल में गए एक बार वह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की कैद के दौरान भी उनके साथ कोलकाता जेल में रहे।नमक आंदोलन जिस समय महात्मा गांधी ने चलाया, उस समय बिजवाड़ा गांव में नमक कानून तोड़ने के कारण अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें गिरफ्तार किया था, पैदल जाने से मना करने पर अंग्रेजों के द्वारा उन्हें तांगे में बिठाकर ले जाया जाने लगा तब बिजवाड़ा गांव की महिलाओं ने अपने मातृभूमि के वीर पुत्र के सम्मान मैं ग्रामीण भाषा में गीत गाकर उन्हें अपना समर्थन दिया। चौ टीकाराम की क्रांतिकारी गतिविधियों को प्राप्त दस्तावेजों तथा गांव के बुजुर्गों से लिए गए साक्षात्कारों के आधार पर शहजाद राय शोध संस्थान के इतिहासकार अनुसंधानकर्ताओं की टीम में डॉ कृष्णकांत शर्मा, डॉ अमित राय जैन, डॉ अमित पाठक शामिल रहे!