यज्ञीय संस्कृति से सम्मान की भावना होती है प्रबलः स्वामी ओम् मुनि

सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय के नारे को चरितार्थ कराने में सक्षम है यज्ञीय संस्कृति

यज्ञीय संस्कृति से सम्मान की भावना होती है प्रबलः स्वामी ओम् मुनि

ब्यूरो डॉ योगेश कौशिक

बरनावा। पर्यावरण शुद्धि व राष्ट्र की समृद्धि के साथ ही यज्ञीय संस्कृति से सम्मान, सौहार्द और सहयोग की भावना बलवती होती है, यह कहना है  स्वामी ओउम् मुनि जी का। वानप्रस्थ आश्रम बरनावा में चल रहे महायज्ञ के पांचवे दिन के हरेंद्र आर्य सपत्नीक यज्ञमान बने। स्वामी गिरीश मुनि जी के निर्देशन में आयोजित यज्ञ में बताया गया कि, आज पर्यावरण बहुत दूषित हो गया है, जिसके कारण अनेक रोगों का सामना करना पड़ रहा हैं ,इसका केवल एक ही बचाव हैं हवन में औषधीय सामग्री का चढ़ाना, जिससे मनुष्यों की समस्त समस्याओं का हल हो सकेगा। 

इस अवसर पर स्वामी ओम् मुनि जी महाराज ने बताया कि ,जो परिवार संगठित होकर चलता है वहाँ पर कोई भी परेशानी दस्तक नही देती।बताया कि, यज्ञ मनुष्यों को संगठित रहने का संदेश देता है। जिस परिवार में एक दूसरे का सम्मान किया जाता हैं, वहां पर अपार खुशियां व शांति बनी रहती है। 

कहा कि,परिवार को संगठित रखने के तीन आयाम हैं जो हम सभी को करने चाहिए; प्रथम परमात्मा के निज नाम ओम् का बार बार जाप करना, दूसरा वेदों को पढ़ना और पढ़ाना और तीसरा है सर्वहित के लिए कार्य करना व सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय के नारे को साकार करना। 

इस अवसर पर आचार्य कपिल शास्त्री व आचार्य मोहित शास्त्री ने मंत्रोच्चार करते हुए यज्ञ को सम्पन्न कराया।यज्ञ में विजय भाई जी ,सुरेश राणा,टेकचंद जी,जयनारायण आर्य ,जयभगवान आर्य,बलराम त्यागी,अजय त्यागी, शिवम त्यागी ,सुभाष शर्मा, जागरतन आर्य,अशोक मलिक ,गुनगुन आर्या, हरीश आर्य ,गोविंद आर्य ,यश आर्य स्वामी गिरीश मुनि जी ,स्वामी इंद्र मुनि जी आदि उपस्थित रहे।