पराली जलाने से प्रदूषण पर शोर और कोल्हुओं में रद्दी टायरों पन्नी प्लास्टिक  इस्तेमाल होने से विषाक्त धुएं पर शांत

प्रदेश का प्रदूषण नियंत्रण विभाग ग्रामीणों की शिकायतों पर नहींं हो रही कोई कार्रवाई

पराली जलाने से प्रदूषण पर शोर और कोल्हुओं में रद्दी टायरों पन्नी प्लास्टिक  इस्तेमाल होने से विषाक्त धुएं पर शांत

सौरव तोमर

मेरठ | धान की पराली जलाने से प्रदूषण का ढिंढोरा पीटकर भोले भाले किसानों के खिलाफ कार्रवाई की धमकी देने वाली सरकार व प्रशासन गन्ना कोल्हुओं में धडल्ले से जलाए जा रहे खराब टायरों व पन्नी प्लास्टिक की शिकायतें मिलने के बाद भी मौन धारण किये है | टायरों व प्लास्टिक पन्नी के विषाक्त धुएं की परत जब आसपास के खेतों में खड़े ईख या अन्य दूसरी फसलों पर जम जाती है, तो पशु भी उसे चारे के रूप में नहीँ खा पाते, लेकिन सुविधा शुल्क की कीमत पर विषाक्त हो रहे गुड को परोसने की छूट से उपभोक्ता परेशान ही नहीँ, रोगी भी हो रहे हैं |

ध्वनि, पर्यावरण और जलीय प्रदूषण रोकने के लिए प्रदेश में बाकायदा प्रदूषण नियंत्रण विभाग कार्यरत हैं, जिसका क्षेत्रीय कार्यालय मेरठ में भी है, लेकिन शायद ही इस विभाग ने मेरठ के इंचौली, खरदौनी और मंडोरा , बातनौर व मुजफ्फरनगर जिले गांव कढ़ली आदि कई कोल्हुओं पर जाकर जांच की हो | ग्रामीणों के अनुसार पहले इन कोल्हुओं में पत्ती और गन्ना पेराई के बाद निकली खोयी सुखाकर जलाने में इस्तेमाल होती रही है, किंतु धीरे धीरे पत्ती व खोयी के गत्ता फैक्ट्रियों में महंगा बिकने के चलते ,कोल्हू स्वामियों ने मुनाफे के चक्कर में जहर जलाने और परोसने में विभिन्न स्तरों पर सुविधा शुल्क देने के बाद यह प्रक्रिया धडल्ले से जारी है |

इस संवाददाता द्वारा ,एक दो नहींं, अनेक कोल्हुओं पर रद्दी टायरों को बड़ी मात्रा में पडे हुए तथा इस्तेमाल करते देखा तथा ग्रामीणों से वार्ता के बाद पता चला कि, इन कोल्हू स्वामियों ने स्थानीय स्तर पर संबंधित कर्मियों को सुविधा शुल्क दिया जा रहा है, जिसके चलते उनके द्वारा की जा रही शिकायतें रद्दी की टोकरी में डाल दी जाती हैं और लोगों को सांस की बीमारी, घरों और फसलों पर विषाक्त धुएं की परत से जहाँ ग्रामीण और उनके पशुओं के सामने परेशानी आ रही है, वहीं इन कोल्हुओं से तैयार गुड और शक्कर का इस्तेमाल करने वाले लोगों को स्वास्थ्य लाभ के बदले नुकसान ज्यादा करने लगे हैं | वही मेरठ व मुजफ्फरनगर का प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड चुप्पी बनाए हुए हैं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का कामकाज केवल दफ्तर तक ही सिमट कर रह गया है। उन्हें फुर्सत ही नहीं ऑफिस के बाहर निकल कर इस पर अंकुश लगा सके