स्वतन्त्रता आनन्दकारी, लेकिन स्वच्छंदता एक क्षण की भी दुखद :आ विशुद्ध सागर
संवाददाता आशीष चंद्रमौली
बडौत | दिगम्बर जैनाचार्य विशुद्धसागर जी महाराज ने अजित नाथ सभागार मे श्री अजितनाथ मन्दिर कमेटी के तत्वाधान में आयोजित धर्मसभा में मंगल प्रवचन करते हुए कहा कि ,स्वतन्त्रता में जो सुख है वह अन्यत्र नहीं है , वहीं परतन्त्रता में ही दुःख है। स्वतन्त्र रहना श्रेष्ठ है, परन्तु स्वच्छन्दता क्षण भर की दुःखद होती है। स्वच्छन्दता सर्वनाश करा देती है। एक पक्षी भी पिंजड़े से स्वतंत्र होना चाहता है, पशु भी रस्सी के बंधन से छूटना चाहता है, पशु भी स्वतंत्रता के सुख को जानता है और स्वतंत्र होने का प्रयास करता है। जिसको स्वतन्त्रता का बोध नहीं, वह स्वतन्त्र होने का विचार भी नहीं कर सकता है।
जैन संत ने कहा कि, स्वतन्त्रता में ही परमानन्द है, स्वतन्त्रता में ही शान्ति है, स्वतन्त्रता में ही निराकुलता है, स्वतन्त्रता में ही विवेक है। स्वतंत्र जीवन स्वर्ग के समान सुखद होता है। स्वतंत्रता का बोध करो, परतंत्रता को छोड़ो। कहा कि,संसार में कोई कर्मों से परतन्त्र है, कोई भोगों से परतंत्र है, कोई रोगों से परतन्त्र है, कोई व्यसनों में परतन्त्र है, कोई आदत से परतन्त्र है, कोई कषायों से परतन्त्र है। मानव को स्वतंत्र होने का मान ही नहीं है।अज्ञानी परतन्त्रता में ही मग्न हो रहा है।आह्वान किया कि, स्वदेशी बनो, पाश्चात्य संस्कृति से जुड़कर परतंत्र मत बनो। विदेशी वस्तुओं का प्रयोग करना भी परतंत्रता है। विदेशी विचारों से प्रभावित होना भी परतंत्रता है। सेवकपना छोड़ो, स्वामी बनो।
सभा का संचालन पंडित श्रेयांस जैन तथावरदान जैन ने संयुक्त रूप से किया। दीप प्रज्वलन नाहर सिंह कुमार उद्योग परिवार की ओर से, पाद प्रक्षालन राय चंद राजकुमार अंश जैन की ओर से, शास्त्र भेंट सचिन जैन तथा श्री स्यादवाद महिला संगठन की तरफ से किया गया।प्रवचन के बाद प्रभावना वितरण विमर्श जागृति मंच की तरफ से किया गया।सभा मे सुभाष जैन, राजकुमार जैन, अशोक जैन, हंस कुमार जैन, प्रमोद जैन, मुकेश जैन वरदान जैन, सुधीर जैन, अंकुर जैन, जितेंद्र जैन,विमल जैन, अमित जैन, अनिल जैन, विकास जैन,सुनील जैन, सतीश जैन आदि उपस्थित थे।