आखिर क्यों?असंसदीय होती जा रही है माननीयों की भाषा शैली

ब्यूरो महेंद्र राज

बदलते राजनैतिक परिवेश मे क्रमशः वाक् पटु माने जाने वाले लगभग 50 प्रतिशत् राजनीतिज्ञ अपनी भाषा शैली पर संयम व भाषा की उत्कृष्टता खोते जा रहे हैं।भाषा शैली मे क्रमशः गिरावट का सफर "मिस्टर क्लीन" से शुरू हो कर बा रास्ते "चारा चोर","टोंटी चोर","अनपढ़" होते हुऐ अब "पागल"तक आ पहुँचा है।

यूँ तो एक दूसरे पर कीचड़ उछालना देश की राजनीति का मूल मंत्र बनता नज़र आ रहा है पर इधर लंबे अर्से से राजनीतिज्ञों की भाषा शैली सारी मर्यादाओं की सीमा लाँघ कर गाली गलौज तक पहुँचने को आतुर है।

बीते दिनों जब भारत समेत विश्व के कई मुल्क भारत के स्वतंत्रता दिवस पर आल्हादित थे व शुभकामनाएं प्रेषित कर रहे थे तभी स्वतंत्रता के जश्न के आगोश मे समाये जनपद की धरती पर पुनःअपशब्दों का प्रयोग करने की पुनरोक्ति हुई।दर असल स्वतंत्रता दिवस के एक आयोजन मे उन्नाव के सांसद डा.सच्चिदानंद हरि साक्षी महाराज ने काँग्रेस के नेता राहुल गांधी को न सिर्फ पागल कहा अपितु उनका स्थान नियत करते हुऐ पागलखाने मे रहने की नसीहत तक दे डाली।

साँसद के इस वक्तव्य से रुष्ट काँग्रेसी नेताओं ने बीते दिन नगर मजिस्ट्रेट को ज्ञापन दिया तथा वक्तव्य के खिलाफ़ अपना विरोध प्रदर्शन किया।

विरोध प्रदर्शन कर ज्ञापन देने वालों मे जिलाध्यक्ष आरती बाजपेयी की आगुवाई में कृष्ण़ पाल सिंह,दिनेश शुक्ला,सरफ़राज गाँधी,पंकज गुप्ता,सुयश बाजपेयी,विश्वास निगम,सुमित गुप्ता,सलमान शाहिद, यूसुफ रफ़ी फ़ारुखी व अशोक भदौरिया समेत सैंकड़ों काँग्रेसी नेता व समर्थक मौजूद रहे।