सहारनपुर के साहित्यकार का दिल्ली में सम्मान -शीतलवाणी के बलराम अंक पर दिल्ली में हुयी चर्चा
सहारनपुर। देश के जाने माने वरिष्ठ साहित्यकारों ने सहारनपुर के साहित्यकार डॉ.वीरेन्द्र आजम के संपादन की मुक्त कंठ से प्रशंसा करते हुए उन्हें शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया। अवसर था दिल्ली के हिन्दी भवन में सहारनपुर से प्रकाशित हिन्दी साहित्य की प्रख्यात पत्रिका शीतलवाणी के बलराम अंक पर चर्चा का। देश की सुविख्यात साहित्यकार नासिरा शर्मा ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की और शोभित विश्वविद्यालय के कुलाधिपति कुंवर शेखर विजेन्द्र मुख्य अतिथि रहे। वीरेन्द्र आजम को सम्मानित करने वालों में साहित्यकार हरिमोहन शर्मा, बलराम, कमलेश भट्ट कमल, महेश दर्पण, ओम निश्चल, अशोक मिश्र, अरुणेन्द्र नाथ वर्मा सहित अनेक साहित्यकार शामिल रहे। वक्ताओं ने कहा कि आज जब बडे़-बडे़ घरानों की साहित्यिक पत्रिकाएं दम तोड़ रही हैं ऐसे दौर में एक अलग तेवर व कलेवर वाली समृद्ध पत्रिका निकालना अपने आप में एक बड़ा काम है, और यह काम एक छोटे शहर सहारनपुर से डॉ.वीरेन्द्र आजम कर रहे है, यह निसंदेह प्रशंसनीय है।
डॉ.वीरेन्द्र आजम ने कहा कि बलराम ने अपनी कहानियों में गांव और गांव के ठेठ शब्दों को बचाकर रखा है, और यदि हमे अपनी संस्कृति को बचाना है तो गंाव और गाय दोनों को बचाकर रखना होगा। यही कारण है कि बलराम पर शीतलवाणी का अंक प्रकाशित किया गया है। समारोह अध्यक्ष नासिरा शर्मा ने कहा कि बलराम की कहानियां अपनी सादगी और सच्चाई के साथ जमीन से जुड़ी हुई हैं, जो प्रभावित करती हैं। उनके कहानियों के चरित्र अपने फ्रेम से बाहर संयम खोते नजर नहीं आते। शीतलवाणी के शानदार बलराम अंक के लिए उन्होंने संपादक डॉ.वीरेन्द्र आजम को बधाई दी। विशिष्ट वक्ता, प्रख्यात कवयित्री डॉ.अनामिका ने भी बलराम की कहानियों पर विस्तार से चर्चा की।
मुख्य अतिथि कुंवर शेखर विजेंद्र ने भी बलराम अंक की प्रशंसा की। उन्होंने शीतलवाणी में प्रकाशित बलराम की एक कविता-‘जो तेरा है तेरे पास है, तेरे पास है पर काम नहीं आता/समझ ले, तेरा नहीं है/तेरा नही ंजो तेरी बात नहीं सुनता/जो तेरा नहीं है उसे भूल जा/ उससे दिल न लगा/ अपना महबूब अपने में खोज।’ कविता को उद्धृत करते कहा कि यह कविता उनके चिंतन और और उनकी स्पष्ट सोच को उजागर करती है। उन्होंने कहानियों में बच्चों को नायक बनाने पर बल दिया।
दिल्ली विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष हरिमोहन शर्मा ने कहा कि बलराम में जितना कथातत्व इनके भीतर है उन्होंने उसका उपयोग नहीं किया है, उनके पास एक पैनी दृष्टि है। बलराम अंक के श्रेष्ठ मुद्रण, तेवर, कलेवर तथा डॉ. वीरेन्द्र आजम के संपादीय कौशल की प्रशंसा की। प्रख्यात कथाकार महेश दर्पण ने कहा कि आज की फैशन परस्त कहानियों की भीड़ में बलराम की कहानियां अलग दिखाई पड़ती है। कहानी जीवन से जोड़ने वाली विधा है। उन्होंने बलराम से कहानियां निरंतर लिखते रहने का अनुरोध करते हुए कहा कि असमर्थ लेखकों के बीच समर्थ लेखकों का खामोश रहना ठीक नहीं है।
प्रख्यात पत्रकार प्रियदर्शन ने कहा कि जब-जब शीतलवाणी को पलटेंगे उसमें एक नया बलराम दिखाई देगा। कवि व आलोचक ओमनिश्चल ने कहा कि बलराम की हर विधा पर अलग-अलग विस्तार से बात करने की आवश्यकता है। सुधांशु गुप्त ने कहा कि इस अंक में बलराम कई रुपों में दिखायी देते हैं। प्रख्यात व्यंगकार प्रेम जनमेजय ने दोहराते हुए कहा कि बलराम की कविता उनके चिंतन की दिशा बयान करती है। कमलेश भट्ट ने कहा कि जब किसी साहित्य पर विशेषांक निकलता है तो उसमें एक नयी ऊर्जा आ जाती है, नयी चेतना आ जाती है। कथाकार बलराम ने भी अपनी रचना धर्मिता पर विस्तार से प्रकाश डाला। इसके अलावा कथाकार विवेक मिश्र, अशोक मिश्र, डॉ.विनोद खेतान, नवभारत टाइम्स के संपादक सुधीर मिश्र आदि ने भी सम्बोधित किया। कार्यक्रम में आईआईएमसी के प्रो.प्रमोद कुमार, प्रख्यात गजलकार विज्ञान व्रत, साहित्यकार अमरेन्द्र मिश्र, डॉ. रवीन्द्र अग्रवाल, प्रख्यात आर्टिस्ट गीता दास, अशोक जैन सहित अनेक साहित्यकार मौजूद रहे। संयोजक राजेन्द्र शर्मा ने अतिथियों का आभार व्यक्त किया।