जैन मुनि ने किया स्व विवेक की जागृति और स्वतंत्रता से जीवन जीने का आह्वान
संवाददाता आशीष चंद्रमौली
बडौत। श्रद्धालुओं को धर्म, समाज और लोक में आदर्श व आनंददायक जीवनशैली का मार्गदर्शन करने वाले जैन संत विशुद्ध सागर ने नगर में चातुर्मास के दौरान आयोजित धर्मसभा में कहा कि, व्यक्ति को विविध आयामों पर विचार करना चाहिए, जिससे स्व तथा पर का विवेक जाग्रत होकर वर्धमान हो तथा अन्य किसी के आश्रित न जीना पड़े, स्वतंत्रता का जीवन ही आनन्द का जीवन है, जबकि परतंत्रता का जीवन कष्ट का जीवन है। परतंत्रता में सुख नहीं, सुख तो केवल स्वतंत्रता में ही है।
कहा कि,जैसे कोई व्यक्ति विशिष्ट-धनी हो ,तो वह कहता है, हमारा पुण्योदय है। विशिष्ट विद्वान् चरित्रवान् हो, तो वह भी पुण्योदय का परिणाम है। उसी प्रकार से स्वतंत्रता का जीवन पुण्योदय पर ही प्राप्त होता है। परतंत्रता नियम से पापोदय का परिणाम है। कहा कि, भूत में हमने अन्य को परतंत्र किया था, उसी का फलोदय वर्तमान है।
सभा का संचालन पं श्रेयांस जैन ने किया। सभा मे प्रवीण जैन, सुनील जैन, अतुल जैन, धनेंद्र जैन,वरदान जैन, विनोद जैन, दिनेश जैन, राकेश जैन आदि मौजूद रहे।