गाय का धार्मिक,आध्यात्मिक,चिकित्सीय महत्व कार्तिक पूर्णिमा पर गोपाष्ठी का कार्यक्रम

गाय का धार्मिक,आध्यात्मिक,चिकित्सीय महत्व कार्तिक पूर्णिमा पर गोपाष्ठी का कार्यक्रम

दरियाबाद बाराबंकी

मंझार,नरायनपुरवा,शेखवापुर आदि स्थानो पर मनाया गया।गाय की पूजा-आरती करके चना,गुढ,केला खिलाया गया।ग्रामीणों की उपस्थिति मे गाय माता की सुरक्षा का संकल्प दिलाया गया। वक्ता पवन मिश्र ने कहा- हिन्दू धर्म में गाय के महत्व के कुछ आध्यात्मिक, धार्मिक और चिकित्सीय कारण भी रहे हैं।गाय एकमात्र पशु ऐसे है जिसका सब कुछ सभी की सेवा में काम आता है। स्वामी दयानन्द सरस्वती कहते हैं कि एक गाय अपने जीवनकाल में 4,10,440 मनुष्यों हेतु एक समय का भोजन जुटाती है।गाय का दूध, मूत्र, गोबर के अलावा दूध से निकला घी, दही, छाछ, मक्खन आदि सभी बहुत ही उपयोगी है।गुरु वशिष्ठ ने गाय के कुल का विस्तार किया और उन्होंने गाय की नई प्रजातियों को भी बनाया, तब गाय की 8 या 10 नस्लें ही थीं जिनका नाम कामधेनु, कपिला, देवनी, नंदनी, भौमा आदि था।भगवान श्रीकृष्ण ने गाय के महत्व को बढ़ाने के लिए गाय पूजा और गौशालाओं के निर्माण की नए सिरे से नींव रखी थी। भगवान बालकृष्ण ने गाएं चराने का कार्य गोपाष्टमी से प्रारंभ किया था।पंजाब केसरी महाराजा रणजीत सिंह ने अपने शासनकाल के दौरान राज्य में गौहत्या पर मृत्युदंड का कानून बनाया था।गोमुत्र से कैन्सर जैसी घातक बीमारी दूर होती है।गाय की सुरक्षा,पालन प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।केवल सरकार का ही दायित्व नही है।इस अवसर पर गौप्रशिछक रामपाल ,गौचिकित्सक पवन वर्मा,खण्ड संघचालक रामसजीवन जी,गौपालक राम अचल यादव,रामकिशोर तथा ग्रामीण उपस्थित रहे।।