देश के करोड़ों भक्तों की आस्था का केंद्र है सिद्धपीठ शाकंभरी देवी मंदिर

–माता श्री शाकंभरी देवी दरबार में शीश नवाने से हो जाते हैं सर्व सुख संपन्न

देश के करोड़ों भक्तों की आस्था का केंद्र है सिद्धपीठ शाकंभरी देवी मंदिर

रिपोर्ट–भवानी सैनी


बेहट(सहारनपुर) शिवालिक पहाड़ियों के बीच स्थित उत्तर प्रदेश की विख्यात सिद्धपीठ श्री शाकंभरी देवी मंदिर देश के करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। मान्यता है यहां शीश नवाने वाले भक्तों सर्व सुख संपन्न हो जाते हैं। श्री शाकंभरी देवी का उल्लेख मार्कंडेय पुराण, दुर्गा सप्तसती, पदम पुराण, कनकधारा स्रोत आदि में मिलता है। मंदिर गर्भ ग्रह में माता शाकंभरी के साथ भीमा देवी, भ्रामरी व शताक्षी देवी सहित गणेश जी की प्रतिमा स्थापित है।


इस पावन तीर्थ के निकट गौतम ऋषि की गुफा, प्रेतशिला, पंच महादेव के रूप में बड़केश्वर महादेव, मटकेश्वर महादेव, संकेश्वर महादेव, कमलेश्वर महादेव, इंद्रेश्वर महादेव के भव्य मंदिरों के अलावा भूरादेव मंदिर, छिन्नमस्ता देवी मंदिर, रक्तदंतिका मंदिर आदि पवित्र स्थल स्थित है, यहां भी श्रद्धालु भारी संख्या में पहुंचकर प्रसाद चढ़ाकर मनोकामनाएं मांगते हैं। सिद्धपीठ परिक्षेत्र से करीब 5 किलोमीटर दूर पहाड़ियों पर सहश्रा ठाकुर मंदिर स्थापित है। यह मंदिर प्राचीन काल में एक ही पत्थर तराश कर बनाया गया है। मुख्य मंदिर के निकट वीर खेत के नाम से प्रसिद्ध एक मैदान है। इस मैदान की मान्यता है कि यहां माता एवं राक्षसों के बीच घोर युद्ध हुआ था। बताया जाता है कि माता श्री शाकंभरी देवी ने यहां महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था।

शाक से देवताओं की भूख मिटा कर कहलाई मां शाकंभरी
मां भगवती का नाम शाकंभरी देवी प्रचलित होने के बारे में मान्यता है कि प्राचीन काल में दुर्गम नामक दैत्य ने ब्रह्मा जी की घोर तपस्या कर वरदान में चारों वेद मांग लिए थे। दैत्यों के हाथ चारों वेद लगने से सभी वैदिक क्रियाएं लुप्त हो गई थी। परिणाम स्वरूप 100 वर्षों तक वर्षा नहीं होने के कारण अकाल की स्थिति बन गई थी। चारों ओर त्राहि-त्राहि मच ने पर देवताओं ने शिवालिक पर्वत संख्या की प्रथम शिखा पर मां जगदंबा की घोर तपस्या की, देवताओं की करुण पुकार सुनकर करुणामई मां भगवती देवताओं के समक्ष प्रकट हुई। इस पर मां जगदंबा ने अपने सत नेत्रों से 9 दिन तक अश्रुवृष्टि की, इससे सुखी धरा लुप्त हो गई। सभी सागर एवं नदियां जल से भर गई। तभी से नवरात्रों की पूजा का प्रावधान माना गया है और मां जगदंबा को शताक्षी कहा जाने लगा।

सराल है मां शाकंभरी का मुख्य प्रसाद

सिद्धपीठ श्री शाकंभरी देवी मंदिर पर हलवा पूरी, इलायची दाना, नारियल चुनरी, मेवे और मिष्ठान का प्रसाद चढ़ाया जाता है। हालांकि वेदों में मान्यता है कि सिद्धपीठ श्री शाकंभरी देवी का प्रमुख प्रसाद सराल है, जो शिवालिक पहाड़ियों पर ही उगता है। मान्यता है कि देवताओं की भूख मिटाने के लिए मां शाकंभरी देवी ने शाक सराल आदि फल उत्पन्न किए थे, इसलिए सराल यहां का मुख्य प्रसाद माना जाता है ।

माता के दर्शनों से पहले बाबा भूरादेव की महत्ता

जनश्रुति है कि देवताओं एवं दैत्यों के बीच चल रहे युद्ध के दौरान धर्म की रक्षा के लिए मां भगवती का परम भक्त भूरादेव अपने साथियों के साथ युद्ध में उतरा था। युद्ध के दौरान अपने भक्त भूरादेव को घायल देखकर करुणामई माता ने भूरादेव को वचन दिया था कि जो भक्त मेरे दर्शन से पूर्व तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा उसकी यात्रा पूर्ण नहीं होगी। यही कारण है कि श्रद्धालु सर्वप्रथम बाबा भूरादेव की पूजा अर्चना करने के बाद ही माता श्री शाकंभरी देवी के दर्शन करते हैं।
चैत्र नवरात्र मेले में उमड़ रही भक्तों की भारी भीड़
सिद्धपीठ श्री शाकंभरी देवी मंदिर परिक्षेत्र में वर्ष में तीन भव्य मेलों का आयोजन किया जाता है। जिनमें शारदीय नवरात्र, चैत्र नवरात्र एवं होली पर्व पर लगने वाला मेला मुख्य है। ब चैत्र नवरात्र पर्व प्रारंभ हो चुके है। मेला प्रथम नवरात्र से लेकर नवमी पर्व तक चलता है। इस मौके पर यूपी के अलावा हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, पंजाब, हिमाचल, उत्तराखंड आदि प्रदेशों से भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। मेले में  पहुंचने वाले श्रद्धालुओं के लिए मंदिर व्यवस्थापक राणा परिवार द्वारा  समुचित व्यवस्थाएं दुरुस्त करा दी गई है।