जीवन में विवेक, उत्साह और धैर्य का होना जरूरी : जैनमुनि
संवाददाता आशीष चंद्रमौली
बडौत |चर्या शिरोमणि, जैनाचार्य संत विशुद्धसागर जी महाराज ने जीवन में विवेक, उत्साह और धैर्य को बनाए रखने का आह्वान करते हुए ऋषभ सभागार मे आयोजित धर्मसभा में कहा कि , सज्जन किसी भी घटना से शीघ्र ही प्रभावित नहींं होते, क्योंकि उन्हें पता है कि,जीवन में विवेक, उत्साह और धैर्य बहुत आवश्यक है। उत्कर्ष के लिए उमंग होना चाहिए। कहा कि, जैसा सम्मान स्वयं चाहते हैं वैसा ही सभी का यथायोग्य सम्मान करना चाहिए। व्यक्ति को अस्त्र-शस्त्र के प्रहार से होने वाले कष्ट के मुकाबले अपमान की पीड़ा अधिक होती है।
मुनिश्री ने कहा कि, जो रीति- नीति शून्य होकर जीवन जीता है, वह सर्वत्र अपमान एवं तिरस्कार को प्राप्त होता है। सम्मान चाहिए, तो सम्मान देना भी सीखो। विनम्रता, विवेक तथा मधुर सम्भाषण सज्जनों की कुल-विद्या है। सज्जन विपत्ति आने पर भी नम्रता नहीं छोड़ते। कहा कि,पवित्र भावों से शुभ एवं अशुभ भावों से अशुभ कर्म-बंध होता है। जिन पैरों से आप दुनिया में घूमते हो, उन्हीं पैरों से आप मंदिर जा सकते हो। जिन आँखों से नारियों को निहारते हो, उन आँखों से आप निर्ग्रन्थ मुनियों को भी निहार सकते हो। जिन हाथों से आप भोजन करते हो, उन हाथों से किसी की सेवा भी कर सकते हो, दान भी दे सकते हो। जिन कानों से व्यर्थ की बातें सुनते हो, उन कर्णो से गुरुवाणी भी सुन सकते हो। आह्वान किया कि,ईर्ष्या मत करो, अपने गुणों की वृद्धि करो। किसी के चाहने से किसी का अशुभ नहीं होता है, परन्तु अशुभ सोचने से अशुभ कर्म का आसव अवश्य होता है। सभा मे मुनि श्री निर्ग्रंथ सागर जी मुनिराज ने भी मंगल प्रवचन किये। संचालन पं श्रेयांस जैन ने किया।
सभा मे प्रवीण जैन, अतुल जैन,विनोद जैन एडवोकेट,राकेश सभासद, वरदान जैन, शुभम जैन, धनेंद्र जैन, मनोज जैन, अनुराग मोहन, अशोक जैन, वीरेंद्र जैन, दिनेश जैन आदि उपस्थित रहे |