आख़िर किस बल बूते पर विश्व गुरू बनेगा भारत,जब प्रारंभिक शिक्षा ही मँहगी होने के कारण़ सर्व सामान्य से होती जा रही दूर
एक ओर जहाँ अप्रैल का महीना सुरू होते ही अभिभावकों की अपने पाल्यों की शिक्षा हेतु दौड भाग की कवायद तेज हुई है वहीं दूसरी ओर प्रदेश समेत लगभग संपूर्ण देश की निजी शिक्षण़ संस्थाओं ने भी अभिभावकों को लूटने के लिये नये-नये हथकंडे अपनाने शुरू कर दिऐ हैं।अनियंत्रित हालात यह हैं कि कुछ संस्थाओं मे नर्सरी व के.जी की शिक्षा उच्च तकनीकी शिक्षा से भी महँगी है।
ब्यूरो महेंद्र राज
प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर जनपद के नोएडा शहर में सीबीएसई व आईसीएसई बोर्ड के पब्लिक और कान्वेंट स्कूलों में केजी से नर्सरी तक की पढ़ाई बीटेक से भी महंगी हो गई है।इन कक्षाओं में पढ़ने वाले छात्रों के अभिभावकों को सालाना दो से तीन लाख रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। कुछ स्कूलों में पढ़ाने के लिए तो यह बजट पांच लाख रुपये तक पहुंचा गया है।इससे अलावा एक्टिविटी के नाम पर भी अभिभावकों को जेब खाली हो रही है। जबकि बीटेक के एक वर्ष की पढ़ाई का खर्च करीब 1.20 लाख से 1.70 लाख रुपये है।अधिकतर अभिभावक बच्चे को निजी स्कूल में पढ़ाना चाहते हैं।अतः नर्सरी में दाखिले के लिए मारामारी रहती है। अभिभावक दाखिले के लिए डोनेशन तक देने को तैयार रहते हैं।नर्सरी में दाखिले के दौरान अलग-अलग स्कूलों में 50 से एक लाख रुपये एडमिशन फीस,वेष भूषा,व किताबों समेत अन्य शुल्क के रूप में ले रहे हैं। इसके अलावा 10 से 14 हजार रुपये के बीच महीने की फीस है।अभिभावकों को साल में डेढ़ से दो लाख रुपये का खर्चा आता है। ऐसे में नर्सरी से फर्स्ट तक की पढ़ाई में अभिभावकों के सात से आठ लाख रुपये तक खर्च हो जाते हैं।कुछ स्कूलों में एडमिशन फीस ही 1.50 लाख रुपये हैं। ट्यूशन फीस प्रतिमाह 25 हजार से ज्यादा है।इसके अलावा अन्य शुल्क मिलाकर अभिभावक को पढ़ाई पर सालाना 5 लाख रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। किताबों के लिए अलग से शुल्क देना पड़ रहा है।निजी स्कूल कमीशन के खेल में एनसीईआरटी की किताबों के अलावा रेफरेंस बुक के नाम पर निजी प्रकाशन की किताबें भी लगवा रहे हैं।बुक के साथ स्टेशनरी भी अभिभावकों को स्कूल से ही लेनी पड़ रही है। ऐसे में सिर्फ किताबें लेने में ही 5 से 9 हजार रुपये का खर्च आ जाता है।निजी स्कूलों को एक-एक सीट पर लाखों की कमाई होती है। इसलिए स्कूल आरटीई के तहत दाखिला देने से भी बचते हैं।कुछ नामचीन स्कूल ऐसे हैं जो आरटीई के नाम पर एक भी दाखिला नहीं दे रहे हैं।ऐसे स्कूलों की दर्जनों शिकायतें शिक्षा विभाग के पास पहुंच रही हैं।