क्रोध, कृपणता ,क्रूरता,कलह और अहम कर देते हैं शासक के शासन का अंत :विशुद्ध सागर

क्रोध, कृपणता ,क्रूरता,कलह और अहम कर देते हैं शासक के शासन का अंत :विशुद्ध सागर

••जैन संत ने धनी बनने के लिए रात्रि का भोजन छोडने का किया आह्वान

संवाददाता आशीष चंद्रमौली

बडौत। वैराग्यपूर्ण धर्माचरण द्वारा ही आत्मानुभवन, आत्मानंद, आत्मशांति व आत्माह्लाद का मार्ग सुगम होता है।जैन धर्माचार्य तपस्वी विशुद्ध सागर ने धर्म सभा में श्रद्धालुओं से कहा कि,  सच्चा साधक पल भर भी व्यर्थ में व्यय नहीं करता। जगत कल्याण का उद्यम और स्वात्म-भावना अत्यंत भिन्न-भिन्न है।

जैनमुनि ने कहा कि,क्रोध, कृपणता, क्रूरता, अहम, कलह शासक के शासन का अंत कर देती हैं, जबकि स्नेह, दानशीलता, क्षमा, समन्वय और एकता शासक के शासन को वर्धमान करती हैं। ऐसे ही कषाय की तीव्रता साधक के जीवन को नष्ट कर देते हैं।धनी होना है, तो रात्रि भोजन छोड़ो, गुरुओं को दान दो, प्रभु भक्ति करो।कहा कि, सज्जन सरलता, शान्ति से नैतिकतापूर्ण जीवन जीते हैं, जबकि दुर्जन का जीवन कलुषता युक्त ही होता है। स्वभाव की प्रचण्डता, वैर भाव, झगडालु वृत्ति, क्रूरता, दुष्टता, अडियलपना, कषायों की उग्रता, अनैतिकता कषायेशील दुर्जन की पहचान है। जो समझाने पर भी सत्याचरण न करे, यही दुष्टता का चिह्न है।सभा का संचालन पंडित श्रेयांस जैन ने किया।सभा मे प्रवीण जैन, दिनेश जैन, पुनीत जैन, मनोज जैन, सुनील जैन, विनोद जैन, सतीश जैन वीरेंदर जैन, अशोक जैन, अनुज जैन, विवेक जैन, अनुराग मोहन आदि मौजूद रहे।