पवित्र सोच ही पवित्र पथ की देती है प्रेरणा, प्राण से अधिक प्रण को श्रेष्ठ मानने वाला ही श्रेष्ठ : विशुद्ध सागर

पवित्र सोच ही पवित्र पथ की देती है प्रेरणा, प्राण से अधिक प्रण को श्रेष्ठ मानने वाला ही श्रेष्ठ : विशुद्ध सागर

संवाददाता आशीष चंद्रमौली

बड़ौत| ओजस्वी और स्पष्ट वक्ता तथा धर्म, समाज के समग्र विकास के पक्षधर चर्या शिरोमणि जैन आचार्य श्री विशुद्धसागर जी महाराज ने ऋषभ सभागार में आयोजित धर्म सभा में कहा कि ,संसार में अनेकानेक जीव हैं और इसमें नाना प्रकार के विचार हैं, लेकिन सभी जीव अपने विचारों के अनुसार जीवन जीते हैं। ऐसे में जिनकी भवितव्यता निकट है, वे शीघ्र ही सम्यक-मार्ग पर चल पड़ते हैं और जिनका संसार दीर्घ है, वह श्रेष्ठ बात को सुनना भी नहीं चाहते। श्रेष्ठ विचार श्रेष्ठ बनने को तत्पर लोगों के ही होते हैं।

   

मुनिश्री ने कहा, पवित्र सोच ही पवित्र-पथ की ओर प्रेरित करती है, वहीं निर्मल-चिंतन, सही सोच, विशाल दृष्टि, शांत परिणाम, सरलता, क्षमा भाव, विनय एवं विवेकशीलता पुण्यात्मा को ही प्राप्त होती हैं। एक क्षण के विशुद्ध- परिणाम अत्यंत दुर्लभ हैं। जीवन का क्षण-क्षण महत्त्वपूर्ण है। श्रेष्ठ पुरुष वही है, जो प्राण से अधिक 'प्रण' को प्रिय मानता हो। वचन का पक्का मानव ही महा-मानव बन सकता है।आचार्य श्री ने कहा कि ,सार क्या है, असार क्या है? इसको जानकर; असार को छोड़ दो और सार ग्रहण करलो। सज्जन पुरुष हंस पक्षी की तरह सार-सार ग्रहण कर लेते हैं और असार को छोड़ देते हैं। सज्जन व्यक्ति स्व-पर में भेद किए बिना दोनों को हितकारक होते हैं।एक-एक बूँद से घड़ा भर जाता है और एक - एक बूँद करके नदी सूख जाती है। सुर दुर्लभ है, नर तन पाना। मानव ही अच्छे-बुरे का बोध कर पाता है। चारों गतियों में मानव पर्याय ही सर्वश्रेष्ठ पर्याय है। नर ही नारायण बनता है।सभा मे मुनि श्री सुव्रत सागर जी महाराज ने भी मंगल प्रवचन दिये। 

सभा का संचालन डॉ श्रेयांस कुमार जैन ने किया।दीप प्रज्वलन दिगंबर जैन समाज समिति के अध्यक्ष प्रवीण जैन, अतुल जैन और सुनील जैन द्वारा किया गया। पाद प्रक्षालन का सौभाग्य आगरा से आए जैन समाज को प्राप्त हुआ।