स्कूली वाहनों की वैधता दोगुनी कराने के लिए समाजसेवी आरआरडी उपाध्याय ने मंत्री व सरकार को पत्र

स्कूली वाहनों की वैधता दोगुनी कराने के लिए समाजसेवी आरआरडी उपाध्याय ने मंत्री व सरकार को पत्र

••सार्वजनिक, व्यावसायिक, निजी व स्कूली वाहनों का प्रतिदिन चलने की दूरी एक सी नहींं, फिर वैधता एक समान क्यों! 

••छात्रों की सस्ती व सुलभ शिक्षा हेतु स्कूली वाहनों की वैधता दोगुनी हो 

ब्यूरो डा योगेश कौशिक

बागपत।स्कूल वाहनों की फिटनेस मानक को सरल बनाने एवं स्कूल वाहनों की वैधता को दोगुनी करने को लेकर उठने लगी आवाज।समाजसेवी आरआरडी उपाध्याय ने सड़क परिवहन और राजमार्ग मन्त्री नितिन गडकरी एवं प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ को पत्र लिखकर स्कूलों की वास्तविक स्थिति से भी परिचित कराया।

समाजसेवी आरआरडी उपाध्याय ने कहा, सरकार द्वारा वाहनों के मानकों में अन्तर होने के बावजूद वाहनों की वैधता को समान रखा गया है, जो अनुचित है। कहा कि, ट्रांसपोर्ट एजेंसी चलाने वाले (बुकिंग) वाहन, नियमित चलने वाले यात्री वाहन, स्कूली वाहन और निजी वाहन की वैधता एक समान कैसे हो सकती है। क्योंकि इन सभी वाहनों की अपनी आयु सीमा में रोड़ पर चलने की दूरियाँ अलग-अलग हैं।

 यदि यात्री वाहन अपनी वैधता आयु में 100 किमी का सफर तय करते हैं, तो कॉमर्शियल बुकिंग वाहन 70 किमी की दूरी तय करते हैं। वहीं स्कूल वाहन अपनी आयु सीमा में 15 किमी और निजी वाहन 10 किमी का सफर ही तय कर पाते हैं। ऐसे में जब इन वाहनों के चलने की दूरी में अन्तर है, तो निश्चित है फिटनेस में भी अन्तर होगा। क्योंकि अधिक दूरी तय करने वाला वाहनों और कम दूरी तय करने वाले वाहनों की फिटनेस एक जैसी हो ही नहीं सकती। जब फिटनेस एक जैसी नहीं हो सकती तो वैधता अवधि भी एक जैसी नहीं होनी चाहिए।

 पत्र में कहा गया है कि,स्कूल वाहन, कॉमर्शियल व अन्य यात्री वाहनों की अपेक्षा बहुत कम दूरी तय करते हैं तथा छात्र-छात्राओं से प्राप्त होने वाले शुल्क या आय भी यात्री वाहनों की अपेक्षा कई गुना कम होती है।साथ ही स्कूल वाहनों को कॉमर्शियल उद्देश्य से नहीं ,बल्कि विद्यार्थियों की सुविधा के लिए प्रयोग किया जाता है।वहीं शहरी व ग्रामीण स्कूल वाहनों की दूरी और शुल्क में भी अन्तर है। 

ग्रामीण स्कूलों की वास्तविकता से परिचित कराते हुए समाजसेवी ने कहा कि ,ग्रामीण स्कूलों में लगभग 20% विद्यार्थी वाहन व शिक्षा शुल्क जमा भी नहीं करा पाते ,फिर भी ग्रामीण व सामाजिक परिवेश और सेवा के भाव से लगभग 20% नुकसान के साथ ये ग्रामीण निजी शिक्षण संस्थान शिक्षा का प्रचार प्रसार करते हैं। ग्रामीण स्कूलों के वाहनों का दायरा अधिकतम 10 किमी और शहरी स्कूल वाहनों का दायरा 20 से 25 किमी होता है।

कहा कि, ऐसे में यदि सरकार, विद्यार्थियों की सुविधा व सुरक्षा को लेकर गम्भीर है और सरकार को लगता है कि ,इन परिवहन नियमों से विद्यार्थियों को सुविधाजनक व सुरक्षित सफ़र मिलता है, तो यह सब नियम विद्यार्थी द्वारा प्रयोग करने वाले सभी सरकारी व निजी वाहनों पर लागू होने चाहिए। विद्यार्थियों द्वारा प्रयोग किये जाने वाले वाहनों की फिटनेस स्कूल वाहनों के साथ होने वाली दुर्घटना का मूल कारण नहीं, बल्कि जब भी किसी स्कूल वाहन के साथ दुर्घटना होती उसका मूल कारण सतर्क न होना या कह सकते है कि, दुर्घटना का मूल कारण लापरवाही होती है। विद्यार्थियों की यात्रा को सुविधाजनक व सुरक्षित बनाने के लिए जितना ध्यान हम वाहनों की फिटनेस व वैधता पर देते हैं यदि उस ऊर्जा का थोड़ा हिस्सा सतर्कता पर खर्च करें ,तो निश्चित ही विद्यार्थियों का सफर 100% सुरक्षित होगा।

समाजसेवी आरआरडी उपाध्याय ने कहा कि, शिक्षा के प्रचार-प्रसार को प्रोत्साहित करने और आर्थिक रूप से कमजोर अभिभावक व विद्यार्थियों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए यात्री वाहनों की वैधता को दोगुनी करने व फिटनेस व अन्य स्कूल वाहनों पर लागू परिवहन नियमों को सरल बनाने की कृपा करें। इससे आर्थिक रूप से कमजोर विद्यार्थी भी इन स्कूल वाहनों का प्रयोग कर सकेंगे इसके साथ ही इनकी वैधता दोगुनी होने से स्कूल वाहनों का शुल्क भी कम होगा।