जैसी विचारधारा वैसी ही कार्यशाली, दृष्टि से ही सृष्टि में गुण दोष का निर्धारण:आ विशुद्ध सागर

जैसी विचारधारा वैसी ही कार्यशाली, दृष्टि से ही सृष्टि में गुण दोष का निर्धारण:आ विशुद्ध सागर

 
संवाददाता आशीष चंद्रमौली

बडौत। जैन संत आ विशुद्ध सागर जी महाराज ने ऋषभ सभागार में आयोजित धर्म सभा में कहा कि  मन शुद्ध हो, विचार पवित्र हो, दृष्टि निर्मल हो, तो व्यक्ति कार्य भी श्रेष्ठ ही करता है ।जिसकी दृष्टि विकृत है ,वह सृष्टि को भी दोष दृष्टि से देखता है ।

जैन संत ने कहा कि, विकास चाहिए तो विचारधारा को पवित्र करो। जिनकी विचारधारा जैसी होगी ,उनकी कार्यशैली भी वैसी होगी। विचारों पर ही जीवन की धारा होती है।विचारों के अनुसार आदमी जिंदगी जीता है। वस्तु सुख नहीं देती है, व्यक्ति के विचार, सोच ही सुख-दुख देते हैं। जिनके विचार विपरीत है उन्हें सर्वत्र कष्ट होता है। कष्ट से बचना है, तो विचारों को पवित्र करना होगा। 

उन्होंने कहा कि,जो भी करो, पूर्ण भावना से करो। जितने पवित्र परिणाम से कार्य करोगे उतना ही फल मधुर होगा। श्रेष्ठ कार्य का फल सुखद ही होता है ।सही दिशा में किया गया श्रम कभी गलत नहीं होता।सभा का संचालन पं श्रेयांस जैन ने किया। सभा मे प्रवीण जैन, सुनील जैन, अतुल जैन, दिनेश जैन,मनोज जैन, राकेश जैन आदि रहे।