दृष्ट को ही सत्य स्वीकारने वाला कभी सत्य के निकट नहीं पहुंच सकता :मुनि अनुपम सागर

दृष्ट को ही सत्य स्वीकारने वाला कभी सत्य के निकट नहीं पहुंच सकता :मुनि अनुपम सागर

••वर्तमान के कृत कर्म भविष्य का अदृष्ट 
•• वर्ष पर्यंत जैसा अध्ययन किया उत्तर पुस्तिका में जैसा लिखा, वही अदृष्ट है
•• अदृष्ट को देखकर दुख या सुख की अनुभूति

संवाददाता आशीष चंद्रमौलि

बड़ौत।नगर की केनाल रोड स्थित शांतिनाथ दिगंबर जैन मन्दिर में मुनिश्री अनुपम सागर ने कहा कि संसार में जो दृष्ट है वह अल्प है और दृष्ट के परे अदृष्ट है। दृष्ट को ही सत्य स्वीकारने वाला कभी सत्य के निकट नहीं पहुँच पाता, जिस दिन अदृष्ट पर दृष्टि जाएगी उस दिन आँख में आँसू नहीं आ सकता, किंतु अदृष्ट को हो सब कुछ मानने वाला पुरुषार्थहीन पुरुष भी कार्य की सिद्धि नहीं कर पाता।

तत्ववेत्ता जैनमुनि ने आगे कहा कि, अदृष्ट कोई ईश्वर नहीं ,जो किसी के दुख सुख को निर्धारित करता हो, बल्कि अदृष्ट का कर्ता विधाता जीव स्वयं है। पूर्व कृत कर्म ही ,वर्तमान का अदृष्ट है अदृष्ट अर्थात् भाग्य,दैव व कर्म। कहा कि, वर्तमान का कृत कर्म ही भविष्य के अदृष्ट को निर्मित करता है ।पूर्व कृत कर्मों के उदय होने पर जीव उसके परिणाम पाता है, जैसी प्रतिक्रिया करता है ,वही उसके उज्ज्वल अथवा निम्नतम भविष्य को निर्धारित करती है। 

कहा कि,परीक्षार्थी को किसी ज्योतिषी से पूछने की आवश्यकता नहीं कि, मैं उतीर्ण होऊँगा या नहीं, क्योंकि जैसा उत्तर- पुस्तिका में लिखा है जैसा पूरे वर्ष पर्यन्त अध्ययन किया है, पुरुषार्थ किया है और प्रश्न पत्र के सम्मुख होने पर जैंसी उपयोग की धारा से जितने जागृत होकर उत्तर अंकित किए हैं ,वही परिक्षा परिणाम में प्रतिबिंबित होगा।कहा कि, जीवन में हो रहे सुख दुःख, उतार-चढ़ाव किसी ज्योतिषी से पूछने की आवश्यकता नहीं है, जीवन पर्यन्त पुरुषार्थ किया मंदिर गए, शास्त्र पढ़े, गुरुओं को आहार दान दिया, किंतु जब गृह में क्लेश हुआ, समाधि का समय आया, जो परीक्षा का समय आया तब धैर्य, समता नहींं रख पाए, वाणी पर नियंत्रण न रख पाए ,तो घर की परीक्षा परिणाम में उत्तीर्णता कैंसे प्राप्त होगी।

सभा का संचालन डॉक्टर श्रेयांस जैन ने किया। सभा मे सुरेंद्र जैन, अनिल जैन, नवीन जैन, अनिल राजदूत, विनोद एडवोकेट, जितेंद्र जैन, विवेक जैन,दीपक जैन, सचिन जैन, उदित जैन, नीरज जैन आदि उपस्थित थे।