महंगाई पर आस्था पड़ रही है भारी जमकर हो रही ईद उल फितर की खरीदारी,,,, महंगाई छू रही आसमान फिर भी साप्ताहिक बाजार में ईद की खरीदारी करने वालों की उमड़ी भीड़ खरीदारी करने वालों में महिलाओं की संख्या अधिक,,,,,,,
मवाना इसरार अंसारी। मुस्लिमों के सबसे बड़े त्यौहार ईद उल फितर के 5 दिन शेष बचे हैं ऐसे में घर-घर में ईद की तैयारियां जोर-शोर से शुरू हो चुकी है नगर के बाजार ही नहीं रविवार को लगने वाली साप्ताहिक पेंठ में भी ईद के लिए खरीदारों की रौनक देखने को मिली और बाजार भी गुलजार दिखाई दिए पूरे दिन साप्ताहिक पेंठ में ग्राहकों की लाइन लगी रही हालांकि सभी चीजों पर पहले के मुकाबले दोगुनी महंगाई हो चुकी है लेकिन महंगाई पर आस्था भारी पड़ती दिखाई दे रही है लोगों का कहना है कि बीते वर्षों में इतनी महंगाई की मार नहीं थी और ईद भी सस्ती मन जाती थी लेकिन इस बार महंगाई ने गरीबों मजदूरों की कमर तोड़कर रख दी है । बता दें कि इस्लाम में ईद के त्यौहार की बहुत ही अहमियत है क्योंकि इस महीने में अकीदतमंद रोजेदार 30 या 29 रोजे रखकर अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं और इसे बरकत वाला महीना भी कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस महीने में जो इंसान खुदा के रास्ते में ₹1 खर्च करता है उसे अल्लाह ताला 70 गुना अधिक देता है इसीलिए अधिक से अधिक सवाब पाने के लिए लोग खुलकर खैरात जकात में रुपए खर्च करते हैं। जिसके चलते लोग अपने परिवार के लिए जूते कपड़े ड्राई फ्रूट श्रृंगार के सामान आदि की खरीदारी में जुट चुके हैं जिस कारण नगर के बाजार एवं सप्ताहिक पेंठ में अच्छी खासी भीड़ देखने को मिली साप्ताहिक पेंठ में आए दुकानदारों ने बताया कि पिछले वर्ष की उपेक्षा से इस वर्ष महंगाई होने के बावजूद भी इस बार अधिक दुकानदारी हो रही है हालांकि लोग महंगाई के कारण अपने और अपने बच्चों के लिए जरूरत का ही सामान खरीद रहे हैं। वही रविवार की साप्ताहिक पेंठ में खरीदारी करने आए इरफान ने बताया कि महंगाई की मार तो इतनी पड़ रही है कि घर चलाना मुश्किल हो रहा है लेकिन ईद का त्योहार है बच्चों की खुशी के लिए खरीदारी तो करनी ही पड़ेगी बच्चों की खुशी के लिए महंगाई कोई मायने नहीं रखती वही रिजवान अंसारी ने बताया कि अमीर लोगों के लिए महंगाई कोई मायने नहीं रखती अमीर लोगों की तो रोज ईद और रोज दिवाली होती है गरीब का त्योहार मन जाए और बच्चों के चेहरे पर खुशी बरकरार रहे बस इसीलिए महंगाई की मार भी झेलनी पड़ रही है।