चित्रकूट में हुआ राष्ट्रीय कवि सम्मेलन: साहित्य प्रेमियों के लिए एक अद्भुत अवसर।
चित्रकूट: जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग राज्य विश्वविद्यालय में आयोजित उप्र अवकाश प्राप्त माध्यमिक शिक्षक कल्याण एसोसिएशन के प्रांतीय अधिवेशन के दौरान एक शानदार राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ, जिसने साहित्य प्रेमियों को एक नया आयाम दिया। इस साहित्यिक आयोजन की अध्यक्षता प्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती ज्योति स्वरूप अग्निहोत्री ने की, जबकि कवि सम्मेलन का संयोजन राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त कवि रामेश्वर प्रसाद द्विवेदी ‘प्रलयंकर’ ने किया।
कार्यक्रम की शुरुआत में ही साहित्यकारों और श्रोताओं के बीच एक सजीव और ऊर्जावान माहौल बना, जो दिनभर जारी रहा। इस सम्मेलन में देशभर से आए विभिन्न कवियों और साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से कविता, गीत और ग़ज़ल की विविध शैलियों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
कवि रामेश्वर प्रसाद द्विवेदी ‘प्रलयंकर’ ने अपनी कविता में सनातन धर्म की महत्ता को व्यक्त किया, "धर्म तो सनातन है और कोई धर्म नहीं, यही धर्म सास्वत महान है।" उनके शब्दों में गहरी धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि थी, जिसने श्रोताओं को भारतीय संस्कृति के अद्वितीय पहलुओं के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया।
साहित्यकार नंदा पांडेय ने अपनी कविता "बुलंदी देर तक किस सख्श के हिस्से में रहती है..." के माध्यम से जीवन की अस्थिरता और उतार-चढ़ाव को बेहद सजीव तरीके से चित्रित किया। उनका कहना था कि ऊँचाइयाँ हमेशा किसी के हिस्से में नहीं रहतीं, और समय के साथ सब कुछ बदलता रहता है। नंदा पांडेय की यह कविता जीवन के संघर्ष और प्रतिकूलताओं के बावजूद आत्मविश्वास बनाए रखने की प्रेरणा देती है।
वीरेंद्र शुक्ल ने "धरती के आंचल ईश ने सजाया" कविता के माध्यम से प्रकृति और मानव के संबंधों को खूबसूरत तरीके से व्यक्त किया। उनके शब्दों में धरती की महानता और प्रकृति से मानव को मिलने वाले आशीर्वाद का वर्णन था।
कवि आशाराम अवस्थी ने "देश हमार महान जहान में चन्दन है" गीत प्रस्तुत किया, जो भारतीय संस्कृति, परंपरा और देशप्रेम की भावना को व्यक्त करता है। उन्होंने यह गीत प्रस्तुत करते हुए देश के लिए प्रेम और समर्पण का भाव व्यक्त किया, जिससे श्रोताओं में देशभक्ति का जज्बा और भी मजबूत हुआ।
देशप्रेम के विचार को आगे बढ़ाते हुए, कवि दुष्यंत शुक्ल सिंह ने अपनी कविता "बुजदिल है वह मानव जिसमें देश प्रेम का ज्वार नहीं..." में यह बताया कि जो व्यक्ति अपने देश से प्रेम नहीं करता, वह जीवन में किसी भी बड़े कार्य को साकार नहीं कर सकता। उनकी कविता में देशभक्ति का गहरा संदेश था, जो श्रोताओं के दिलों को छू गया।
भवानी प्रसाद तिवारी ने "पाक तू है नदी छोटी, मेरा भारत समुंदर है" गीत के माध्यम से भारत की विशालता और उसकी महानता का बखान किया। यह गीत भारत की एकता और अखंडता की शक्ति को उजागर करता है, जो राष्ट्र के प्रति प्रेम और समर्पण को प्रगाढ़ करता है।
कार्यक्रम में अन्य प्रमुख कवियों ने भी अपनी काव्य रचनाओं का पाठ किया, जिनमें विजय त्रिपाठी (लखनऊ), महराज दीन मिश्र (बलिया), देव कुमार सिंह (बलिया), धनन्जय पाण्डेय, नवीन वैश्वारी, वीरेन्द्र शुक्ल, कौशल किशोर चतुर्वेदी, विजय बहादुर, अरुण कुमार पांडेय, और डॉ. ओपी त्रिपाठी शामिल थे। इन सभी कवियों ने अपने-अपने विचार और भावनाओं को कविता के रूप में प्रस्तुत किया, जो श्रोताओं को गहरे विचारों में डुबोने के साथ-साथ उनकी कल्पना को भी उड़ान देने में सक्षम थे।
सम्मेलन में उप्र अवकाश प्राप्त माध्यमिक शिक्षक कल्याण एसोसिएशन के सदस्य, साहित्य प्रेमी और छात्र-छात्राओं ने भी भाग लिया और कार्यक्रम का आनंद लिया। यह आयोजन न केवल साहित्य की महत्ता को प्रदर्शित करने का एक अवसर था, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और काव्य कला के प्रति सम्मान और प्रेम को भी बढ़ावा देता है।
इस अद्भुत साहित्यिक सम्मेलन ने सभी को यह एहसास दिलाया कि कविता और साहित्य जीवन के हर पहलू को एक नए दृष्टिकोण से देखने का मौका प्रदान करते हैं।