स्वस्थ चित्त द्वारा ही चरित्र की स्वच्छता संभव : आ विशुद्ध सागर

स्वस्थ चित्त द्वारा ही चरित्र की स्वच्छता संभव : आ विशुद्ध सागर

संवाददाता आशीष चंद्रमौली

बडौत | दिगंबर जैन संत विशुद्धसागर जी महाराज ने धर्मसभा में मंगल प्रवचन करते हुए श्रेष्ठ विद्यार्थी के लक्षणों के बारे में बताया कि ,अनुशासनप्रिय, विनयी, जिज्ञासु, लग्नशील, उत्साही तथा सहज-सरल जीवन जीने वाला ही विद्यार्थी श्रेष्ठ होता है। 

तप साधनारत जैन मुनि ने कहा कि, मनुष्य भव प्राप्त करना सुर-दुर्लभ है। स्वर्ग का देवता बोध प्राप्त कर सकता है, परन्तु वह बोधि, संयम और समाधि को प्राप्त नहीं कर सकता है। मनुष्य ही मुक्ति को प्राप्त कर सकता है। सर्वश्रेष्ठ कोई पर्याय है ,तो वह ,एक मात्र मनुष्य पर्याय ही है। सर्व-सुखों का भोक्ता मनुष्य ही होता है। उत्तम श्रेष्ठ कुल, उत्तम बुद्धि, वैराग्य, वीतरागी गुरू, जिन दीक्षा, संयमाचरण, सल्लेखना, समाधि और मोक्ष ये उत्तरोत्तर दुर्लभ हैं।

उन्होंने कहा कि,निरंजन की सिद्धि चाहिए, तो मौन पूर्वक निर्विकार साधना करनी होगी। कोई कीमती वस्तु रखना है, तो पहले पात्र को स्वच्छ किया जाता है। ऐसे ही निर्माण चाहिए तो सर्व-प्रथम अपने चित्त को स्वच्छ करो। जिसका चित्त स्वस्थ होगा, वही चरित्र को स्वच्छ कर पाएगा। विकृत चित्र ही चित्त और चरित्र को च्युत करते हैं।
     
सभा का संचालन पं श्रेयांस जैन ने किया। सभा में प्रवीण जैन, सुनील जैन, अतुल जैन, दिनेश जैन, वरदान जैन, राकेश सभासद, विनोद जैन, मनोज जैन, पुनीत जैन, सतीश जैन, विवेक जैन, धनेंद्र जैन आदि रहे।