ChatGPT क्या है? गूगल के लिए ख़तरा क्यों?
दुनिया जब क़तर में हो रहे फ़ुटबॉल वर्ल्ड कप का आनंद ले रही थी, तब दुनिया में ChatGPT नाम के एक आर्टिफ़िशियल टूल ने डेब्यू किया.
ये नया सिस्टम ऐसा कॉन्टेट लिख सकता है जो बहुत ही सटीक होता है और इंसानों के लिखे जैसा ही प्रतीत होता है. ये नया टूल गूगल के लिए ख़तरा बनकर उभरा है और आलम ये है कि जीमेल के फाउंडर पॉल तक ने कुछ वक़्त पहले कहा था कि दो साल में ये टूल गूगल को बर्बाद कर सकता है.
फ़िलहाल इस प्रोग्राम में कुछ कमियां देखी जा सकती हैं लेकिन वक़्त के साथ ये टूल और स्मार्ट होता जाएगा. इसे पसंद करने वाले इसकी तारीफ़ों के पुल बांध रहे हैं लेकिन कुछ लोगों के मन में इस नए टूल को लेकर डर भी है.
अगर आप इंटरनेट पर ChatGPT के रिव्यू पढ़ेंगे तो बार-बार 'ख़तरा' शब्द का ज़िक्र मिलेगा. कई लोगों का मानना है कि ये प्रोग्राम मानव मस्तिष्क को तेज़ी से कॉपी कर रहा है.
अमेरिकी अख़बार न्यूयॉर्क टाइम्स में हाल ही छपे एक लेख के मुताबिक़, लर्निंग, शिक्षा, डिजिटल सुरक्षा, काम-काज और लोकतंत्र तक पर, इस प्रोग्राम के असर की संभावना जताई गई है.
अख़बार लिखता है कि पहले जो राय किसी व्यक्ति की होती थी वो एक आर्टिफ़िशियल रोबोट द्वारा लिखा गया तर्क हो सकता है.
क्या है ChatGPT?
ChatGPT दरअसल एक चैटबॉट है जो आपके कई तरह के सवालों का लिखित और लगभग सटीक जवाब दे सकता है. ये चैटबॉट आप की निजी समस्याओं पर भी सलाह दे सकता है.
इसके ज़रिए कॉन्टेंट पैदा करने की संभावनाएं अपार हैं.
उदाहरण के लिए ये आपको जटिल लेकिन लज़ीज़ रेसिपी समझा सकता है और इसी रेसिपी का नया वर्ज़न भी तुरंत क्रिएट कर सकता है. ये आपको नौकरी खोजने में मदद कर सकता है. आपको कविताएं, अकादमिक पेपर और ख़ास दोस्तों को ख़त लिखने में मदद कर सकता है.
ChatGPT आपके हर प्रश्न का जवाब कुछ ही पलों में दे देता है. मसलन आप इस चैटबॉट से कहें - आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस विषय पर शेक्सपीयर के अंदाज़ में एक कविता लिखें.
कुछ ही पल में आपको ये कविता लिखी हुई मिलेगी. कविता के स्तर पर बहस हो सकती है लेकिन उसे लिखने की स्पीड पर नहीं.
ChatGPT लगभग 100 भाषाओं में उपलब्ध है लेकिन ये अंग्रेज़ी में सबसे सटीक है.
उदाहरण के लिए जब हमने चैट जीपीटी पर दिल्ली के बारे में कविता लिखने के लिए कहा तो हिंदी और इंग्लिश के परिणाम और भाषा में फर्क साफ़ नज़र आया. आप ख़ुद नीचे की तस्वीर में देखिए.
इस सिस्टम को OpenAI नाम की कंपनी ने साल 2015 में सैम एल्टमेन और एलॉन मस्क ने विकसित किया था. एलन मस्क साल 2018 में इससे अलग हो गए थे.
लॉन्च होने के पांच दिन के भीतर ही ChatGPT के दस लाख यूज़र्स हो गए थे. यूज़र्स के साथ चैटबॉट के सवाल-जबाव का प्रयोग, इस प्रोग्राम को बेहतर करने के लिए किया जाता है.
OpenAI का कहना है कि इस चैटबॉट का इस्तेमाल सबके लिए मुफ़्त रहेगा और ये टेस्टिंग, रिसर्च के दौरान सबके लिए उपलब्ध रहेगा.
कंपनी के इस बयान से लोगों ने क़यास लगाने शुरू कर दिए कि भविष्य में ChatGPT के प्रयोग के लिए OpenAI पैसे लेने लगेगी.
कंपनी ये भी कह चुकी है कि टेस्टिंग और रिसर्च के दौरान सॉफ़्टवेयर कभी-कभार ग़लत और भ्रामक जानकारियां भी दे सकता है. कंपनी ने भी कहा है कि चैटबॉट के डेटा हिस्ट्री सिर्फ़ 2021 तक ही सीमित है.
गूगल के एकछत्र राज को चुनौती?
कई लोग इसे इंटरनेट पर जानकारियां जुटाने के लिए गूगल के एकछत्र राज को चुनौती बता रहे हैं लेकिन ये सिस्टम अब भी गंभीर ग़लतियां कर रहा है.
जैसे इस चैटबॉट से पूछा गया कि कितने भारतीय अब तक ऑस्कर पुरस्कार जीत चुके हैं? इसके जवाब में चैटबॉट ने लिखा- साल 2021 तक भानु अथय्या ऑस्कर जीतने वाली इकलौती भारतीय हैं.
पर जैसा कि आप और हम जानते हैं कि कई और भारतीयों ने ऑस्कर पुरस्कार जीता है.
ऐसे एआई प्रोग्राम ढेरों डेटा स्टोर करके रखते हैं. ChatGPT का फ़ोकस शब्दों और बातचीत के अंदाज़ में जवाब देने में है. ये चैटबॉट एल्गोरिदम का इस्तेमाल कर वाक्य को बेहतरीन तरीके से लिखने का अंदाज़ा लगाता है.
इन्हें लार्ज लैंगुएज मॉडल (एलएएम) भी कहा जाता है.
साओ पाउलो यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर अल्वारो मचादो डायस एक न्यूरो सांइटिस्ट हैं. वे बताते हैं कि ऐसे चैटबॉट के निर्माण के दौरान इससे कई साधारण प्रश्न पूछे जाते हैं. जैसे- सिलेंडर क्या होता है?
फिर टेक्निशियन इस प्रश्न का विस्तृत जवाब देते हैं.
"इसके बाद भी अगर चैटबॉट का जवाब तार्किक नहीं होता है तो सिस्टम में सही जवाब फ़ीड किया जाता है. ऐसा कई प्रश्नों के साथ किया जाता है."
ChatGPT हू-ब-हू इंसानों की तरह बोलना सीखता है.
मचादो डायस कहते हैं कि यही इसे ख़ास बनाता है क्योंकि ये भाषाओं को समझने में माहिर हो गया है.
इंजीनियर दिन-रात इसे स्मार्ट बनाने में लगे हुए हैं.
प्रोफ़ेसर डायस कहते हैं, "दरअसल इंजीनियर एल्गोरिदम के ज़रिए दिए गए जवाबों को जांचते हैं और प्रोग्राम को फ़ीडबैक देते हुए, इसे बेहतर बनाने का प्रयास करते हैं. आप का सवाल का जवाब एक टेक्स्ट की फ़ॉर्मेट में होता है और वो काफ़ी गंभीर होता है."
ChatGPT को ग़लतियां स्वीकार करने के लिए भी ट्रेन किया गया है. ये प्रोग्राम ग़लत धारणाओं को ठीक कर लेता है और ग़ैर-वाजिब सवालों को रिजेक्ट कर देता है.
लेकिन यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया के एक प्रोफ़ेसर ने इस सिस्टम के ज़रिए एक ऐसा प्रोग्रामिंग कोड बनवाया जिसके मुताबिक़ सिर्फ़ गोरे और एशियाई पुरुष ही अच्छे वैज्ञानिक बन सकते हैं.
OpenAI ने स्वीकार किया है कि फ़िलहाल प्रोग्राम उसे दिए गए निर्देशों के जवाब में दिक्कत वाले जवाब दे सकता है और टेस्टिंग के दौरान जुटाए गए डेटा का प्रयोग सिस्टम को और पुख़्ता करने के लिए किया जाएगा.
क्या ये क्रिएटिविटी के लिए ख़तरा है?
जिन नौकरियों में शब्दों और वाक्यों पर निर्भरता है उनमें ख़तरे की घंटियां बजनी शुरू हो गई हैं.
जैसे कि पत्रकारिता. अगर सिस्टम और बेहतर हुआ तो पत्रकारों की नौकरियां कम होंगी और संभवत एक समय ऐसा भी आ सकता है जब उनकी ज़रुरत ही नहीं पड़ेगी क्योंकि हर आर्टिकल चैटबॉट ही लिख देगा.
ChatGPT की कोड लिखने की क्षमता एक और सेक्टर पर सवाल खड़ा कर सकती है. और वे सेक्टर है - कंप्यूटर प्रोग्रामिंग.
लेकिन जिस क्षेत्र में सर्वाधिक चिंता है वो है - शिक्षा.
न्यूयॉर्क में छात्रों को ChatGPT के ज़रिए अपने एसाइनमेंट करने का इतना लोभ हुआ कि सारे शहर में आनन-फानन में चैटजीपीटी को सभी स्कूलों और सार्वजनिक डिवाइस पर बैन कर दिया.
OpenAI भी अपने चैटबॉट के ज़रिए जेनरेट किए गए कॉन्टेंट को अलग पहचान देने का प्रयास कर रहा है. ऐसे एल्गोरिदम मौजूद हैं जो काफ़ी सटीक तरीके से ये बता सकते हैं कि टेक्स्ट चैटबॉट ने लिखा है या किसी व्यक्ति ने.
चैटबॉट से कॉपी कर, अपने होम वर्क और असाइनमेंट में पेस्ट करने के अलावा भी कई डर हैं जिनके कारण शिक्षा के क्षेत्र में डर है.
उदाहरण के लिए किसी छात्र को एक जटिल निबंध लिखने के लिए दिया हो तो?
साओ पाउलो यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर डायस कहते हैं, "मैं विचारों के मशीनीकरण पर चिंतित हूँ. ये दुनिया को समझने के तरीके को पलट देने जैसा है."
"ये आधुनिक इतिहास में माइंडसेट के बदलाव की सबसे महत्वपूर्ण घटना होगी. ये भी नोट करने वाली बात है कि मानव मस्तिष्क तेज़ी से सिकुड़ रहा है. इसका कारण टेक्नोलॉजी का विकास है."
आधे इंसान और आधे मशीन
आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस: फ़्रोम ज़ीरो टू मेटावर्स नामक किताब की लेखक और रियो ग्रांडे की पॉन्टिफ़िकल कैथोलिक यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर मार्था गेब्रिएल भी मानती हैं कि बदलते वक़्त के साथ हमें तेज़ी से बदलना होगा.
मार्था गेब्रिएल कहती हैं, "ख़ास फ़र्क ये है कि अब जवाब मायने नहीं रखते, सवाल अहम हो गए हैं. आपको ये मालूम होना चाहिए कि सही सवाल कैसे पूछना है और इसके लिए आपके दिमाग को सोचना पड़ेगा, ज़ोर लगाना पड़ेगा."
ब्राज़ील की फ़ेडरल यूनिवर्सिटी में एक रिसर्चर यूरी लिमा कहती हैं कि नई तकनीक छात्रों को साइबॉर्ग (आधे इंसान और आधे मशीन) में बदल देगी.
यूरी लिमा कहती हैं, "इस नई तकनीक की मांग है कि अध्यापक भी इसका ठीक से इस्तेमाल करना सीखें."
ये तो बात हुई शिक्षा और छात्रों की. लेकिन एक और बड़ी चिंता है. वो है मनुष्यों की क्रिएटिविटी और कॉन्टेट बनाने की.
इस सिस्टम के उपलब्ध होने के दस दिन के भीतर ही सेन फ़्रेंसिस्को के एक डिज़ाइनर में दो दिन के भीतर एक बच्चों की सचित्र पुस्तक तैयार कर दी थी.
डिज़ाइनर ने ChatGPT के अलावा MidJourney नामक प्रोग्राम से भी मदद जिसके ज़रिए तस्वीरें जुटाई गईं.
प्रोफ़ेसर मचादो डायस कहते हैं कि क्रिएटिविटी के लिए असाधारण टेलेंट की ज़रूरत होती है लेकिन एल्गोरिदम की मदद से पैदा की गई चीज़ों से मनुष्यों में क्रिएटिव होने की प्रवृति कम होगी.