इच्छाधारी नागिन नामक पुस्तक सामने आने के बाद फिर उठने लगी नेताजी की अस्थियों के डीएनए टेस्ट की मांग

संवाददाता नीतीश कौशिक
बागपत।1948 में एक पुस्तक प्रकाशित हुई थी, इच्छाधारी नागिन, जिसके लेखक के तौर पर सूर्यकांत छद्म नाम अंकित किया गया था। 270 पेज के उपन्यास में सच्ची घटनाओं का लिपिबद्ध होना माना जा रहा है। पुस्तक में आजाद हिन्द फौज, नीरा आर्य नागिन और उनके भाई बसंत की कहानी है। हरेक घटनाक्रम तिथि, स्थान के साथ दर्शाया गया है। लेखक पहले ब्रिटिश सेना में थे,लेकिन बाद में आजादी की जंग में कूदने के कारण आईएनए ज्वाइन कर लिया था।
उन्होंने अपने इस ऐतिहासिक उपन्यास में लिखा है कि, हवाई दुर्घटना में नेताजी नहीं मरे थे तथा नीरा आर्य के भाई बसंत कुमार आत्मबलिदान हुए थे। जापान के एक मंदिर में बसंत कुमार की अस्थियां हैं, न कि नेताजी की। नीरा आर्य की जासूसी की कई घटनाएं पुस्तक में बहुत रोचक हैं।
लेखक के पौत्र ने वरिष्ठ पत्रकार व फिल्म स्टोरी राइटर तेजपाल सिंह धामा के हवाले से बताया कि, किसी ने इस पुस्तक के छपने पर 1951 में लेखक ही हत्या कर दी थी व बाजार से सारी पुस्तके चुन-चुनकर खरीदी थी, बाद में किसी अज्ञात व्यक्ति ने सारी प्रतियों को नष्ट कर दी थी, तथा लेखक के परिजनों को उसे आगे न छापने की हिदायत भी दी गई थी।इस दौरान लेखक के दो बेटों को भी हिन्दुस्तान छोड़़कर विदेश में शरण लेनी पड़ी थी।
इस पुस्तक के प्रथम संस्करण में नीरा को खेकड़ा संयुक्त प्रांत वासी और कई भाषाओं की जानकार बताया गया है। तेजपालसिंह धामा ने भारत सरकार को पत्र लिखकर जापान के मंदिर से नेताजी सुभाष की अस्थियां सम्मान के साथ लाकर उनका डीएनए टेस्ट कराने की मांग की है।