धर्मक्षेत्रे ,मध्यस्थता या तटस्थता में आनन्द, जबकि पक्षपातकर्ता बुद्धि से कष्ट ही कष्ट :आ विशुद्ध सागर
संवाददाता आशीष चंद्रमौली
बडौत।दिगंबर गुरु वही है,जो जीवन-मरण में समता भाव धारण करें, लाभ अलाभ में उद्वेलित न हों, भेद-भाव के पक्षपात से शून्य हो, कांच कंचन में सम-दृष्टि रखे, शत्रु-मित्र में द्वेष-राग न करे, स्तुति व निंदा से प्रभावित न हो, वे ही धरती पर सच्चे- दिगम्बर गुरु हैं। उक्त विचार जैन संत चर्या शिरोमणि विशुद्ध सागर ने धर्मसभा में व्यक्त किए।
आचार्य श्री ने कहा कि सूर्य, मेघ, सम्राट, साधु, न्यायाधीश, वैद्य, गुरु, पत्रकार, पथ, दर्पणवत् तटस्थ रहते हैं। सम्राट किसी से पक्षपात नहीं करते, अपराधी को अपराध का दण्ड देते हैं। सूर्य भेद-भाव शून्य होकर जगति को रोशनी और ताप देते हैं। मेघ जन-जन को नीर देते हैं। साधु सर्व-जीवों पर समत्व-भाव रखते हैं। न्यायाधीश सत्य को जानकर निर्णय देते हैं। वैद्य प्रत्येक रोगी को औषधी देते हैं। गुरू सभी को शिक्षा देते हैं, पत्रकार पक्षपात रहित होकर सत्य का उद्घाटन करते हैं और पथ सर्वप्राणियों को राह देता है व दर्पण सभी को झलकाता है ,ऐसे ही जो मानव तटस्थ होता है, वह सदा सुखी होता है। मध्यस्थता, तटस्थता में आनन्द है, परन्तु पक्षपातकर्ता बुद्धि में कष्ट-ही-कष्ट है।
जैन संत ने कहा कि,दुनिया में जितने दुःख-कष्ट- पीड़ायें हैं, वे सभी पक्षपात में ही होती हैं। राग और द्वेष दोनों ही कष्टप्रद हैं। जहाँ राग- मोह होगा, वहाँ निश्चित रूप से पीड़ा होगी। सबके साथ रहो, सबके साथ जीवन जियो, पर पक्षपात से परे जीवन जियो। साधुजन जगत को देखते- जानते हैं, पर किसी के प्रति राग नहीं करते हैं। जो तटस्थ नहीं रह पाता है, वह दुनिया से प्रभावित होकर सुख-दुःख भोक्ता है।
सभा का संचालन पं श्रेयांस जैन ने किया। इस दौरान नगर के पत्रकारों और मीडिया प्रतिनिधियों का बड़ौत दिगंबर जैन समाज समिति द्वारा सम्मान किया गया।सभा मे प्रवीण जैन, मनोज जैन, धनेंद्र जैन, सुनील जैन, वरदान जैन, अतुल जैन, अशोक जैन, विनोद जैन, विवेक जैन, पुनीत जैन, सुखमाल जैन, राकेश जैन, वीरेंद्र जैन, दिनेश जैन, सतीश जैन आदि उपस्थित रहे।