राजनीतिक और प्रशासनिक संवेदनाओं को झकझोरता गौशाला में मवेशियों की मौतें, अधिकारी बने मूकदर्शक।

रमेश बाजपेई
रायबरेली। विकासखंड सतांव अंतर्गत ग्राम पंचायत कृष्णापुर ताला स्थित गौशाला से अत्यंत पीड़ादायक और चिंताजनक दृश्य सामने आ रहे हैं। गौशाला में मवेशियों की लगातार हो रही मौतें न सिर्फ पशुपालन व्यवस्था पर सवाल खड़े कर रही हैं,बल्कि यह पूरे प्रशासनिक तंत्र की संवेदनहीनता को भी उजागर करती हैं।मीडिया रिपोर्ट्स और स्थानीय सूत्रों के अनुसार, गौशाला में रखी गईं गायों को न तो पर्याप्त चारा उपलब्ध है,न शुद्ध पानी और न ही धूप से बचाव के लिए छांव की व्यवस्था। इस भीषण गर्मी में तपती रेत पर तड़पती गायें दम तोड़ रही हैं, और उनके शवों को रिक्शा लोडर में बिना किसी मानवीय संवेदना के उठाकर फेंका जा रहा है।विकास की परिभाषा में यदि निरीह पशुधन की इस प्रकार की उपेक्षा सम्मिलित है, तो यह न केवल शासन-प्रशासन के लिए चिंतन का विषय है, बल्कि सामाजिक चेतना के लिए भी एक गहरी चोट है।प्रश्न यह उठता है कि इस अमानवीय परिस्थिति के लिए जिम्मेदार कौन है। क्या ग्राम प्रधान की भूमिका संदेह के घेरे में है। क्या विकासखंड अधिकारी और पशुपालन विभाग ने अपनी ज़िम्मेदारियों से मुँह मोड़ लिया है।या फिर यह पूरी प्रशासनिक व्यवस्था की सामूहिक चूक का परिणाम है।ऐसे मामलों में केवल कागज़ों पर चारा दर्शाकर बजट का उपभोग करना और जमीनी हकीकत से मुँह फेर लेना न सिर्फ भ्रष्टाचार की ओर इशारा करता है, बल्कि यह समाज की नैतिक संरचना पर भी प्रश्नचिह्न लगा देता है।अब जनता जानना चाहती है क्या इन निरीह जीवों की करुण पुकार तक केवल चुनावी भाषणों में सुनाई देगी, या इस बार कोई ठोस कार्यवाही भी होगी।
क्या उच्च प्रशासन और राज्य सरकार इस मामले का संज्ञान लेकर दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई सुनिश्चित करेगी।अब देखना यह है कि रायबरेली की यह गूंज, शासन के गलियारों तक कब और कैसे पहुँचती है।