कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा को लेकर पोस एक्ट पर विधिक साक्षरता शिविर आयोजित।
चित्रकूट: राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण नई दिल्ली और उत्तर प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण लखनऊ के निर्देशानुसार बुधवार को न्यायालय परिसर में कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (पोस एक्ट) से संबंधित विधिक साक्षरता एवं जागरूकता शिविर का आयोजन किया गया।
इस अवसर पर विशेष न्यायाधीश पाक्सो एक्ट, रेनू मिश्रा ने पोस एक्ट के महत्व पर प्रकाश डाला और बताया कि 2013 में इस कानून को लागू किया गया था, जिसका मुख्य उद्देश्य कार्यस्थलों पर महिलाओं को यौन उत्पीड़न से सुरक्षित करना और उन्हें एक सुरक्षित कार्य वातावरण प्रदान करना है। उन्होंने कहा कि यह कानून सभी सार्वजनिक और निजी प्रतिष्ठानों पर लागू होता है, जिसमें संगठित और असंगठित क्षेत्र सहित गैर-सरकारी संगठन भी शामिल हैं।
अपर जिला जज और जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की सचिव, नीलू मैनवाल ने इस अधिनियम की व्याख्या करते हुए बताया कि प्रत्येक संगठन को अपने महिला कर्मचारियों के लिए यौन उत्पीड़न से संबंधित नीतियां और रोकथाम प्रणालियां तय करनी होती हैं। इसके अलावा, प्रत्येक संस्था में एक आंतरिक समिति का गठन भी अनिवार्य है। उन्होंने बताया कि इस अधिनियम के तहत, महिलाएं अपने कार्यस्थल पर उत्पीड़न का सामना करने पर शिकायत दर्ज कर सकती हैं, चाहे वह किसी भी प्रकार के कार्यस्थल पर हो।
सिविल जज सीनियर डिवीजन, एफटीसी सोनम गुप्ता ने बताया कि यह अधिनियम महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने और कार्यस्थल पर सुरक्षित माहौल प्रदान करने में अहम भूमिका निभाता है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह कानून केवल महिलाओं को ही सुरक्षा प्रदान नहीं करता, बल्कि यह सुनिश्चित करता है कि उनके सम्मान और गरिमा का उल्लंघन न हो।
इस शिविर में सिविल जज जूनियर डिवीजन सैफाली यादव, न्यायिक मजिस्ट्रेट अंजलिका प्रियदर्शिनी और अन्य न्यायिक अधिकारी भी मौजूद थे। इस आयोजन ने कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा को लेकर एक नई जागरूकता का संदेश दिया, जिससे महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति और अधिक सजग रहने की प्रेरणा मिली।