सज्जन व दुर्जन की पहचान करा देती है उनकी जीवनवृत्ति :आ विशुद्ध सागर
संवाददाता आशीष चंद्रमौली
बडौत।दिगम्बराचार्य विशुद्धसागर ने ऋषभ सभागार में आयोजित धर्मसभा में कहा कि, चील मत बनो, चकोर बनो। चील पक्षी उत्तुंग आकाश में उड़कर भी भूमि पर पड़े मृत पशु को देखता है, दुर्गंधित मांस के टुकड़े को निहारता है , जबकि चकोर भूमि पर बैठा-बैठा ऊंचे आकाश में उदित चंद्र को निहारता है। सज्जन सुगति को प्राप्त करता है, और दुर्जन दुर्गति में गिरता है।
उन्होंने कहा कि, दोष दृष्टि दुर्जन का चिह्न है। दुर्जनों की दुर्गुण ही पसंद आते हैं। दुर्जनों को दुष्टता ही पसंद आती है। दुर्जन को क्रूरता, हिंसा, कलह, चुगलखोरी, निंदा ही पसंद आती है। जैसो करोगे वैसा ही फल मिलेगा। मत चुभाओं किसी को कांटे, नहीं तो कष्ट भोगना पड़ेगा।सज्जन हमेशा गुणों पर ही दृष्टि रखता है। सज्जन मानव सार-सार ग्रहण करता है, निस्सार को छोड़ देता है।सभा का संचालन पंडित श्रेयांस जैन ने किया। सभा मे प्रवीण जैन,सुनील जैन, विनोद एडवोकेट, धन कुमार जैन, धनेंद्र जैन,दिनेश जैन, वीरेंदर पिन्टी, राजेश जैन,विवेक जैन, प्रवीण जैन आदि उपस्थित रहे।