हेमजेनिक्स दुनिया की सबसे महंगी दवा ,क़ीमत सुन दंग रह जाएंगे
हाल ही में अमेरिका के फ़ूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफ़डीए) ने हेमजेनिक्स नाम की दवा को देश में बिक्री की अनुमति दे दी है.
यह एक जीन थेरेपी है जो 'हीमोफ़ीलिया बी' बीमारी के इलाज़ के लिए दी जाती है.
'हीमोफ़ीलिया बी' बहुत अनजान लेकिन बहुत ख़तरनाक बीमारी है जो खून के जमने को मुश्किल बना देती है.
इसे बनाने वाली कंपनी सीएसएल बेहरिंग ने अमेरिका में इसकी एक डोज़ की क़ीमत 35 लाख डॉलर (क़रीब 28.84 करोड़ रुपये) तय की है.
इसकी वजह से यह दुनिया की सबसे महंगी दवा बन गई है.
इतनी महंगी क्यों है ये दवा?
क़रीब चालीस हज़ार लोगों में एक इंसान को 'हीमोफ़ीलिया बी' बीमारी होती है. ये बीमारी पुरुषों में अधिक होती है क्योंकि अधिकांश महिलाओं में इसके लक्षण नहीं पाए जाते.
हीमोफ़ीलिया दो प्रकार का होता है ए और बी. ये जेनेटिक कोड में गड़बड़ी के चलते होता है.
इसकी वजह से बीमार व्यक्ति के शरीर में खून जमने के लिए ज़रूरी प्रोटीन नहीं बन पाता, जो कि जानलेवा रक्तस्राव का कारण हो सकता है.
इस प्रोटीन का नाम है फ़ैक्टर 9 जो ब्लड प्लाज्मा में होता है.
अभी तक ऐसे मरीज़ों को कई हफ़्ते तक फ़ैक्टर 9 के इंजेक्शन लेने पड़ते थे.
नई थेरेपी में लैब में बने एक वायरस का इस्तेमाल किया जाता है जिसमें ऐसा जीन होता है जो फ़ैक्टर 9 का निर्माण करता है.
हीमोफ़ीलिया के कम गंभीर, गंभीर और अति गंभीर 57 मरीज़ों पर किए गए दो अध्ययनों में पता चला है कि सिंगल डोज़ वाली हेमजेनिक्स दवा इस बीमारी से लड़ने में कारगर है.
सीएसएल बेहरिंग के अनुसार, "जिन लोगों का हेमजेनिक्स से इलाज़ किया गया, उनमें दो साल तक फ़ैक्टर 9 में वृद्धि और घाव के प्रति सुरक्षा देखी गई है."
हालांकि इसकी पुष्टि करने में दशकों लगेंगे कि यह इलाज़ स्थाई है. फ़िलहाल इन नतीजों को ठोस माना जा रहा है.
एफ़डीए ने कहा है कि "नई दवा हीमोफ़ीलिया बी के मरीजों में फ़ैक्टर 9 बढ़ाने में मदद करेगी, और रक्तस्राव के ख़तरे को कम करेगी."
रिकॉर्ड क़ीमत
इसकी एक डोज़ की क़ीमत 35 लाख डॉलर ने इसे दवा की दुनिया में सबसे महंगा बना दिया है.
इंस्टीट्यूट फ़ॉर क्लीनिकल एंड इकोनॉमिक रिव्यू एक स्वतंत्र संस्था के रूप में दवाओं और अन्य मेडिकल उत्पादों की क़ीमत का आंकलन करती है.
इसके मेडिकल डायरेक्टर डेविड रिंड ने बीबीसी मुंडो से कहा कि बाज़ार में उपलब्ध अन्य सिंगल डोज़ वाली जीन थेरेपी दवाओं, जैसे ज़ाइनटेग्लो (28 लाख डॉलर) और ज़ोल्गेंज्मा (21 लाख डॉलर) के मुकाबले हेमजेनिक्स कहीं ज़्यादा महंगी है.
ज़ाइनटेग्लो बीटा थैलेसीमिया के लिए जबकि ज़ोल्गेंज्मा स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफ़ी के इलाज़ में दी जाती है.
उनके मुताबिक, "हेमजेनिक्स की क़ीमत हमारे हिसाब से 29.3 लाख डॉलर से 29.6 लाख डॉलर के बीच होनी चाहिए."
रिंड के अनुसार, "ये देखने में आता है कि जीन थेरेपी के लिए कंपनियां ऊंचे दाम लेती हैं, ख़ासकर उन दवाओं के लिए जो असरदार हैं."
लेकिन कुछ भी हो, क्या कारण है कि इस दवा का दाम इतना अधिक है?
ये दवा क्यों है इतनी महंगी?
फ़ोर्ब्स मैग्ज़ीन के मुताबिक, साल 2020 में सीएसएल बेहरिंग ने इस थेरेपी के लाइसेंस और मार्केटिंग के लिए इसके शुरुआती डेवलपर यूनीक्योर को 45 करोड़ डॉलर दिए थे.
कंपनी ने 2026 तक इस दवा की बिक्री से 1.2 अरब डॉलर कमाने का लक्ष्य रखा है.
बॉयोटेक कंपनी ने अपने एक बयान में कहा है, "इस दवा की क़ीमत इसके क्लीनिकल, सामाजिक, आर्थिक और इनोवेटिव वैल्यू को देखते हुए रखी गई है."
कंपनी का कहना है कि चूंकि यह सिंगल डोज़ थेरेपी है, इसकी क़ीमत बीमारी के इलाज में पहले से इस्तेमाल किए जा रहे इंजेक्शन से कम ही है.
अनुमान है कि एक मरीज़ की पूरी ज़िंदगी में पुरानी पद्धति के इलाज पर दो करोड़ डॉलर का खर्च आता है.
कंपनी का कहना है कि पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था पर इस बीमारी से पड़ने वाले आर्थिक बोझ को ये बहुत हद तक कम कर देगा.
सीएसएल बेहरिंग ने अमेरिकी बाज़ार में अगले सात सालों तक इस दवा के वितरण का अधिकार सुरक्षित करा लिया है.
असल में इतनी अधिक क़ीमत आम तौर पर सरकार और हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियां वहन करेंगी.
उत्तर अमेरिकी देश में फ़ार्मास्युटिकल कंपनियों को दुर्लभ बीमारियों के इलाज खोजने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है और इसके एवज में दामों पर कोई नियंत्रण नहीं रखा जाता.
इस क्षेत्र में विशेषज्ञ संस्था साइंस अलर्ट के मुताबिक, इसका मतलब ये हुआ कि अमेरिका दुनिया के किसी अन्य देश के मुकाबले दवाओं पर दो से छह गुना अधिक ख़र्च करता है.
हालांकि अन्य देशों में हेमजेनिक्स की क़ीमत नहीं तय की गई है लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि वहां इससे तो कम ही क़ीमत होगी.