चित्रकूट-राष्ट्रीय रामायण मेले के तीसरे दिन कविताओं के माध्यम से लोगों धर्म के प्रति किया गया जागरूक।
चित्रकूट: 51वें राष्ट्रीय रामायण मेला समारोह के तीसरे दिवस की शुरुआत हनुमान चालीसा स्तुति से हुई। कार्यकारी अध्यक्ष प्रशांत करवरिया ने प्रभु श्रीराम, माता जानकी व लक्ष्मण की आरती पूजा कर रामायण मेला के तृतीय दिवस के कार्यक्रमों की श्रंखला का श्रीगणेश किया। वृंदावन से पधारे पं कैलाश शर्मा ने सुमधुर भजनों की प्रस्तुति से दर्शकों की भरपूर तालियां बटोरी। इसके बाद श्रीब्रज कृष्ण लीला रामलीला संस्था के कलाकारों ने रामलीला का मंचन किया। जिसमें अहिल्या उद्धार का मनोहारी मंचन किया। मंचन के दौरान भजन, संगीत सुन दर्शक मंत्रमुग्ध रहे। कवि सम्मेलन की कड़ी में कवि एवं कवियत्रियों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से दर्शक दीर्घा में बैठे दर्शकों के मन मंदिर में प्रभु श्रीराम की छाप छोड दिया। श्रोताओं ने रचनाओं को जमकर सराहा। कवियों ने भी खूब वाहवाही लूटी। सायंकाल से सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम देर रात तक रही। कार्यक्रम में मेले के कार्यकारी अध्यक्ष प्रशांत करवरिया, महामंत्री करुणा शंकर द्विवेदी, कोषाध्यक्ष शिवमंगल शास्त्री, प्रद्युम्न दुबे लालू, घनश्याम अवस्थी, मो यूसुफ, राम प्रकाश श्रीवास्तव, हेमंत मिश्रा, ज्ञानचन्द्र गुप्ता, सूरज तिवारी, कलीमुद्दीन बेग, सत्येन्द्र पांडेय, इम्त्यिाज अली लाला, विकास, नत्थी सोनकर आदि मौजूद रहे।
कवियों ने कविताओं के माध्यम से किया लोगों को ध्यान आकृष्ट
चित्रकूट: रामायण मेला समारोह में कवि सम्मेलन का आयोजन मानस किंकर कवि राम प्रताप शुक्ला की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। देश के विभिन्न अंचलों से आए कवियों ने अपनी कविता के माध्यम से लोगों का ध्यान आकृष्ट किया। कु. रीना सिंह ने सरस्वती वंदना कर कवि सम्मेलन का शुरुआत की। उन्होंने चित्रकूट की जीवनदायिनी मां मंदाकिनी नदी की दुर्दशा का सटीक चित्रण करते हुए प्रस्तुत किया कि मंद-मंद अब सिसक रही मां मोक्षदायिनी, पग-पग में करुण क्रंदन सुनो मां का, क्या रक्त नहीं बहता रग में। रायबरेली से पधारे कवि डा रसिक किशोर सिंह ने व्यग्य रचना में कहा कि सच्चाई जो जीते वे झूठे कहे गए, जमाने की आग तो बुझाते ही रह गए। कवि डा घनश्याम अवस्थी ने अपनी ओजस्वी वाणी से राष्ट्र प्रेम और राष्ट्रीय एकता से ओतप्रोत से गीत सुनाया। जिसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की गई। गीतकार सुनील सौम्य, श्री नारायण तिवारी, दिनेश दीक्षित संघर्षी आदि कवियों ने मंच के माध्यम से अपनी रचनाएं प्रस्तुत किया। संचालन कवि डा रामलाल द्विवेदी ‘प्राणेश’ ने करते हुए कवियो का हौसला बढ़ाया। उन्होंने राष्ट्रभक्ति से भरी हुई एक गीतिका सुनाई। हर शख्स को अपने वतन से प्यार होना चाहिए, दल के दलदल में कमल भारत का खिलना चाहिए को खूब तालियां मिलीं। कवि सम्मेलन में दर्शकों को काव्यरस से सराबोर किया।
प्रभु श्रीराम हैं सत्य सनातन की अविराम यात्रा
चित्रकूट: मप्र खंडवा से पधारे पं. रमेशचन्द्र तिवारी ने कैकेई चरित्र पर व्याख्यान दिए। उन्होंने कहा कि कैकेई के बलिदान, तपस्या, तप अपने ऊपर जो कलंक, अपजश लिया उसके फलस्वरूप मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जन-जन के नायक एवं विश्व नायक बने। अगर कैकेई अपने ऊपर यह अपयश न लेती तो राम जन-जन के नायक नहीं बनते। इसलिए माता कैकेई को धन्य है। कैकेई ने महाराज दशरथ से चार वरदान मांग कर राम को वन भेजा जो जन और विश्व कल्याण का कारण बना।
मुजफ्फपुर बिहार से पधारे ख्यातिलब्ध साहित्यकार डा. संजय पंकज ने राम की विशद व्याख्या करते हुए कहा कि संपूर्ण भारतीयता के उदात्त चरित्रणाम अपने मानवीय फैलाव में वैश्विक हो जाते हैं। चाहे जो भी संदर्भ या प्रसंग हो उसे आप अगर राम से सम्बद्ध करते हैं तो राम उसमे समग्रता में समाहित दिखलाई पड़ेंगें। पुत्र, भाई, पिता, जामाता, मित्र, राजा, वनवासी, योद्धा, पराक्रमी, उदार, करुणा जैसे संदर्भो में जब राम के जीवन का अध्ययन करेंगें तो पता चलेगा कि राम ने अपने हर रूप को अपने व्यवहार और सद्भाव से शिखर पर पहुंचाया है। रामलला की स्थापना के साथ ही संपूर्ण संसार के लिए राम एक अलौकिकता मगर आत्मीयता के महाभाव के रूप में स्थापित हो गए हैं। डा. पंकज ने आगे कहा कि जीवन भर राम ने दुख और संकट झेला मगर कभी उससे ऊबे नहीं। उन्होंने दुख को जितना ही ओढ़ा उतना ही वे मजबूत हुए। वनवासी हुए तो अंतिम पायदान के मनुष्य का जीवन संघर्ष देखा और समझा। हम केवल राम को एक आदर्श के रूप में ही नहीं बल्कि उनको एक व्यावहारिक पूर्ण मनुष्य के रूप में स्वीकारते हैं। उनकी मनुष्यता का विस्तार ही उन्हे ईश्वर बना देता है। राम सत्य सनातन की अविराम यात्रा है।
सीता की जन्मभूमि सीतामढ़ी से आए हुए सेंट्रल बैक आफ इंडिया के अवकाश प्राप्त राजभाषा अधिकारी विमल कुमार परिमल ने राम की यात्रा का वर्णन करते हुए कहा कि मिथिला में आने से पहले राम का जीवन एक चक्रवर्ती राजा के राजकुमार के रूप में था। मगर मिथिला में प्रवेश करने के साथ ही उनके शौर्य और पराक्रम की शुरुआत हो जाती है। तपस्या करने वाले ऋषि-मुनियो की सुरक्षा के लिए उन्होंने राक्षसों के वध को धनुष उठाया तो विदेहराज जनक की नगरी में आते ही उनकी तरुणाई प्रेमिल भाव केे साथ जाग उठी। पुष्प वाटिका प्रसंग में सीता के दर्शन होते हैं और प्रेम का अंकुर फूटता है। उसी प्रेरणा से राम धनुर्भंग करते हैं। वहीं भगवान परशुराम से उनका संवाद होता है। राम के भीतर का पुरुषार्थ मिथिला में जागृत होता है। सीता के रूप में साक्षात शक्ति का राम ने वरण किया। श्री परिमल ने सीता प्राकट्य की लंबी चर्चा करते हुए कहा कि सब कुछ ईश्वरीय प्रेरणा से संपन्न हो रहा था। जहां सीता साक्षात् धरती थी, वहीं राम ब्रह्मांड नायक थे और आज भी दोनो भारतीय समाज के लिए सबसे बड़े आदर्श हैं।
सीतामढ़ी बिहार की शिक्षाविद् डा. आशा कुमारी ने सीता की पीड़ा का उल्लेख करते हुए कहा कि सीता ने राम के जीवन को अपना जीवन मान लिया। पत्नी का धर्म भी तो यही है, क्योंकि वह अर्द्धांगिनी होती है। राम को वनवास मिला तो सीता ने साथ रहना सहर्ष स्वीकारा, क्योंकि भारतीय समाज में पति का सुख दुख पत्नी का भी सुख दुख होता है। राम और सीता दोनो अभिन्न हैं। सखी भाव के भक्त और कवि मोदलता जी ने सीता और राम को केन्द्र में रखकर विवाहोत्सव प्रचलन शुरू किया था। उनके पदो में सीता एक विदुषी, त्यागमूर्ति ओर आदर्श पत्नी के रूप में दिखलाई पड़ंती हैं। पिता के घर से आने के बाद पति के पूरे सम्बन्धों को सीता ने बहुत सहजता से स्वीकार लिया था। सीता तिरहुत की ऐसी संस्कृति है जिसे अवध की संस्कृति के नायक राम संपूर्ण जीवन के लिए वरण करते हैं। डा आशा ने कई कारुणिक प्रसंगों को सुनाया और कहा कि स्वर्ण मृग के कारण से सीता का हरण हुआ तो उन्हे स्वर्ण नगरी लंका में रखा गया। जहां से उनकी मुक्ति हुई। सोने के मोह में सीता फंसी तो संकट में आईं ओर जब मोह भंग हुआ तो सोने की लंका को जलते हुए देखा। यह एक उदाहरण और प्रेरणा है कि चमक, दमक और भौतिक चाहनाआंे से उद्धार नहीं होता है बल्कि इससे मोह मुक्त होने के बाद सादगी में आत्मदर्शन होता है।
भारतीय जीवन चेतना के शिखर पर अवस्थित हैं श्रीराम
चित्रकूट: उत्तराखंड के गदरपुर उधम सिंह नगर से आए शिव कुमार मिश्र ने कहा कि प्रभु श्रीराम जिनके नाम से राष्ट्रीय रामाचण मेले का अभ्युदय हुआ उनका सारा जीवन वृत्त भारतीय जीवन चेतना के शिखर पर अवस्थित है। श्री राम जिस राजसी परिवेश में पैदा हुए, बड़े हुए एवं पढ़े उस परिवेश से होते हुए उन्होंने मानव जीवन एवं शरीर की अवस्थाजन्य मनोचेतनाओं की यात्रा कर शरीर से अशरीरी जीवनी वृत्ति की यात्रा करते हुए पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय एवं वैश्विक मानव चेतना के जिस उच्चतम शिखर पर अवस्थित हुए वह आज के समस्त न कि भारतीयों के लिए बल्कि सारे विश्व के समस्त मानव जाति के लिए आज भी प्रासंगिक एवं प्रेरणाप्रद हैं। मानव जीवन प्रकृति का सर्वोत्तम वरदान है। इससे श्रेष्ठ कुछ नहीं। या देवी सर्व भूतेषु प्रकृति रूपेण संस्थिता। इन प्रकृति की समस्त आंतरिक जीवनी चेतना की यात्रा कर जिस उच्चतम चेतना पर अवस्थित हुए वही मानव जीवन के लक्ष्य प्राप्ति का सर्वोत्तम उदाहरण है। अतः आज जब समस्त सत्ताधीश भोग की दिशा में रत होकर विश्व की भौगोलिक, प्राकृतिक, आदर्शमय, शाश्वत मनोवृत्तियों को जो वैश्विक जीवन के लिए आवश्यक है रौंद रहे हैं वह सर्वथा स्वीकार नहीं है। अतः समस्त भारतीयों को राम के इस उच्चतम आदर्श को स्थापित करने के लिए स्वसंकल्पित हों यहीं रामायण मेले का उद्देश्य है और रहेगा। तभी रामायण मेले की सात्र्थकता भी सिद्ध होगी, क्योंकि राम मात्र दशरथ पुत्र ही नहीं वह आत्मा के प्रतीक हैं ओर आत्मा आनंदमयी स्थिति में अवस्थित है। हम क्षुद्र वृत्तियों से ऊपर उठकर आए और इस रामायण मेला की सार्थकता को सिद्ध करें। अयं निजः परोवेति, गणना लघु चेतशां।
मुम्बई से पधारे वीरेन्द्र प्रसाद शास्त्री ने मानस के अंतर्गत भरत जी के प्रसंग को लेते हुए, तेहि पुर भरत बसत बिनु रागा, चंचरीक जिम चम्पक बागा। मानस के इस चैपाई पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भरत जी नंदीग्राम में उसी तरह रहे जैसे चम्पा के बाग में भौंरा। भौरा कभी भी चम्पा के बाग में जाकर उसका पराग ग्रहण नहीं करता। भौरे के बारे में शास्त्रों में प्रमाण मिलते हैं कि चम्पा तुझमे तीन गुण, रूप, रंग अरु वास, अवगुण तुझमे एक है भ्रमर न आवत पास, चम्पक वरुणी राधिका भ्रमर कृष्ण को दास, जननी आपन जानके भ्रमर न आवत पास। जिस तरह से भ्रमर का संबंध राधिका जी से पुत्र और मां का है उसी तरह अयोध्या की सारी सम्पदा लक्ष्मी स्वरूपा माता जानकी की है। इसी वजह से भरत जी ने उस सम्पदा का उपभोग नहीं किया। यहां तक कि उनकी पत्नी मांडवी गौ को जौ खिलाकर उससे जो जौ गोबर के साथ निकलता था उसको साफ कर भरत जी के लिए भोजन का सहारा था और उन्होंने नंदीग्राम में जमीन के नीचे गुफा बनाकर कुश के आसन पर ही शयन करते थे। राज्य सिंहासन त्याग की भावना से कुश आसन से ही चलाया जा सकता है शोषण की भावना से नहीं। इस प्रसंग से राजनीति में भाग लेने वाले जो भी लोग हैं वे त्याग की भावना से ही देश की सेवा करें न कि शोषण की भावना से। जिससे देश समृद्धि और उन्नति के तख्ते पर पहुंचाया जा सकता है।
सुल्तानपुर से पधारे साहित्य भूषण डा सुशील कुमार पांडेय साहित्येन्दु ने डा राममनोहर लोहिया के घोषणा पत्र की विस्तार से समीक्षा करते हुए कहा कि रामायण मेला के माध्यम से रसानुभूति, आनन्द, दृष्टिबोध एवं भारतीयता को प्रमुखता दी। रामायण नौ रसों का अक्षय भंडार है। आनंद का अपार स्रोत है। दृष्टिबोध के माध्यम से सामाजिक जीवन, समरसता एवं समता का प्राथमिक सोपान है। उन्होंने रामकथा को भारतीय संस्कृति का जीवंत दस्तावेज बताया। भारत को सर्वविधि समर्थ बनाने के लिए समाज में रामकथा के प्रचार प्रसार की आवश्यकता पर बल दिया। आज शांत मानवता को यदि शांति मिल सकती है तो उसका प्रथम आधार पर रामकथा की मान्यताओ को जीवन में उतारें। डा साहित्येन्दु ने इसी संदर्भ में दक्षिण भारत तथा दक्षिण पूर्व एशिया में फैले रामकथाओं की सारगर्भित मीमांसा की। उन्होंने कालिदास रचित रघुवंश के अनेक प्रकरणों की तुलना रामचरित मानस के प्रसंगों से की।
वृंदावन से पधारे राष्ट्रीय प्रवक्ता आचार्य कृष्णानन्द महाराज ने रामायण संगोष्ठी के अंतर्गत चित्रकूट की महिमा की व्याख्या की। उन्होंने कहा कि प्रभु श्रीराम ने छोटे से छोटे प्राणियों के प्रति प्रेम दर्शाया। प्रेम की पराकाष्ठा को श्रीराम ने बढ़ाया। उसी प्रेम की श्रंखला में हम सभी इस रामायण संगोष्ठी में श्रीराम की कृपा को प्राप्त करते हुए इस श्रंखला को आगे बढ़ाने में विशेष जोर दिया गया। कुछ ऐसे शब्दों का भी प्रयोग किया जो दिलो दिमाग को छू जाए। प्रेम की पिपास देखि-देखि निज प्रेमियों की, प्रेम का समुद्र सीमा तोड़ के बनाया है, प्रेमी रसीलों हित भाव भई रामायण कामना की पूर्ति हेतु कल्पतरु लगाया है। वेद तत्व जटित चारु चादर बिछाई जहां भांति प्रतिभांति से ग्रंथ को सजाया है। भारत का भूषण तिलक तीनो लोको का, हुलसी के तुलसी ने रामचरित गाया है। कृष्णानन्द विनय करें गावे सब प्रेम से प्रेमियों का जीवन धन रामचरित मानस है।
मानस मर्मज्ञ लक्ष्मी प्रसाद शर्मा ने चित्रकूट महिमा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भव भुजंग तुलसी नकुल डसत ज्ञान हर लेत, चित्रकूट वह जड़ी है चितवत होत सचेत। उन्होंने बताया कि चित्रकूट की लीला पवित्र चित वालों की समझ में आती है। कामद भे गिर राम प्रसादा अवलोकत अपहरत विषादा। देखने मात्र से ही सारे विषाद समाप्त हो जाते हैं। बताया कि राम पद पर यदि अनुरोग हो तो तुलसी जो राम पद चाहिए प्रेम, सेइ गिरि तरि सिर बांध नेम। उन्होंने बताया कि चित्रकूट परम पवित्र स्थली है। प्रमाण देते हुए बताया कि कलि हरन करन कल्याण कूट, सब सोच विमोचन चित्रकूट। गोष्ठी का संचालन डा. चन्द्रिका प्रसाद दीक्षित ललित ने किया।
सांस्कृतिक कार्यक्रमों में कलाकारों दर्शकों को किया मंत्रमुग्ध
चित्रकूट: राष्ट्रीय रामायण मेला महोत्सव के तीसरे दिन सांस्कृतिक कार्यक्रमों में ख्यातिलब्ध कलाकारों ने समां बांध दिया। इसी क्रम में भजन गायक रामाधीन आर्या मऊरानीपुर, दिनेश सोनी झांसी, लखनलाल यादव महोबा, रघुवीर यादव झांसी ने भजन और भाव नृत्य, राई नृत्य से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। संस्कृति कला संगम यश चैहान नई दिल्ली के नेतृत्व में रामायण नृत्य नाटिका, लाइट एण्ड साउण्ड के माध्यम से संपूर्ण रामायण की प्रस्तुतियों ने लोगों को भावविभोर कर दिया। कार्यक्रम से वातावरण राममय हो गया। दर्शकों ने भी जमकर तालियां बजाई। देर रात तक रासलीला कलाकारों की ने प्रस्तुत कर दर्शकों को बांधे रखा। संचालन महामंत्री करुणा शंकर द्विवेदी ने किया।