1951 जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951  जानें किन नियमों के तहत कोई सांसद / विधायक कैसे हो जाता है अयोग्य  

 1951 जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951  जानें किन नियमों के तहत कोई सांसद / विधायक कैसे हो जाता है अयोग्य  

(केरल की वायनाड लोकसभा सीट के सांसद है राहुल गांधी)
 23 मार्च, 2023 को  सूरत की सेशन कोर्ट ने “मोदी उपनाम” को लेकर राहुल गांधी के खिलाफ चल रहे मानहानि के मामले में दो साल की सजा सुनाई है।
ये है मामला - 
राहुल गांधी को जिस बयान के लिए दो साल की सज़ा हुई है वो उन्होंने साल 2019 में लोकसभा चुनावों के दौरान कर्नाटक के कोलार में दिया था.
उन्होंने कथित तौर पर ये कहा था, "इन सभी चोरों का उपनाम (सरनेम) मोदी क्यों है?"
राहुल गांधी के इस बयान के ख़िलाफ़ बीजेपी नेता पूर्णेश मोदी ने मानहानि का मुक़दमा दर्ज कराया था. पूर्णेश मोदी सूरत पश्चिमी (गुजरात) से बीजेपी विधायक हैं और पेशे से वकील हैं.
पूर्णेश मोदी का आरोप था कि राहुल गांधी की इस टिप्पणी से पूरे मोदी समुदाय की मानहानि की है. 
किसके पास है सांसद / विधायक की सदस्यता खत्म करने का अधिकार -
एक सांसद / विधायक की सदस्यता खत्म करने का अधिकार सदन के पास है। ऐसे में राहुल गांधी मामले में लोकसभा सचिवालय ने अधिसूचना जारी करते हुए राहुल की सदस्यता खत्म कर दी। सचिवालय ने अपनी अधिसूचना में कहा कि 23 मार्च, 2023 को राहुल गांधी को सजा सुनाए जाने के बाद उन्हें सांसद पद के लिए अयोग्य करार दिया जाता है। सचिवालय ने यह कदम भारतीय संविधान के अनुच्छेद 102(1) और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत किया है।  
कैसे बचती है सदस्यता -
सांसद या विधायक उक्त मामलों में भी अपनी सदस्यता को बचा सकते हैं। यह तब हो सकता है, जब सजा किसी निचली अदालत से मिली है, तब मामले को उच्च या सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। यदि हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट की ओर से सजा पर रोक लगती है, तब सदस्यता को बचाया जा सकता है। राहुल गांधी वाले मामले में भी कुछ ऐसी ही है। क्योंकि, उन्हें निचली अदालत से सजा सुनाई गई है। यदि वह इसे ऊपरी अदालत में ले जाकर चुनौती देते हैं और उनकी सजा पर रोक लग जाती है, तो उनकी सदस्यता नहीं जाएगी। 
जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951: चुनावों का वास्तविक आयोजन कराने संबंधी सभी मामले जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 के प्रावधानों के तहत आते हैं। इस कानून और नियमों में सभी चरणों में चुनाव आयोजित कराने, चुनाव कराने की अधिसूचना के मुद्दे, नामांकन पत्र दाखिल करने, नामांकन पत्रों की जाँच, उम्मीदवार द्वारा नाम वापस लेना, चुनाव कराना, मतगणना और घोषित परिणाम के आधार पर सदनों के गठन के लिये विस्तृत प्रावधान किए गए हैं।
निलंबन को लेकर क्या हैं नियम
सांसद की सदस्यता के निलंबन को लेकर जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के तहत नियम हैं। इसके तहत धारा (1) और (2) में प्रावधान है, जिसके मुताबिक, कोई सांसद या विधायक दुष्कर्म, हत्या, भाषा या फिर धर्म के आधार पर सामाज में शत्रुता पैदा करता है या फिर संविधान को अपमानित करने के उद्देश्य से किसी भी आपराधिक षड्यंत्र में शामिल होता है या फिर किसी आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होता है, ऐसी स्थिति में उस सांसद या विधायक की सदस्यता को रद्द कर दिया जाएगा। इसके साथ ही धारा(3) के मुताबिक, यदि किसी सांसद या विधायक को किसी आपराधिक मामले में दोषी मानते हुए दो वर्ष से अधिक की सजा हो, तब भी उसकी सदस्या को रद्द किया जा सकता है। साथ ही अगले छह वर्षों तक चुनाव लड़ने पर भी प्रतिबंध होता है। 

क्या है मानहानि ?
भारत में मानहानि एक सिविल दोष (Civil Wrong) और आपराधिक कृत्य दोनों हो सकते हैं और इसका अंतर इनके द्वारा प्राप्त किये जाने वाले उद्देश्यों में अंतर्निहित  होता है। 
सिविल दोष के अंतर्गत - मुआवज़े के माध्यम से क्षतिपूर्ति की जाती है और कृत्य में सुधार का प्रयास किया जाता है और वहीं मानहानि के आपराधिक मामलों में किसी गलत कृत्य के लिये अपराधी को दंडित किया जाता है।
मानहानि से संबंधित कानून क्या है ?
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 500 में मानहानि के लिए साधारण कारावास का प्रावधान है, जिसकी अवधि "दो साल सजा या जुर्माना या दोनों।
जो कोई भी बोले गए या पढ़े जाने के आशय से शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्य द्वारा यह जानते हुए कि ऐसे लांछन से उस व्यक्ति की ख्याति को क्षति पहुँच सकती है फिर भी ऐसे कृत्य करता है, तो परिणामस्वरूप अपवादित दशाओं के सिवाय उसके द्वारा उस व्यक्ति की मानहानि करना कहलाए
संसद सदस्य पद की अयोग्यता का प्रश्न -
अयोग्यता से संबंधित प्रावधानों का वर्णन तीन अलग जगहों पर की गई है  
A. एक MP/MLA की अयोग्यता तीन स्थितियों के आधार पर  निर्धारित होती हैं; 
1.लाभ का पद धारण करना 2.दिमागी रूप से अस्वस्थ होना या दिवालिया होना 3.वैध नागरिकता का न होना 
B. अयोग्यता से संबंधित कुछ प्रावधान संविधान की दसवीं अनुसूची में  वर्णित हैं, 
इसमें दल-बदल के आधार पर सदस्यों की अयोग्यता का प्रावधान शामिल है।
C. जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 दोषी व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से रोकती है।
परन्तु ऐसे व्यक्ति जिन पर केवल मुक़दमा चल रहा है, वे चुनाव लड़ने के लिये स्वतंत्र हैं, चाहे उन पर लगा आरोप कितना भी गंभीर हो।
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8(1) और (2) के प्रावधानों के अनुसार यदि कोई सदस्य (सांसद अथवा विधायक) अस्पृश्यता, हत्या, बलात्कार, विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम के उल्लंघन, धर्म, भाषा या क्षेत्र के आधार पर शत्रुता पैदा करना, भारतीय संविधान का अपमान करना, प्रतिबंधित वस्तुओं का आयात या निर्यात करना, आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होना जैसे अपराधों में लिप्त होता है, तो उसे इस धारा के अंतर्गत अयोग्य माना जाएगा तथा 6 वर्ष की अवधि के लिये अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा।
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8(3) के प्रावधानों के अनुसार यदि कोई सदस्य उपर्युक्त अपराधों के अलावा किसी भी अन्य अपराध के लिये दोषी साबित किया जाता है तथा उसे न्यूनतम दो वर्ष से अधिक के कारावास की सज़ा सुनाई जाती है तो उसे दोषी ठहराए जाने की तिथि से आयोग्य माना जाएगा तथा ऐसे व्यक्ति को सज़ा समाप्त होने की तिथि के बाद 6 वर्ष तक चुनाव लड़ने के लिये अयोग्य माना जाएगा।
यह कानून कैसे बदल गया है?
सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में लिली थॉमस बनाम भारत संघ के मामले में निर्णय दिया था कि कोई भी संसद सदस्य, विधान सभा का सदस्य या विधान परिषद का सदस्य जिसे किसी अपराध का दोषी ठहराया जाता है और न्यूनतम दो साल के कारावास की सजा दी जाती है, तो वह तत्काल प्रभाव से सदन की सदस्यता खो देता है।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश आते ही कई विधायकों और सांसदों को अपनी सदस्यता रद्द होने का डर सताने लगा। 
कोर्ट के फैसले के खिलाफ अध्यादेश लाई थी तत्कालीन UPA सरकार -
सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए तत्कालीन UPA सरकार सितंबर, 2013 में एक अध्यादेश लेकर आई थी। इस अध्यादेश में लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(4) को बरकरार रखने का प्रावधान किया गया था।
राहुल ने अध्यादेश को बताया था बकवास -
23 सितंबर, 2013 को सरकार ने अध्यादेश की खूबियां बताने के लिए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की थी। इसमें मंच पर अजय माकन बैठे हुए थे।
तभी राहुल गांधी आए और अध्यादेश को बकवास बताते हुए कहा था, "मेरा मानना है कि सभी राजनीतिक पार्टियों को ऐसे समझौते बंद करने चाहिए। मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि इस अध्यादेश के संबंध में हमारी सरकार ने जो किया है, वो गलत है।"
...और राहुल ने फाड़ दी अध्यादेश की प्रति
इसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल ने अध्यादेश की प्रति को फाड़ दिया था।
उस वक्त राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी के उपाध्यक्ष थे। विपक्ष के साथ-साथ अपनी ही पार्टी से विरोध के बाद सरकार ने अध्यादेश को वापस ले लिया था