वक्त बदला समाज बदला और बदल गए बचपन के खेल

वक्त बदला समाज बदला और बदल गए बचपन के खेल तकनीक ने जहां काम को आसान बनाया है। वहीं कुछ मुश्किलें भी पैदा की हैं।

वक्त बदला समाज बदला और बदल गए बचपन के खेल

वक्त बदला समाज बदला और बदल गए बचपन के खेल तकनीक ने जहां काम को आसान बनाया है। वहीं कुछ मुश्किलें भी पैदा की हैं। खासकर बचपन को सबसे ज्यादा मुतासिर क्या है? एक वक्त था जब बच्चे खेल के मैदानों में घंटों अपने दोस्तों के साथ गिल्ली डंडा, कंचा ,कबड्डी, छुपन- छुपाई, चोर सिपाही, सांप सीढ़ी और न जाने क्या-क्या खेलते थे खेल में इतना मस्त रहते थे। कि खाने-पीने तक की फुर्सत नहीं रहती थी। पर अब ऐसा नहीं है, आज के बच्चे मोबाइल इंटरनेट लैपटॉप व कंप्यूटर में सिमट कर रह गए है। उनकी दुनिया अब एक कमरे में सिमट गई है। वे अकेलेपन का शिकार हो चले हैं।  दोस्तों अगर खेल की गतिविधियों को परिभाषित करना पड़े तो उसे एक सूत्र के रूप में आ जाए तो मेरी नजर में यह सूत्र कुछ इस तरह से होगा कि खेलना-खिलाना-खिलखिलाना खुलना, खिल जाना.... इस सूत्र का जादुई लफ्ज़ अगर कोई है, तो वह निर्विवाद रूप से खेल ही है। दोस्तों कहा जाता है, कि वक्त भी वक्त-वक्त पर अपने आप को दोबारा परिभाषित करता है।

               

आजादी के बाद से हमारी सोच में चेंज आया और हम.....                       

पढ़ोगे-लिखोगे बनोगे नवाब,

खेलोगे-कूदोगे बनोगे खराब।।                                

जैसी तंग सोच से संक्रमित हो गए हैं। आजादी के बाद देश की वह सामयिक मांग होगी। मैं इस विवाद की गहराई में जाना भी नहीं चाहती। लेकिन इतना जरूर है, के हम मुख्यधारा से बहुत पीछे चले गए थे।                                 

खेल तो किसी भी देश के उज्जवल भविष्य की नींव है। कितनी सहज बात है, कि बच्चे तो खेलते ही हैं वह तो खेलेंगे वैसे ही जैसे की नदियां बहती हैं, वह तो बहेंगी ही, हम यदि नदियों के कल कल बहते पानी को दिशा देते हैं, तो बंजर जमीन हरित भूमि में तब्दील हो जाती है, बिजली बनने लगती है। प्यास बुझने लगती है, तो इसी तरह अगर हम बच्चों की खेलने की स्वाभाविक प्रकृति को अनुशासित दिशा देते हैं, तो देश को हॉकी के जादूगर ध्यानचंद, क्रिकेट के सचिन तेंदुलकर मिल जाते हैं। देश को ढेरों धोनी, कोहली, सानिया मिर्जा, मैरी कॉम, पीटी उषा मिले, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जीत कर भारत का नाम ऊंचा किया है।

मैं अपनी बात 4 पंक्तियों के माध्यम से खत्म करती हूं   

कि, हमारी चाहत, अगर हॉकी और फुटबॉल हो जाए,                                              

हमारा प्यार, क्रिकेट का बल्ला वॉलीबॉल हो जाए।।                                           

यदि टेनिस, कुश्ती, कबड्डी को हमारी तवज्जो मिले,                  

तो बच्चे मिसाल बन जाए, और देश निहाल हो जाए।।

लेखन श्रेय

निदा मलिक