नैतिक शिक्षा की आवश्यकता।

नैतिक शिक्षा की आवश्यकता।

हिलाल सलमान

खरखौदा/अतराड़ा।

कहते है यदि धन चला गया तो कुछ नही गया फिर कमाया जा सकता है, स्वास्थ चला गया तो समझो कुछ चला गया किन्तु यदि हमारे जीवन से चरित्र चला गया तो सब कुछ चला गया जिसकी पूर्ति होना नामुमकिन है। चरित्र निर्माण के लिए नैतिक शिक्षा की बेहद आवश्यकता है। नैतिकता मनुष्य जीवन का अभिन्न अंग है। यही हमें पशुत्व से अलग करती है। आज के माहौल में यदि हम गहराई से देखें तो चारों तरफ नैतिकता का अभाव ही दिखाई पड़ता है। और यह हमारा दुर्भाग्य ही है कि हमारे जीवन में चरित्र का इतना महत्व होते हुए भी चरित्र निर्माण की जननी नैतिक शिक्षा की इतनी उपेक्षा की जा रही है। विद्यालयों में अनेक विषयों में शिक्षा दी जाती है किन्तु नैतिक शिक्षा प्रदान करने की कोई समुचित व्यवस्था नहीं है। नैतिक शिक्षा को पाठ्यक्रम में शामिल तो किया गया है किन्तु इस हेतु ना तो कोई आचार्य नियुक्त है और ना ही समय सारिणी में कोई कालांश निर्धारित है। इन सब के बावजूद नैतिक शिक्षा की परीक्षा सम्पादित कराने की व्यवस्था की गई है जो केवल एक खानापूर्ति मात्र है। शिक्षा प्राप्त करके, परीक्षा पास करके हम किसी निश्चित उद्देश्य को प्राप्त कर सकते है, निर्धारित लक्ष्य पर पहुँच सकते हैं किन्तु लक्ष्य प्राप्त करने के उपरान्त अपने लक्ष्य पर टिके रहें इसके लिए नैतिक शिक्षा की अति आवश्यकता है। इसके अभाव में प्राप्त लक्ष्य पर टिके रहना प्रायः असम्भव है। मेरा तो निश्चित मत है कि नई पीढी को यदि समुचित नैतिक शिक्षा नहीं दी गई तो उनका चरित्र निर्माण नही हो सकता और देश का भविष्य गर्त में चला जायेगा । यदि हम नैतिक शिक्षा नहीं दे रहें है तो हम बहुत बड़ा अपराध कर रहे है और बच्चों को नैतिकता सहनशीलता विनम्रता आदि सदगुणों से विमुख रख उनके प्रति अन्याय कर रहे है। चरित्र का निर्माण केवल एक व्यक्ति के लिए आवश्यक नही है बल्कि सम्पूर्ण समाज, जाति, देश ही नही वरन् पूरी मानवता के लिए आवश्यक है। बच्चों में सत्य, सदाचार, निष्ठा, परोपकार जैसे गुणों का प्रादुर्भाव केवल और केवल नैतिक शिक्षा से ही सम्भव है। बच्चों के मन मष्तिष्क में हम जैसे गुणों का बीजारोपण करेंगे वे ही उनके जीवन मे फूलेंगे, फलेंगे । हमारी नई पीढी ही हमारे देश का भविष्य है उनको सुयोग्य बनाना हमारी नैतिक तथा सामाजिक जिम्मेदारी है । यदि हम थोड़ा गहनता से देखें तो जीवन में अनैतिकता का बोल-बाला दिखाई पड़ता है और इस दोष से बच्चों को बचाने के लिए नैतिक शिक्षा की अनिवार्य व्यवस्था करनी पड़ेगी तभी हमारा देश, समाज नैतिकता के साथ प्रगति के पथ पर बढेगा । मुझे यह बात कहने में संकोच नहीं है कि आज नैतिक शिक्षा मात्र पुस्तकीय ज्ञान भर है जबकि इसकी उपयोगिता हमारे व्यवहार, हमारे स्वभाव में होनी चाहिए। नैतिक शिक्षा द्वारा हमें उत्तम संस्कार प्राप्त होते हैं और यह कटु सत्य है कि संस्कारी तथा चरित्रवान व्यक्ति ही किसी राष्ट्र का सद निर्माण कर सकते हैं। भारतवर्ष अतीत काल में इसलिए महान रहा क्योकि यहाँ अनेको महान व्यक्तियों, महात्माओं, सन्तों ने जन्म लेकर अपने महान चरित्र के द्वारा मानव जाति का कल्याण किया । अन्त में कहना चाहूंगा कि हमारी भावी पीढी को नैतिक शिक्षा के माध्यम से चरित्र की महत्ता, सदगुणों की उपयोगिता आदि का व्यवहारिक ज्ञान विद्यालयों में अवश्य कराया जाये तथा इसकी उपयोगिता एवं आवश्यकता को किसी भी दृष्टि से कम नही ऑका जाना चाहिए तभी हमारा देश, हमारा समाज महानता के शिखर पर पहुंच सकेगा। विद्यालयों के प्रधानाचार्य एवं शिक्षक गण इस दिशा में अपना महत्व पूर्ण योगदान देकर बच्चों के चरित्र निर्माण में क्रान्तिकारी बदलाव ला सकते है। लेखक:- जयपाल त्यागी, किसान मजदूर इण्टर कालिज, अतराड़ा(मेरठ)