शहीद चंद्रभान स्मारक समिति प्रकरण में ठेकेदार के आरोपों को न्यायालय ने खारिज किया।
मवाना इसरार अंसारी। बृहस्पतिवार को शहीद चन्द्रभान स्मारक समिति के पदाधिकारियों द्वारा एक प्रेसवार्ता का आयोजन कार्यालय पर किया गया। जिसमें पूर्व ठेकेदार मो0 साबिर द्वारा संस्था पर लगाये गये आरोपों को मान्य न्यायालय जेएम मवाना द्वारा खारिज करने पर हर्ष प्रकट किया गया और साबिर के खिलाफ सक्षम न्यायालय में विधिक कानूनी कार्यवाही करने का निर्णय लिया गया। इस संबंध में जानकारी देते हुए संस्था के अध्यक्ष चौधरी अजय सिंह, उपाध्यक्ष युसूफ कुरैशी, सचिव गजेन्द्र पाल सिंह एडवोकेट, कोषाध्यक्ष अधिवक्ता डा0 असलम, कार्यकारी अध्यक्ष राजेन्द्र सिंह चौहान अटौरा, अनिल त्यागी हस्तिनापुर, कानूनी सलाहाकार महताब एडवोकेट, अतहर अहमद सिददकी, कृष्णपाल एडवोकेट, दिव्य कुमार धनगस एडवोकेट, विरेन्द्र कुमार भडाना एडवोकेट, संदीप शर्मा ने संयुक्त रूप से बताया कि मो0 साबिर द्वारा संस्था द्वारा संस्था के पदाधिकारियों के खिलाफ एक मुकदमा मान्य न्यायालय जेएम मवाना में धारा 156 (3) के तहत बलवा, धोखाधडी, छल, कपट आदि की धाराओं में योजित किया गया था। जिसमें मान्य न्यायालय ने साबिर के मुकदमे को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा विधि व्यवस्थास ह्रदय रंजन वर्मा बनाम बिहार राज्य में प्रतिपादित किया गया है कि वचन के उल्लघंटन, का हर एक केस आईपीसी के अर्न्तगत छल नहीं है केवल संविदा का उल्लघंटन छल के लिए आपराधिक अभियोजन को जन्म नहीं दे सकता है जब तक कि कपटपूर्वक या बेईमानी का आशय लेनदेन की शुरूआत से ही न दिखाया गया हो, मतलब वह समय जब अपराध कारित होना कहा गया है। इसलिए सिर्फ आशय है जो कि वचन का सारा है। किसी व्यक्ति को छल का दोषी ठहराने के लिए यह आवश्यक है कि वचन देते समय आशय कपटपूर्वक या बेइ्रमानी का था। बाद में वचन निभाने में उसकी विफलता से ही यह नही माना जा सकता कि उसका आशय शुरूबात से ही आपराधिक था। इसके अलावा मान्य न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट की विधि व्यवस्था के तहत सतीश चन्द्र रतनलाल शाह बनाम गुजरात राज्य में प्रतिपादित किया कि कानून स्पष्ट रूप से साधारण भुगतान और धन या संपत्ति को सौपने के बीच के अंतर को पहचानता है, केवल करार, वचन, या संविदा का उल्लघंटन, वास्तव में धारा 405 आईपीसी में निहित आपराधिक न्यायभंग के अपराध का गठन नहीं करता है जब तक कि सौपने का स्पष्ट मामला ना हो। अतः मान्नीय उच्चतम न्यायालय की विधि व्यवस्थाओं के अनुरूप साधारण लेनेदेन के अर्न्तत वचन या संविदा सा संविदा का उल्लघंन, न तो छल के अपराध का गठन करता है और न ही अपराधिक न्यास भंग के अपराध का गठन करता है। मान्य न्यायालय ने बलवे की घटना के संबंध में कहा कि गाली-गलौच, मारपीट, दुबारा पैसे मांगने के संबंध में न तो कोई मेडिकल दस्तावेज पत्रावली पर उपलब्ध है ओर ना ही उक्त घटना का कोई चक्षुर्दर्शी साक्ष्य है। न्यायालय ने साबिर के उक्त प्रार्थाना पत्र को खारिज कर दिया। इस मौके पर संस्था के समस्त पदाधिकारी मौजूद रहे।