देश का किसान, देश का सम्मान
कृषि भारत का भविष्य है, क्योंकि देश का विकास मनुष्य करता है और मनुष्य को काम के लिए खाना चाहिए। जो कृषि की वजह से ही मिलता है, कृषि किसान की रोजी-रोटी नहीं है, बल्कि खेत में काम करने वाले करोड़ों मजदूरों का रोजगार है। जिंदगी की सबसे पहली जरूरत खाना है। जो कृषि करने से मिलता है। अगर कृषि नहीं होगी तो मानव को भोजन कैसे मिलेगा?
आज के समय में वैसे तो सभी लोग अपने अपने काम में लगे हुए अपने कर्तव्य का पालन कर रहे हैं। लेकिन वह कहीं ना कहीं कृषि पर भी निर्भर है। आज के टाइम में तो वैसे भी मशीनों से कृषि होती है। कृषि करने के लिए हमें कच्चे माल से लेकर तैयार उत्पाद तक मशीनों के ही जरूरत होती है। कृषि करना कोई आसान काम नहीं है, बहुत वर्षों पहले कि अगर हम बात करें, तो कृषि करने के लिए कोई मशीन नहीं थी। कृषि करने के लिए बैलों द्वारा हल से कठोर जमीन को पहले जोता जाता था। फिर बीज बोया जाता था, उसके बाद किसान फसल को अच्छी तरह से कुओं के द्वारा सींचता और गोबर का खाद्य डालता था। जिससे पैदावार अच्छी होती थी।उसके बाद किसान देश की अन्न की जरूरत को पूरा करता था। लेकिन आज के समय में मशीनों का उपयोग करके अन्य कीटनाशक खाद्य का उपयोग कर उनकी जरूरत को पूरा करता है। कृषि एक बहुत ही आम शब्द है, जिसका इस्तेमाल तकरीबन सभी लोग करते हैं, तो सबसे पहली बात जो हमारे दिमाग में आती है, कृषि कुछ ऐसी होनी चाहिए जो खेती और किसानों से जुड़ी हो लेकिन यह सोच कृषि के पहलुओं को सीमित करती है। कृषि का अर्थ केवल फसल उगाने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि इसमें कहीं ज्यादा अर्थ है, भारत में कृषि क्षेत्र में वन, मछली पालन, पशु पालन, दुग्ध उत्पादन यह सभी शामिल है। कृषि का इतिहास बहुत पुराना है। कृषि के लिए मनुष्य पशु पालन पर निर्भर है, जिसमें गाय बैल पाले जाते हैं। हालांकि आज आधुनिक यंत्रों की खेती की जाने लगी है। मगर आज भी ज्यादातर किसानों की खेती पशुओं के जरिए ही पूरी होती है।
कृषि भारत का भविष्य है, क्योंकि देश का विकास मनुष्य करता है और मनुष्य को काम के लिए खाना चाहिए। जो कृषि की वजह से ही मिलता है, कृषि किसान की रोजी-रोटी नहीं है, बल्कि खेत में काम करने वाले करोड़ों मजदूरों का रोजगार है। जिंदगी की सबसे पहली जरूरत खाना है। जो कृषि करने से मिलता है। अगर कृषि नहीं होगी तो मानव को भोजन कैसे मिलेगा?
आज पूरी दुनिया कृषि पर आश्रित है। भारत पहले कृषि के क्षेत्र में पिछड़ा हुआ था, मगर हरित क्रांति से भारत कृषि में आत्मनिर्भर बन गया है। इसलिए भारत कृषि प्रधान देश कहलाता है। भारत में कृषि से होने वाली पैदावार की वजह से आज भारत अपने साथ-साथ दूसरे देशों का भी पेट भरता है।
पहले अकाल की वजह से लोग भुखमरी का शिकार हो जाते थे मगर आज सभी को पेट भरने के लिए सस्ते दामों पर और समय से अनाज मिल जाता है।
हमारे देश भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लिखा है, कि सब कुछ इंतजार कर सकता है, लेकिन कृषि इंतजार नहीं कर सकती। यह चौंकाने वाली बात नहीं है, कि भारतीय सभ्यता में कृषक और कृषि गतिविधियों को पवित्र दर्जा दिया गया है। कृषि न केवल भोजन और कच्चा माल प्रदान करती है, बल्कि जनसंख्या के एक बड़े हिस्से को रोजगार के अवसर भी प्रदान करती है।
" नहीं हुआ है अभी सवेरा,
पूरब की लाली पहचान,
चिड़ियों के उठने से पहले,
खाट छोड़ उठ गया किसान.....,‚
लेकिन अगर कृषि करने वाले व्यक्ति की बात करें तो वह किसान हैं।
तन के कपड़े भी फट जाते हैं ,तब कहीं एक फसल लहराती है । और लोग कहते हैं,किसान के जिस्म से पसीने की बदबू आती है।......
लेकिन अगर उसकी मेहनत को देखें, तो उसे भारत का मसीहा कहा जाना बिलकुल सही है। क्योंकि हम जो भी प्रोडक्ट उपयोग में लाते हैं प्रकृति से मिलता है, लेकिन उसे उपजाता किसान हैं। वह प्रातः काल से लेकर देर रात तक परिश्रम करता है। चाहे कड़कती ठंड हो, चिलचिलाती धूप, या आंधी–तूफान, वह अपने काम में लगा रहता है।
भारत में 70% जनता गांवों में निवास करती है। एवं जिसका व्यवसाय कृषि है। इसलिए गांधी जी भारत के गांवों को भारत की आत्मा और भारतीय संस्कृति को कृषक संस्कृति कहा करते थे।
तो यह कहने की जरूरत नहीं कि कृषि अपने आप में एक बहुत ही महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जो कि प्रमुख क्षेत्र के अलावा अन्य उद्योगों के विकास को भी प्रोत्साहित करता है।
कृषि वास्तव में दुनिया भर में किसी भी राष्ट्र या राज्य की रीड की हड्डी है।...
लेखन श्रेय
प्रियांशी