महाकुंभ में विदेशी भी हुए सनातन संस्कृति के रंग में रंगे

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प्रयागराज। संगम तट पर बसे महाकुंभ के तंबुओं की नगरी इस समय पूरी दुनिया के लोगों को सनातन संस्कृति से जोड़ने का अद्भुत केंद्र बन चुकी है। श्रीपंच दशनाम आवाहन अखाड़े के नागा साधुओं के बीच विदेशी श्रद्धालुओं और शोधकर्ताओं की उपस्थिति यहां का खास आकर्षण बन गई है।
थाईलैंड, रूस, जर्मनी, और जापान जैसे देशों से आए युवा महाकुंभ की परंपराओं और सनातन संस्कृति को नजदीक से समझने के लिए आवाहन नगर में घूमते नजर आ रहे हैं। थाईलैंड के चूललोंगकोर्न विश्वविद्यालय के शोध छात्र बवासा ने यहां आकर संन्यास ग्रहण कर लिया है। अब वह महेशानंद के नाम से जाने जा रहे हैं।
विदेशी युवाओं पर सनातन का असर
बुधवार को बवासा को मृगछाला वस्त्र और वैजयंती माला धारण कर संन्यासी वेश में घूमते देखा गया। उन्हें देखकर श्रद्धालु उनसे बातचीत करने और उनकी साधना को समझने में रुचि दिखा रहे थे। बवासा ने बताया कि बैंकॉक में उनके शोध कार्य के दौरान महाकुंभ के बारे में जानकारी मिली, जिसके बाद उन्होंने यहां आने का निश्चय किया। वह आवाहन अखाड़े में महंत कैलाश पुरी के शिविर में ठहरे हुए हैं।
रूस, जापान और जर्मनी के लोग भी हुए प्रभावित
रूस की राजधानी मॉस्को से आईं वोल्गा ने यहां भगवा धारण कर लिया है और स्वामी आत्मानंद पुरी से दीक्षा प्राप्त की है। वह पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के शिविर में साधुओं के बीच रहकर आध्यात्मिक अनुभवों को आत्मसात कर रही हैं। इसी तरह जापान की कुमिको और जर्मनी के पीटर मार्ट भी यहां की परंपराओं और जीवनशैली को समझने के लिए संन्यासी जीवनशैली अपना चुके हैं।
सनातन संस्कृति की वैश्विक पहचान
महाकुंभ में इन विदेशी श्रद्धालुओं की भागीदारी यह साबित करती है कि सनातन धर्म की विविधता और इसकी गहराई न केवल भारतीयों को, बल्कि दुनिया भर के लोगों को भी आकर्षित कर रही है। सात समंदर पार से आए ये लोग महाकुंभ के कल्पवास, जप, तप और ध्यान की परंपराओं का पालन कर रहे हैं।
महाकुंभ केवल भारत का धार्मिक आयोजन नहीं रह गया है, बल्कि यह दुनिया भर के लोगों को जोड़ने का एक सेतु बन गया है। सनातन धर्म की सार्वभौमिकता और इसका जीवन-दर्शन वैश्विक मंच पर भारत की सांस्कृतिक पहचान को और भी मजबूत बना रहा है।
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