बड़ागांव में ब्रह्मचारिणी दीदी ने ली जैनेश्वरी दीक्षा,ज्ञेय सागर महाराज के सानिध्य में हुआ भव्य समारोह
संवाददाता शशि धामा
खेकड़ा।बड़ागांव के पार्श्वनाथ अतिश्य क्षेत्र प्राचीन दिगम्बर जैन मंदिर में सोमवार को तीन ब्रह्मचारिणी दीदी ने जैनेश्वरी दीक्षा ली। उन्हें ज्ञेय सागर महाराज ने दीक्षा दिलाई तथा धर्मावलम्बियों को प्रवचन किए।
बड़ागांव में जैनेश्वरी दीक्षा समारोह का शुभारम्भ पार्श्वनाथ अतिश्य क्षेत्र प्राचीन दिगम्बर जैन मंदिर के प्रांगण में लगे विशालकाय पंडाल में महावीर वंदना के साथ हुआ। मुजफ्फरनगर के नरेन्द्र जैन ने ध्वजारोहण किया।आगरा के जैन परिवार मुकेश जैन, स्नेहा जैन, पारस जैन, मधु जैन, रूपेश, नीलम, गुनगुन जैन, अतिश्य, वंशिका, मनीषा, प्रतीक, नीलांशा, मिशका, आदवंत, सत्वम ने चित्र अनावरण किए। दिल्ली के पवन कुमार के परिवार ने दीप प्रज्ज्वलन किया। दिल्ली के भूषण जैन नितिन जैन परिवार ने भोजन व्यवस्था दी।
सप्तम पट्टाचार्य ज्ञेय सागर महाराज ने सागर की ब्रह्मचारिणी दीदी अनिता, मुरैना की ब्रह्मचारिणी दीदी ललिता और बडागांव की ब्रह्मचारिणी दीदी चक्रेश को जैनेश्वरी दीक्षा दी। कार्यक्रम संचालन में सुखमाल चंद जैन, सुभाष चंद जैन, अरूण जैन, त्रिलोक जैन, संजीव जैन आदि ने सहयोग दिया।
ज्ञेय सागर महाराज ने किए प्रवचन
ब्रह्मचारिणी दीदी को जैनेश्वरी दीक्षा देते हुए ज्ञेय सागर महाराज ने कहा कि जैनेश्वरी दीक्षा का समय जैन धर्म में एक अत्यंत पवित्र और आध्यात्मिक अवसर होता है। व्यक्ति को धर्म, संयम और साधना के महत्व को समझाना और उनके मन में धर्म के प्रति श्रद्धा उत्पन्न करना होता है। कहा कि, दीक्षा आत्मा के शुद्धिकरण का मार्ग है, जहां साधक सांसारिक बंधनों को त्याग कर आत्मा की स्वतंत्रता की ओर अग्रसर होता है। यह तप, संयम और त्याग का प्रतीक है, जो आत्मा को मोक्ष के मार्ग पर ले जाता है। बताया कि, दीक्षा लेने वाले को सांसारिक मोह, धन, परिवार और अन्य सांसारिक सुखों का त्याग करना होता है। यह त्याग केवल बाहरी नहीं, बल्कि आंतरिक भी होता है, जिसमें क्रोध, अहंकार, माया और लोभ जैसे विकारों का परित्याग शामिल है।
बताया कि, दीक्षा प्रक्रिया में गुरु का मार्गदर्शन महत्वपूर्ण है। गुरु साधक को धर्म, दर्शन और आचरण की शिक्षा देते हैं। गुरु के प्रति श्रद्धा और विश्वास इस प्रक्रिया को सफल बनाता है। दीक्षा लेने के बाद पांच महाव्रतों अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह का पालन करना होता है। जैनेश्वरी दीक्षा का यह अवसर न केवल साधक के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए एक प्रेरणा स्रोत होता है।