जैनमुनि विशुद्ध सागर का 32 वां दीक्षा दिवस समारोह, श्रद्धालुओं को बताया परम शान्ति का उपाय
संवाददाता आशीष चंद्रमौली
बडौत।दिगम्बर जैनाचार्य श्री विशुद्ध सागर मुनिराज का 32 वां दीक्षा दिवस दिगंबर जैन कॉलेज के सी फील्ड मे धूमधाम से मनाया गया। इस दौरान धर्मसभा में आचार्य श्री ने कहा कि, अशुभ कर्म उदय होने पर व पुण्य क्षीण होने पर व्यक्ति का दर-दर पर अपमान होता है। जो पुण्योदय पर पूजा करते थे, वह पूछते भी नहीं हैं।अशुभ के दिन अत्यन्त दुःखद होते हैं।
जैनमुनि ने कहा कि,पापोदय पर अपने सगे भी मुख मोड़ लेते हैं। दुनिया में अपयश से अधिक दुःखद अन्य कुछ नहीं है। इसलिए जीवन ऐसा जियो जिससे पुण्य वर्धमान हो, यश-ही-यश प्राप्त हो। पुण्योदय पर शत्रु भी दास बन जाता है। पुण्य की महिमा, पुण्य का फल सुखद ही होता है। पुण्य से नर तन, उच्च कुल, स्वस्थ शरीर, बुद्धि कौशल, वैराग्य, सच्चे गुरू, आत्म कल्याण की भावना एवं दीक्षा प्राप्त होती है।
आचार्य श्री विशुद्ध सागर ने सचेत किया कि,जो आपको पाप-कार्यों में प्रवृत्त करें, पुण्य कार्यों से दूर करें, वे अनुकूल शत्रु हैं और जो सत्य-मार्ग पर लगाये, वह प्रतिकूल मित्र है। कहा कि, ऐसे सच्चे मित्र पुण्यशालियों को ही मिलते हैं। कहा कि,परम शान्ति का एकमात्र संयमाचरण है। संयम के प्रभाव से मनुष्य स्वर्ग की सम्पत्ति प्राप्त कर लेता है।अशुभ मत सोचो, अशुभ मत सुनो, अशुभ कार्य की अनुमोदना मत करो, अशुभ कार्य में सहयोग मत करो, अशुभ कार्य मत करो । अशुभ का फल अशुभ ही होता है, जो दूसरों को नीचे गिराने का सोचता है, वह निश्चित ही स्वयं के शत्रु हैं ।धर्म सभा का संचालन पं श्रेयांस जैन ने किया।पाद प्रक्षालन का सौभाग्य अतुल जैन सर्राफ व जिनवानी भेंट करने का सौभाग्य सपना जैन पत्नी राजकुमार जैन को प्राप्त हुआ।