पियरियामाफी में संगीतमयी श्रीमद भागवद कथा सुनने उमड़ा जनमानस

चित्रकूट: विकास खण्ड रामनगर के ग्राम पंचायत पियरिया माफी में ब्रम्हलीन सन्त बाबा रामेश्वरम गौ सेवा संस्थान के द्वितीय वार्षिकोत्सव के तत्वावधान में आयोजित संगीतमयी श्रीमद् भागवत महापुराण की चतुर्थ दिवस की कथा में कथा व्यास भागवत भूषण राजेश राजौरिया वैदिक साहित्य दर्शन ज्योतिष शास्त्र के आलोक में तदनुसार व्याख्यान परिभाषित करते हुए भावविभोर हो कथा सुना रहे हैं। शास्त्रीय पांडित्य पूर्ण से ओतप्रोत तथ्यात्मक तर्क से प्रतिपादित कथा को अपनी ओजमयी वाणी से विगत दिनों से कही जा रही कथा को सुनने के लिए क्षेत्रीय जनमानस उमड़ पड़ा है।
कथाव्यास राजेश राजौरिया वैदिक ने पुरातन काल की संस्कृति के बारे में विस्तृत वर्णन करते हुए कहा कि प्राचीन काल में भारतीय समाज को दिग्दर्शक की भूमिका में संस्कृत वांग्मय अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। जिसके मार्गदर्शन से समाज मर्यादा का तदानुसरण कर अपनी ख्याति प्राप्त की है, लेकिन जब से समाज ने प्राचीन वांग्मय की उपेक्षा कर आधुनिक शिक्षा पद्धति का अंगीकार किया है। तब से समाज में अभूतपूर्व बदलाव व्यापक स्तर पर दिखाई दिया है। उन्होंने बताया कि श्रीमद भागवत महापुराण में वर्णन मिलता है कि भगवान श्री कृष्ण ने पुत्र प्राप्ति की कामना से रुक्मिणी के साथ 12 वर्ष तक ब्रम्हचर्य ब्रत करते हुए अष्टांग योग का प्रतिपालन कर अनिरुद्ध जैसे कीर्तिवान पुत्र की प्राप्ति की है, लेकिन यह योग आज हम बीमारियों के कारण कुछ करने का उपक्रम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारा समाज सुबह से लेकर रात तक करने वाले सभी कार्यों को प्राचीन वांग्मय में वर्णित गतिविधियों के अनुरूप यदि करे तो वह धर्म सम्मत सिद्ध होगा और ऐसा करने से उसकी ख्याति ही प्राप्त होगी, उसका उपहास नहीं होगा, धर्म धारण करने की विषयवस्तु है और इसका अनुसरण करने वाले की साक्षात धर्म रक्षा करता है, लेकिन इसके बावजूद भी लोग धर्म का वरण करने से बचते हैं जो चिंता का विषय है। इस भागवद कथा में प्रसङ्ग अनुसार कथाव्यास राजेश राजौरिया वैदिक वेद वेदाङ्ग उपनिषद एवं रामचरितमानस तथा वाल्मीकि रामायण महाभारत से उदाहरण देते हुए कथा को प्रतिपादित कर रहे हैं। इस दौरान उपस्थित तमाम महिलाएं एवं पुरूष भावविह्वल हो पावन कथा का रसपान कर रहे हैं। कुछ जिज्ञासु स्रोता कथाव्यास से पत्र लिखकर प्रश्न भी पूछते हैं, जिसको कथाव्यास शास्त्र सम्मत उदाहरण देते हुए सम्यक दिग्दर्शन प्रतिपादित कर उनकी जिज्ञासा शान्त करते हैं। एक जिज्ञासु के निम्न दोहे का व्याख्यान पूछने पर कथा व्यास ने तुलसीदास की कामना की व्यापक परिभाषा देते हुए बताया कि कामिहि नारि पियारि जिमि लोभिहि प्रिय जिमि दाम तिमि रघुनाथ निरन्तर प्रिय लागिहि मोहि राम। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस के अंतिम दोहे में अपने बारे में रघुनाथ से भक्ति माँगी है। उन्होंने बताया कि जिस तरह से किसी कामी व्यक्ति अपनी कांता के रूप में आशक्त हो प्रेम का प्रणयन व्यक्त करता है, उसी तरह रघुनाथ की सुंदर स्वरूप में आसक्ति हो ऐसी कामना व्यक्त करते हैं और लोभी व्यक्ति की जिस तरह से धन के लाभ में आसक्ति होती है जिमि प्रति लोभ लाभ अधिकाई के अनुसार उसी तरह हमारी भगवान श्री राम के नाम लेने में प्रीति नित्य प्रति बढ़ती रहे ऐसी कामना करते हुए गोस्वामी तुलसीदास ने इस दोहे से अपनी मनोकामना रखी है इस दोहे की ऐसी व्याख्या माननी चाहिए।