चित्रकूट -भगवान का स्मरण करने से नष्ट हो जाते है पाप- बलुआ महाराज - कथा का तीसरा दिन।

चित्रकूट -भगवान का स्मरण करने से नष्ट हो जाते है पाप- बलुआ महाराज - कथा का तीसरा दिन।

चित्रकूट ब्यूरो: जिला मुख्यालय में चल रही मद्भागवत कथा के तीसरे दिन कथावाचक बलुआ महाराज ने कहा कि मनुष्य जीवन में जाने अनजाने प्रतिदिन कई पाप होते है। उनका ईश्वर के समक्ष प्रायश्चित करना ही एक मात्र मुक्ति पाने का उपाय है। उन्होंने ईश्वर आराधना के साथ अच्छे कर्म करने का आह्वान किया। उन्होंने जीवन में सत्संग व शास्त्रों में बताए आदर्शों का श्रवण करने का आह्वान करते हुए कहा कि सत्संग में वह शक्ति है, जो व्यक्ति के जीवन को बदल देती है।

भागवत कथा के दौरान कपिल चरित्र, सती चरित्र, धु्रव चरित्र, जड़ भरत चरित्र, नृसिंह अवतार आदि प्रसंगों पर प्रवचन करते हुए कहा कि भगवान के नाम मात्र से ही व्यक्ति भवसागर से पार उतर जाता है। उन्होंने भगवत कीर्तन करने, ज्ञानी पुरुषों के साथ सत्संग कर ज्ञान प्राप्त करने व अपने जीवन को सार्थक करने का आह्वान किया।वैराग्य मानव को ज्ञानी बनाता है। वैराग्य में मानव संसार में रहते हुए भी सांसारिक मोहमाया से दूूर रहता है। उन्होंने वाराह अवतार सहित अन्य प्रसंगों पर प्रवचन किए। कथा व्यास बलुआ महाराज ने भक्त प्रहलाद प्रसंग सुनाया। उन्होंने कहा कि भक्त प्रहलाद ने माता कयाधु के गर्भ में ही नारायण नाम का मंत्र सुना था। जिसके सुनने मात्र से भक्त प्रहलाद के कई कष्ट दूर हो गए थे।उन्होंने कहा कि बच्चों को धर्म का ज्ञान बचपन से दिया जाए तो वह कभी भी गलत रास्ते में नही जा सकते और बच्चा बुद्धिमान और तेजस्वी होगा। उन्होंने कहा कि माता-पिता की सेवा व प्रेम के साथ समाज में रहने की प्रेरणा ही धर्म का मूल है। अच्छे संस्कारों के कारण ही ध्रुव जी को पांच वर्ष की आयु में भगवान का दर्शन प्राप्त हुआ। इसके साथ ही उन्हें 36 हजार वर्ष तक राज्य भोगने का वरदान प्राप्त हुआ था। ऐसी कई मिसालें हैं जिससे सीख लेने की जरूरत है।

    श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन करते हुए उन्होंने बताया कि भागवत कथा विचार, वैराग्य, ज्ञान और हरि से मिलने का मार्ग बता देती है। कलियुग की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि कलियुग में मनुष्य को पुण्य तो सीधे होते है, परन्तु मानस पाप नहीं होते। कलियुग में हरी नाम से ही जीव का कल्याण हो जाता है। कलियुग में ईश्वर का नाम ही काफी है। सच्चे हृदय से हरी नाम स्मरण मात्र से कल्याण संभव है। इसके लिए कठिन तपस्या और यज्ञ आदि करने की आवश्यकता नहीं है। जबकि सतयुग,द्वापर और त्रेता युग में ऐसा नहीं था। उन्होंने बताया कि कृष्ण भगवान को लीलाधार कहा जाता है। अतः वह अपनी भिन्न-भिन्न लीलाओं के माध्यम से अपने भक्तों की रक्षा करते रहते हैं। भगवान कृष्ण का जीवन अनेक लीलाओं से परिपूर्ण हैं। कभी वह सुदर्शन चक्रधारी बनकर दुष्टों संहार करते हैं तो कभी बाल गोपाल बनकर यशोदा मैया की गोद में खेलते हैं। भगवान कृष्ण को प्रसन्न करना अत्यधिक सरल है। वह अपने भक्तों की सरलता से ही प्रसन्न हो जाते हैं तथा उनका जीवन प्रसन्नता से भर देते हैं।यदि आप अपने जीवन में चारों ओर से संकटों से घिरे हुये हैं तथा अनेक प्रयास करने के पश्चात भी आपको कोई मार्ग नही मिल रहा है तो आपको तत्काल मुरलीधर भगवान श्री कृष्ण की शरण ग्रहण कर लेनी चाहिए। ऐसा करने से आप सुख, शांति का अनुभव करेंगे। कथा व्यास ने बताया कि हिंदू धर्मशास्त्र में मन के छह शत्रु हैं, जो हैं काम (इच्छा), क्रोध, लोभ (लालच), मद (मैं की भावना), मोह (लगाव), और मात्सर्य (पक्षपात) जिसके नकारात्मक लक्षण मनुष्य को मोक्ष प्राप्त करने से रोकते हैं, लेकिन यदि जीव केवल भगवान का स्मरण करता है, तो ये शत्रु अपने आप दूर हो जाते हैं।

कथा में मुख्य यजमान रामसूरत पयासी, सावित्री देवी, राधेरमण पयासी, सरयू प्रसाद पांडेय, प्रकाश चंद्र मिश्रा, प्रशांत कुमार द्विवेदी, प्रभाकर द्विवेदी, चित्रकूट प्रेस क्लब अध्यक्ष सत्य प्रकाश द्विवेदी, निरंजन मिश्र, इजी0 रोहित कुमार मिश्र, अनीता द्विवेदी, सतरूपा मिश्रा, साधना मिश्रा आदि श्रृद्धालु मौजूद रहे।