चित्रकूट-लोक संस्कृति समूहगत चेतना का है प्रतीक - आर एन त्रिपाठी।
चित्रकूट ब्यूरो: गोस्वामी तुलसीदास राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में इण्डियन काउंसिल ऑफ सोशल साइंस रिसर्च द्वारा प्रायोजित ग्रामीण जीवन में लोक संस्कृति अस्तित्व एवं चुनौतियाँ विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ। संगोष्ठी का शुभारम्भ महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ विनय कुमार चैधरी व उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के सदस्य डॉ आरएन त्रिपाठी ने किया।
उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के सदस्य डॉ आरएन त्रिपाठी ने कहा कि लोक संस्कृति जीवन का अभिन्न अंग है। उन्होंने कहा कि लोक संस्कृति का आरम्भ भारतीय वैदिक काल से ही माना जाना चाहिए, जहां अथर्ववेद से ही इसके प्रथम साक्ष्य मिलते हैं। उन्होंनें कहा कि लोक संस्कृति समूहगत चेतना की प्रतीक है। मनुष्य के जीवन में संस्कारों का बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है। संस्कृति से ही संस्कार ग्रहण किए जाते हैं। सरलता, सहृदयता, सहिष्णुता, परंपरा, चेतना, गीत -संगीत, रीति- रिवाज, उत्सव, जन्म व मृत्यु के उपरांत सामाजिक रस्में आदि ऐसे तत्व हैं जो हमारी लोक संस्कृति में छिपे हुए हैं। यही वे सूत्र हैं जो मनुष्य को समाज से एक स्वस्थ धागे से साथ बांधकर रखते हैं।
संयोजक डॉ राजेश कुमार पाल ने कहा कि कंप्यूटर और मोबाइल क्रांति ने उसे पंगु बना दिया है। किसी से जाकर मिलने या गपशप करने की उसके पास फुर्सत नहीं है। अपने पड़ोसियों के प्रति उसका दृष्टिकोण नकारात्मक हो गया है। अब मनुष्य मशीनी यंत्र का पर्याय बनता जा रहा है। इस अंधी दौड़ मंष वह भौतिक सुख सुविधाएं तो पा सकता है, मगर आनंद या वास्तविक खुशी उससे दूर होती जा रही है। एमएमपीजी कालेज गाजियाबाद डॉ राकेश राणा ने कहा कि संस्कृसति फूलों में विद्यमान सुगंध की तरह है जिसे लोक जीवन से अलग नहीं किया जा सकता। अखिल भारतीय चरित्र निर्माण संस्थान के रामकृष्णल गोस्वानमी ने संस्कृयति संरक्षण हेतु चरित्र निर्माण एवं विकास की बात कही। जवाहरलाल नेहरू विश्वषविद्यालय के प्रो हरीिराम मिश्र ने लोक संस्कृिति के संरक्षण एवं विकास के लिए उच्चल शिक्षण संस्था्नों में अध्यीयनरत युवाओं को अपनी मूल संस्कृाति को पहचानने और उससे जुडने का आग्रह किया साथ ही चित्रकूट जैसे क्षेत्र में केन्री कोय हिन्दूत विश्वुविद्यालय की स्था पना के सुझाव भी दिये।
महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ विनय कुमार चैधरी ने कहा कि 21वीं शताब्दी के इन वर्षों में समाज में बहुत तेजी से बदलाव आए हैं। सभी तरफ बाजारवाद जोरों पर है, मनोरंजन के साधनों में बेतहाशा वृद्धि हुई है, संकुचित दृष्टिकोण व्यापक हुआ है। खानपान, रस्मों रिवाज, फैशन और संस्कृति में अभिनव प्रयोग हुए हैं। वही शहरी सभ्यता के प्रति आकर्षण बढ़ा है। इस कारण देहाती जीवन को उपेक्षा की नजरों से देखा जाने लगा है। अतः इस प्रकार की संगोष्ठियों के माध्यीम से समाज को पुनः सचेत करने की आवश्य कता है।
राष्ट्रीय संगोष्ठी के द्वितीय सत्र में डॉ विनोद मिश्र, डॉ सुनीता श्रीवास्तव, एसो प्रो जगद्गुरू रामभद्राचार्य राज्य दिव्यांग विश्वयविद्यालय एवं डॉ जितेन्द्र शर्मा, एसो प्रो राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय बांदा ने अपने विचार व्यक्त किये। आयोजन सचिव डॉ अमित कुमार सिंह द्वारा आभार व्यवक्ता किया गया। कार्यक्रम का संचालन डॉ वंशगोपाल द्वारा किया गया।
इस अवसर महाविद्यालय के प्राध्यागपक डॉ रामनरेश यादव, डॉ सीमा कुमारी, कार्यक्रम सचिव डॉ गौरव पाण्डेय, डॉ मुकेश कुमार, डॉ अतुल कुमार कुशवाहा, डॉ धर्मेन्द्र सिंह, डॉ हेमन्त कुमार बघेल, डॉ राकेश कुमार शर्मा, डॉ नीरज गुप्ता, डॉ आशुतोष कुमार शुक्ला, डॉ गौरव पाण्डेाय, डॉ रचित जायवाल, डॉ गजेन्द्र सिंह तथा बलवन्त सिंह राजोदिया आदि मौजूद रहे।