अलीगढ़:- खैर तहसील क्षेत्र में संत राजिन्दर सिंह जी महाराज के बिलखौरा में सत्संग व नामदान के कार्यक्रम में हजारों की संख्या में लोग एकत्रित हुए

अलीगढ़:- खैर तहसील क्षेत्र में संत राजिन्दर सिंह जी महाराज के बिलखौरा में सत्संग व नामदान के कार्यक्रम में हजारों की संख्या में लोग एकत्रित हुए
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अलीगढ़:- खैर तहसील क्षेत्र में संत राजिन्दर सिंह जी महाराज के बिलखौरा में सत्संग व नामदान के कार्यक्रम में हजारों की संख्या में लोग एकत्रित हुए

अलीगढ़

:- खैर तहसील क्षेत्र के गोमत चौराहा चंदोस रोड बिलखोरा गांव देर रात में सावन कृपाल रूहानी मिशन के प्रमुख संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने बुधवार को उतर प्रदेश के अलीगढ़ के बिलखौरा गांव में देर रात में सत्संग व नामदान कार्यक्रम की अध्यक्षता की। बिलखौरा में विश्व-विख्यात आध्यात्मिक गुरु संत राजिन्दर सिंह जी महाराज की यह पहली यात्रा थी। जिसमें हजारों की संख्या में जिज्ञासु उपस्थित थे।कार्यक्रम की शुरूआत में बरौली विधानसभा क्षेत्र के विधायक एवं उत्तर प्रदेश सरकार में पूर्व केबिनेट मंत्री ठाकुर जयवीर सिंह ठाकुर अभिमन्यु सिंह और भाजपा युवा नेता राहुल सरास्वत ने संत राजिन्दर सिंह जी महाराज का फूलों के गुलदस्ते देकर स्वागत किया। इस अवसर पर अनूप प्रधान राजस्व मंत्री उत्तर प्रदेश सरकार ने भी महाराज जी से आशीर्वाद प्राप्त किया।

सत्संग से पूर्व पूजनीय माता रीटा जी ने गुरुबानी से संत रविदास जी की वाणी से”माटी को पुतरा कैसे नचत है। शब्द का गायन किया। उसके पश्चात संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने अपनी दिव्यवाणी में समझाया कि इंसान होने के नाते हम पिता-परमेश्वर से अपना संबंध भूल गए हैं। और इस दुनिया के बाहरी आकर्षणों में ही फंसे हुए हैं।संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने बिलखौरा में स्थित दर्शन आश्रम के मैदान में हजारों की संख्या में एकत्रित भाई-बहनों को संबोधित करते हुए कहा। कि मनुष्य जन्म का मिलना।  पिता-परमेश्वर का सबसे बड़ा उपहार है। हम सभी को अपने आपको आत्मिक रूप में जानने और अपनी आत्मा का मिलाप पिता-परमेश्वर में कराने के लिए। यहां भेजा गया है। हालांकि इंद्रियों घाट पर जीते हुए। हम इस दुनिया के आकर्षणों के मोह में फंसकर अपने मन के हाथों की कठपुतली बनकर रह गए हैं। जो हमें सभी दिशाओं में खींच रहा है।उन्होंने आगे कहा। कि बाहर की दुनिया माया की दुनिया है। और यह एक नाटक के समान है। लेकिन हम सब इसे सच मानकर अहंकार, अभिमान और मोह का जीवन जीते हैं। वास्तव में हम सभी आत्माएं हैं। जोकि पिता-परमेश्वर की अंश हैं। और उन्हीं के जैसे बने हैं। सत्य, चेतनता और आनंद से भरपूर। किंतु हम अपनी असलियत को पहचानने और पिता-परमेश्वर की याद में समय बिताने के बजाय इस दुनिया की व्यर्थ की गतिविधियों में ही उलझे हुए हैं। हम अपने मन के निर्देशों के अनुसार बोलते, दौड़ते तथा कार्य करते हैं। और इन्हीं कार्यों को करते हुए। इस अनमोल मानव जीवन को बर्बाद कर देते हैं।संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने निष्कर्ष निकालते हुए कहा। कि हमें एक जागृत और प्रकाश से भरपूर अवस्था को पाना है। जिसके लिए। हमें अपना ध्यान इस बाहर की दुनिया से हटाकर पिता-परमेश्वर की ओर करना चाहिए। जब हम ध्यान-अभ्यास करते हैं। और अपने भीतर पिता-परमेश्वर के प्रेम और प्रकाश से जुड़ते हैं। तो हम सच्चे मायनों में आनंद और सुख से भर जाते हैं। एक पूर्ण आध्यात्मिक गुरु की सहायता और मार्गदर्शन से जो हमें दीक्षा का वरदान देते हैं। हमारी आत्मा दिव्य-प्रेम से सराबोर हो जाती है। तभी हम पिता-परमेश्वर को पाने के अपने मानव जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य की ओर तेज़ी से आगे बढ़ते हैं। सत्संग के पश्चात संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने हजारों की संख्या में उपस्थित भाई-बहनों को अपनी दयामेहर से नामदान (आध्यात्मिक दीक्षा ) की अमूल्य दात दी। संत राजिन्दर सिंह जी महाराज के सत्संग व नामदान के कार्यक्रम में सिर्फ बिलखौरा से ही नहीं बल्कि भारत के विभिन्न राज्यों के हजारों लोगों के अलावा विदेशों से आए 100भाई-बहनों ने भी भाग लिया। संत राजिन्दर सिंह जी महाराज गैर-लाभकारी संगठन सावन कृपाल रूहानी मिशन के प्रमुख हैं। जिसे पूरे विश्व में आध्यात्मिक विज्ञान के रूप में भी जाना जाता है। संत राजिन्दर सिंह जी महाराज का जीवन और कार्य लोगों को मनुष्य जीवन के मुख्य उद्देश्य को खोजने में मदद करने के लिए। प्रेम और निःस्वार्थ सेवा की एक लगातार चलने वाली यात्रा के रूप में देखा जा सकता है। पिछले 34 वर्षों से उन्होंने जीवन के सभी क्षेत्र के लाखों लोगों को ध्यान-अभ्यास की विधि सिखाकर उन्हें उनके वास्तविक स्वरूप यानि आत्मिक रूप से जुड़ने में मदद की है। उनका संदेश आशा, प्रेम, मानव एकता और निःस्वार्स्थ सेवा का संदेश है।
संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ध्यान-अभ्यास की एक सरल विधि सिखाने के लिए। पूरी दुनिया में यात्रा करते हैं। जिसका अभ्यास स्त्री हो या पुरुष, बीमार हो या स्वस्थ, चाहे। वह किसी भी उम्र, धर्म व जाति का हो, कर सकता है। इस विधि को ‘सुरत शब्द योग’ या ‘प्रभु की ज्योति और श्रुति का मार्ग’ भी कहा जाता है।उन्हें ध्यान-अभ्यास पर आधारित सेमिनारों और पुस्तकों के माध्यम से लाखों लोगां को ध्यान-अभ्यास सिखाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त है। उनकी प्रमुख पुस्तकें ‘डिटॉक्स द माइंड, ‘मेडिटेशन एज़ मेडिकेशन फॉर द सोल’ और ‘ध्यान-अभ्यास के द्वारा आंतरिक और बाहरी शांति’ प्रमुख हैं। उनकी कई डीवीडी, ऑडियो बुक और आर्टिकल्स, टीवी, रेडियो और इंटरनेट पर उपलब्ध हैं।संत राजिन्दर सिंह जी महाराज को विभिन्न देशों द्वारा अनेक शांति पुरस्कारों व सम्मानों के साथ-साथ पाँच डॉक्टरेट की उपाधियों से भी सम्मानित किया जा चुका है। सावन कृपाल रूहानी मिशन के संपूर्ण विश्व में 3200 से अधिक केन्द्र स्थापित हैं। तथा मिशन का साहित्य विश्व की 55 से अधिक भाषाओं में प्रकाशित हो चुका है। इसका मुख्यालय विजय नगर, दिल्ली में है। तथा अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय नेपरविले, अमेरिका में स्थित है।